क्या IAS, IPS अधिकारी के बच्चों को मिलना चाहिए रिजर्वेशन ? सुप्रीम कोर्ट में दलित जज ने पूछा सवाल
Supreme Court On Reservation: सुप्रीम कोर्ट के जज ने पूछा, क्या आईएएस और आईपीएस के बच्चों को आरक्षण का लाभ मिलना जारी रहना चाहिए, पंजाब सरकार का कहना है कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए
जस्टिस बीआर गवई ने नौकरशाहों के बच्चों को आरक्षण मिलने को लेकर सवाल किया।
Supreme Court On Reservation: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह अपने 2004 के एससी-एसटी आरक्षण को लेकर दिए गए फैसले की फिर से समीक्षा करेगा, इस फैसले में कहा गया था कि राज्यों के पास आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए सब-कैटेगरी बनाने का अधिकार नहीं है, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सात जजों की संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि वह आंकड़ों से संबंधित तर्कों में नहीं जाएगी जिसके कारण पंजाब सरकार ने आरक्षण के अंदर 50 प्रतिशत कोटा प्रदान किया था., इस मामले की सुनवाई के दौरान ही जस्टिस बीआर गवई ने नौकरशाहों के बच्चों को आरक्षण मिलने को लेकर सवाल किया।
जस्टिस गवई, जो खुद एक दलित हैं ने कहा, "एससी/एसटी समुदाय का एक व्यक्ति, आईएएस और आईपीएस जैसी केंद्रीय सेवाओं में जाने के बाद, सर्वोत्तम सुविधाओं तक पहुंच पाता है। फिर भी, उनका बच्चों और उनके बच्चों को आरक्षण का लाभ मिलता रहे। क्या ऐसा जारी रहना चाहिए?' पंजाब सरकार ने तर्क दिया कि जो लोग सरकारी सेवा में उच्च प्रतिनिधित्व के माध्यम से आगे बढ़े हैं, उन्हें एससी दायरे में वंचित समुदायों के लिए रास्ता बनाना चाहिए।
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सात जजों की संविधान पीठ एससी/एसटी आरक्षण से जुड़े मसले पर सुनवाई कर रही है
सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ एससी/एसटी आरक्षण से जुड़े मसले पर सुनवाई कर रही है, पहले दिन, पंजाब के एडवोकेट जनरल गुरमिंदर सिंह ने एससी/एसटी समुदायों के भीतर उपवर्गीकरण के पक्ष में दलील दी, सुनवाई के दौरान, जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि कुछ जातियां जो एक निश्चित स्थिति तक पहुंच चुकी हैं और अगड़ी जातियों के बराबर हैं, तो उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर निकल जाना चाहिए।
गौर हो कि सुप्रीम कोर्ट ने इस कानूनी सवाल की समीक्षा मंगलवार को शुरू कर दी कि क्या राज्य सरकार को दाखिलों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम, 2006 की वैधता का भी अध्ययन कर रही है जो अनुसूचित जातियों (एससी) के लिए तय आरक्षण के तहत सरकारी नौकरियों में 'मजहबी सिख' और 'वाल्मीकि' समुदायों को 50 प्रतिशत आरक्षण और प्रथम वरीयता देता है।
पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी, न्यायमूर्ति पंकज मिथल, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र मिश्रा शामिल हैं। पीठ 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिसमें पंजाब सरकार द्वारा दायर एक प्रमुख याचिका भी शामिल है जिसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती दी गयी है।
उच्च न्यायालय ने पंजाब कानून की धारा 4(5) को असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया था जो 'वाल्मिकियों' और 'मजहबी सिखों' को अनुसूचित जाति का 50 फीसदी आरक्षण देती थी। अदालत ने कहा था कि यह प्रावधान ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में उच्चतम न्यायालय के 2004 के पांच सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले का उल्लंघन करता है। चिन्नैया वाले फैसले में कहा गया था कि अनुसूचित जातियों का 'उप-वर्गीकरण' संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) का उल्लंघन करेगा। पंजाब सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए 2011 में उच्चतम न्यायालय का रुख कर कहा था कि शीर्ष न्यायालय का 2004 का फैसला उस पर लागू नहीं होता है।
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