किशोर लड़कियों को यौन इच्छाओं पर नियंत्रण लगाने की HC की सलाह गलत, SC ने कहा-इससे समस्या पैदा होगी
Supreme Court News: बंगाल सरकार की दलील पर जस्टिस अभय एस ओका एवं जस्टिस उज्जवल भुइयां की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट के इस फैसले पर स्वत: संज्ञान के तहत की गई अपनी कार्यवाही में वह राज्य सरकार की अपील शामिल करते हुए इस मुद्दे पर फैसला करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता एचसी की टिप्पणियों को गलत बताया।
Supreme Court News: 'किशोर लड़कियों को दो मिनट का आनंद उठाने के बजाय अपनी यौन इच्छाओं को नियंत्रित करने' संबंधित कलकत्ता हाई कोर्ट की टिप्पणियों पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतराज जताया। शीर्ष अदालत ने कहा कि 'इस तरह की टिप्पणी करना गलत और समस्या पैदा करने वाला है।' पश्चिम बंगाल सरकार ने कोर्ट को बताया कि इस विवादास्पद फैसले के खिलाफ उसने अपील की है। कोर्ट पहले भी हाई कोर्ट के इस फैसले पर टिप्पणी कर चुका है।
राज्य सरकार की अपील को अपनी सुनवाई में शामिल करेगा SC
बंगाल सरकार की दलील पर जस्टिस अभय एस ओका एवं जस्टिस उज्जवल भुइयां की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट के इस फैसले पर स्वत: संज्ञान के तहत की गई अपनी कार्यवाही में वह राज्य सरकार की अपील शामिल करते हुए इस मुद्दे पर फैसला करेगा।
टिप्पणियों की आठ दिसंबर को आलोचना की थी
बता दें कि शीर्ष न्यायालय ने इस फैसले की पिछले साल आठ दिसंबर को आलोचना की थी और उच्च न्यायालय की कुछ टिप्पणियों को ‘अत्यधिक आपत्तिजनक और पूरी तरह से अवांछित’ करार दिया था। उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि फैसले लिखते समय न्यायाधीशों से उपदेश देने की उम्मीद नहीं की जाती है। यह विषय गुरुवार को न्यायमूर्ति ए एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया।
'कुछ पैराग्राफ समस्या पैदा करने वाले हैं'
पीठ ने कहा कि फैसले के कुछ पैराग्राफ समस्या पैदा करने वाले हैं। इसने कहा, ‘हमने सभी पैराग्राफ को चिह्नित किया है। इस क्रम में, कई निष्कर्षों को रिकार्ड में रखा गया है। ये अवधारणाएं कहां से आईं, हम नहीं जानते। लेकिन जो कुछ भी कहा गया है हम उससे निपटना चाहते हैं। आपकी सहायता की जरूरत है।’ पीठ ने रजिस्ट्री को स्वत: संज्ञान वाली रिट याचिका और राज्य द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका प्रधान न्यायाधीश की मंजूरी लेने के बाद 12 जनवरी को सूचीबद्ध करने को कहा।
'अपनी गरिमा की रक्षा करे प्रत्येक किशोरी'
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि किशोरियों को अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए और दो मिनट के आनंद के लिए खुद को समर्पित नहीं करना चाहिए। उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति की अपील पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की थी। व्यक्ति को यौन उत्पीड़न के अपराध को लेकर 20 साल कैद की सजा सुनाई गई थी। अदालत ने उसे बरी करते हुए कहा था कि यह मामला गैर उत्पीड़नकारी एवं आपसी सहमति से दो किशोरों के बीच बनाये गए यौन संबंध का है। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि यह प्रत्येक किशोरी का कर्तव्य/दायित्व है कि वह अपनी गरिमा की रक्षा करे...अपने शरीर की स्वायत्ता के अधिकार और अपनी निजता की रक्षा करे।
(एजेंसी इनपुट के साथ)
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