सुप्रीम कोर्ट पहुंचा CAA मामला, कानून पर रोक लगाने की 230 अर्जियों पर आज शीर्ष अदालत में सुनवाई

केंद्र द्वारा सीएए के तहत नियम जारी करने के एक दिन बाद केरल स्थित राजनीतिक दल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग कानून को लागू करने पर रोक लगाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

सुप्रीम कोर्ट में सीएए के खिलाफ सुनवाई

CAA: सुप्रीम कोर्ट आज 19 मार्च को उन याचिकाओं पर सुनवाई करेगा, जिसमें केंद्र को नागरिकता संशोधन नियम, 2024 के कार्यान्वयन पर रोक लगाने का निर्देश देने की मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं की मांग है कि जब तक कि शीर्ष अदालत नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला नहीं कर लेती, इस पर रोक लगाई जाए। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल की दलीलों को सुनाा कि अगर एक बार प्रवासी हिंदुओं को भारतीय नागरिकता प्रदान कर दी गई तो इसे वापस नहीं लिया जा सकता, इसलिए जल्द सुनवाई जरूरी है।

IUML ने दायर की याचिका

केंद्र द्वारा पेश किए गए और 2019 में संसद द्वारा पारित सीएए कानून का उद्देश्य बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाइयों सहित सताए गए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ गए हैं। केंद्र द्वारा सीएए के तहत नियम जारी करने के एक दिन बाद केरल स्थित राजनीतिक दल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग कानून को लागू करने पर रोक लगाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, आईयूएमएल ने मांग की कि विवादित कानून और नियमों पर रोक लगाई जाए और मुस्लिम समुदाय के उन लोगों के खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाए जो इस कानून के लाभ से वंचित हैं।

याचिका में दी ये दलील

आईयूएमएल के अलावा डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई), असम विधानसभा में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया, असम से कांग्रेस सांसद अब्दुल खालिक और अन्य ने भी इसके खिलाफ याचिका दी है। 2019 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष CAA को चुनौती देने वाली शुरुआती पार्टियों में से एक IUMLने यह कहते हुए याचिका दी है कि कानून में विशिष्ट देशों के गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने के लिए अत्यधिक संक्षिप्त और तेज प्रक्रिया है। उनके अनुसार, यह पूरी तरह से धार्मिक पहचान पर आधारित स्पष्ट रूप से मनमाना और भेदभावपूर्ण शासन लागू करता है।
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