सुप्रीम कोर्ट ने दिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर, मीडिया की आजादी को लेकर कही अहम बात
पीठ ने पूछा, अदालतों को उनके आदेशों के खिलाफ की गई कुछ टिप्पणियों के बारे में क्यों संवेदनशील होना चाहिए। इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में 1.45 लाख अवमानना के मामले लंबित थे। उनमें से कुछ मीडिया संगठनों और स्वतंत्र पत्रकारों के खिलाफ थे।



सुप्रीम कोर्ट
Supreme Court Slams Gag Orders: सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी पर जोर देते हुए कहा है कि मामूली मामलों को अवमानना का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। सोमवार को जस्टिस अभय एस ओका और उज्जल भुयान की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सुनवाई के दौरान मीडिया की स्वतंत्रता के महत्व पर जोर दिया। इसने अदालतों को विशेष रूप से फ्री स्पीच के प्रति सहनशील होने की आवश्यकता की याद दिलाई और कहा कि मामूली बहाने पर अवमानना का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए।
अवमानना के लाखों मामले लंबित
पीठ ने पूछा, अदालतों को उनके आदेशों के खिलाफ की गई कुछ टिप्पणियों के बारे में क्यों संवेदनशील होना चाहिए। इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में 1.45 लाख अवमानना के मामले लंबित थे। उनमें से कुछ मीडिया संगठनों और स्वतंत्र पत्रकारों के खिलाफ थे। इनमें से कुछ मनमाने, अनुचित या अतिवाद वाले हो सकते हैं। सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और उनके परिवारों को दिए जाने वाले भत्तों पर रिपोर्टिंग करने के लिए दो महिला पत्रकारों के खिलाफ अवमानना का दोषी ठहराते हुए 2019 के मेघालय हाईकोर्ट के आदेश ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पर रोक लगा दी थी।
विकिपीडिया के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का मामला भी उठी
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई विकिपीडिया के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बारे में थी, जिसमें आलोचना को अदालती कार्यवाही में हस्तक्षेप माना गया था। लेकिन जैसा कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, न्यायाधीशों को आलोचना को गंभीरता से लेना चाहिए, कभी-कभी कोई कहता है कि आप यहां पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर बैठे हैं या आप उचित सुनवाई नहीं कर रहे हैं। लोग कुछ कहते हैं और हमें इसे सहन करना पड़ता है। कोई कहता है कि हम पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। यह उनकी राय है, लेकिन हम कानून के अनुसार निर्णय लेते हैं।
गैग ऑर्डर के खतरों पर दिलाया ध्यान
सुनवाई के दौरान पीठ ने एक बार फिर ऐसे आदेशों के खतरों पर ध्यान दिलाया। इसने कहा, अदालतें गैग ऑर्डर (चुप रहने का आदेश) पारित नहीं कर सकतीं। किसी को कुछ हटाने के लिए कहना सिर्फ इसलिए ठीक नहीं है क्योंकि अदालत ने जो कहा या किया है उसकी कुछ आलोचना हो रही है। 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार मोहम्मद जुबैर को जमानत पर रहते हुए उसे एक्स पर पोस्ट करने से रोकने का निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि गैग ऑर्डर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक भयावह प्रभाव डालते हैं। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने विकिपीडिया के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट के निर्देशों की वैधता पर सवाल उठाया है। इस जांच को आगे बढ़ाकर यह अवमानना शक्तियों के मनमाने प्रयोग के खिलाफ सुरक्षा उपाय बना सकता है।
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