Army Porter: सेना के साथ काम करने वाले पोर्टर को पक्का किए जाने की मांग, सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को नोटिस

porter working with army:पिछले 24 सालों से भारतीय सेना के लिए काम कर रहे कुलियों को स्थाई किए जाने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर 8 हफ्ते में जवाब मांगा है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर 8 हफ्ते में जवाब मांगा है

याचिका में भारत सरकार द्वारा 1993 में एक मेमोरेंडम का हवाला दिया गया है, जिसमें इन मजदूरों को रेगुलराइज करने की बात कही थी। केंद्र सरकार के दफ्तरों, दूरसंचार मंत्रालय और रेलवे में साल में 240 दिन दिहाड़ी मजदूरी करने वाले मजदूरों को अस्थाई तौर पर रेगुलराइज करने की बात मेमोरेंडम में कही गई थी। साथ ही इस योजना को रक्षा मंत्रालय समेत भारत सरकार के सभी विभागों में भी लागू करने का फैसला हुआ था। उसके बाद रक्षा मंत्रालय ने 14 अक्टूबर 1993 में इस मेमोरेंडम के हिसाब से तीनों सेनाओं के प्रमुखों के दिहाड़ी मजदूर की तरह काम करने वाले कुलियों को रेगुलराइज करने का निर्देश दिया था।

हालांकि रक्षा मंत्रालय के तहत काम कर रहे इन याचिकाकर्ताओं का कहना है कि कई साल बीत जाने के बाद 1993 का आदेश लागू नहीं हुआ और वो लोग दिहाड़ी मजदूरी की तरह काम करने को मजबूर हैं। इनमें से कई मजदूर पिछले 20 साल से भी ज्यादा एक साल में 353 दिन काम कर रहे हैं लेकिन उन्हें पक्का कर्मचारी बनने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। याचिकाकर्ता मजदूरों ने कहा है कि ये नहीं माना जा सकता कि रक्षा मंत्रालय किसी आर्थिक समस्या से गुजर रहा हो।

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि पक्का न करके उन्हें संविधान के अनुच्छेद 14,15,16 और 21 से वंचित किया जा रहा है। भारत का संविधान सभी नागरिकों को मूल अधिकार के तहत जीवकोपार्जन, बराबर कानूनी मौकों का अधिकार देता है।

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