Sedition Law: राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को अब 5 न्यायाधीशों की पीठ करेगी सुनवाई
Sedition Law: पीठ ने अपने पंजीयन कार्यालय को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष कागजात पेश करने का निर्देश दिया ताकि 'कम से कम पांच न्यायाधीशों" की पीठ के गठन के लिए प्रशासनिक स्तर पर उचित निर्णय लिया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह मामले को लेकर आज सुनवाई हुई
Sedition Law: उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून संबंधी प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को मंगलवार को कम से कम पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने इस आधार पर वृहद पीठ को मामला सौंपने का फैसला टालने के केंद्र के अनुरोध को खारिज कर दिया कि संसद दंड संहिता के प्रावधानों को फिर से लागू कर रही है।
अब आगे क्या
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी इस पीठ में शामिल थे। पीठ ने अपने पंजीयन कार्यालय को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष कागजात पेश करने का निर्देश दिया ताकि 'कम से कम पांच न्यायाधीशों" की पीठ के गठन के लिए प्रशासनिक स्तर पर उचित निर्णय लिया जा सके। इससे पहले न्यायालय ने इन याचिकाओं पर सुनवाई केंद्र के यह कहने के बाद एक मई को टाल दी थी कि सरकार दंडात्मक प्रावधान की पुन: समीक्षा पर परामर्श के अग्रिम चरण में है।
केंद्र ने लाए तीन विधेयक
इसके बाद केंद्र सरकार ने 11 अगस्त को औपनिवेशिक काल के इन कानूनों को बदलने के लिए ऐतिहासिक कदम उठाते हुए आईपीसी, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने के लिए लोकसभा में तीन नये विधेयक पेश किए। इसमें राजद्रोह कानून को रद्द करने और अपराध की व्यापक परिभाषा के साथ नए प्रावधान लागू करने की बात की गई है।
ऐतिहासिक आदेश
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 11 मई को एक ऐतिहासिक आदेश में इस दंडात्मक कानून पर तब तक के लिए रोक लगा दी थी जब तक कि "उचित" सरकारी मंच इसकी समीक्षा नहीं करता। उसने केंद्र और राज्यों को इस कानून के तहत कोई नयी प्राथमिकी दर्ज नहीं करने का निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी थी कि देशभर में राजद्रोह कानून के तहत जारी जांच, लंबित मुकदमों और सभी कार्यवाही पर भी रोक रहेगी।
क्या है राजद्रोह कानून
"सरकार के प्रति असंतोष" पैदा करने से संबंधित राजद्रोह कानून के तहत अधिकतम आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। इसे स्वतंत्रता से 57 साल पहले और भारतीय दंड संहिता के अस्तित्व में आने के लगभग 30 साल बाद 1890 में लाया गया था।
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