क्या हम सांसदों और विधायकों के हाथों-पैरों पर चिप लगा दें, SC ने डिजिटल मॉनिटर की याचिका खारिज की

शीर्ष अदालत ने पूछा कि आखिर कैसे सांसदों और विधायकों को डिजिटल मॉनिटर किया जा सकता है। क्या-क्या सवाल उठाए अदालत ने जानिए।

सुप्रीम कोर्ट

Digital monitoring of MPs and MLAs: सुप्रीम कोर्ट ने बेहतर प्रशासन के लिए सांसदों एवं विधायकों की चौबीसों घंटे डिजिटल निगरानी करने के लिए केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका को शुक्रवार को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि निजता का अधिकार नाम की भी कोई चीज होती है। प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ से पूछा गया कि क्या अदालत सांसदों की गतिविधियों पर चौबीसों घंटे नजर रखने के लिए उनके शरीर में कोई चिप लगा सकती है।

याचिकाकर्ता को किया आगाह

सुनवाई की शुरुआत में प्रधान न्यायाधीश ने दिल्ली निवासी याचिकाकर्ता सुरिंदर नाथ कुंद्रा को आगाह किया कि उन्हें ऐसे मामले पर न्यायिक समय का दुरुपयोग करने के लिए पांच लाख रुपए का जुर्माना भरना पड़ सकता है। पीठ ने कहा, यदि आप बहस करते हैं और हम आपसे सहमत नहीं होते हैं तो आपसे पांच लाख रुपये भू-राजस्व के रूप में वसूल किए जाएंगे। यह जनता का समय की बात है। यह हमारा अहंकार नहीं है।

क्या आपको एहसास है कि आप क्या बहस कर रहे हैं?

अदालत ने कहा, क्या आपको एहसास है कि आप क्या बहस कर रहे हैं? आप सांसदों और विधायकों की चौबीसों घंटे निगरानी चाहते हैं... ऐसा केवल उस सजायाफ्ता अपराधी के लिए किया जाता है जिसके न्याय से बचकर भागने की आशंका होती है। निजता का अधिकार नाम की कोई चीज होती है और हम संसद के सभी निर्वाचित सदस्यों की डिजिटल निगरानी नहीं कर सकते। कुंद्रा ने कहा कि सांसद और विधायक, जो नागरिकों के वेतनभोगी सेवक होते हैं, वे शासकों की तरह व्यवहार करना शुरू कर देते हैं।

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