Bulldozer Action: 'कार्यपालिका जज नहीं बन सकती, आरोपी का घर गिराने वाली सरकारें दोषी...' बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

Supreme Court decision on Bulldozer Action: जमीयत उलेमा ए हिंद समेत कई याचिकाकर्ताओं ने देश के अलग-अलग राज्यों में हो रहे बुलडोजर एक्शन के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था। अब अदालत ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाया है।

Supreme Court

बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला।

Supreme Court decision on Bulldozer Action: देशभर में बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने उत्तर प्रदेश से शुरू हुई बुलडोजर कार्रवाई पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि कोई भी सरकार मनमानी नहीं कर सकती है और न ही मनमाने तरीके से किसी की संपत्ति छीनी जा सकती है। अदालत ने कहा है कि सिर्फ आरोपी या दोषी का घर तोड़ना संविधान के खिलाफ है। गैरकानूनी तरीके से किसी का घर तोड़ने पर अधिकारी जिम्मेदार होंगे।

जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि उसने संविधान के तहत गारंटीकृत अधिकारों पर विचार किया है जो व्यक्तियों को राज्य की मनमानी कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान करते हैं। इसमें कहा गया है कि कानून का शासन व्यक्तियों को यह सुनिश्चित करने के लिए एक ढांचा प्रदान करता है कि उनकी संपत्ति को मनमाने ढंग से नहीं छीना जाएगा। अदालत ने कहा कि उसने शक्तियों के पृथक्करण के साथ-साथ कार्यपालिका और न्यायिक शाखाओं के अपने-अपने क्षेत्रों में काम करने के तरीके पर भी विचार किया है।

न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती कार्यपालिका

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, न्यायिक कार्य न्यायपालिका को सौंपे गए हैं और कार्यपालिका न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती। यदि कार्यपालिका किसी व्यक्ति के घर को केवल इसलिए मनमाने ढंग से ध्वस्त करती है क्योंकि वह आरोपी है, तो यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन है। कार्यपालिका किसी व्यक्ति को दोषी घोषित नहीं कर सकती और न ही वह न्यायाधीश बनकर किसी आरोपी व्यक्ति की संपत्ति को ध्वस्त करने का निर्णय ले सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने तय की गाइडलाइन

1. यदि ध्वस्तीकरण का आदेश पारित किया जाता है, तो इस आदेश के विरुद्ध अपील करने के लिए समय दिया जाना चाहिए।

2. बिना अपील के रात भर ध्वस्तीकरण के बाद महिलाओं और बच्चों को सड़कों पर देखना सुखद दृश्य नहीं है।

3. बिना कारण बताओ नोटिस के ध्वस्तीकरण नहीं।

4. मालिक को पंजीकृत डाक द्वारा नोटिस भेजा जाएगा और संरचना के बाहर नोटिस चिपकाया जाएगा।

5. नोटिस से 15 दिनों का समय नोटिस तामील होने के बाद है।

6. तामील होने के बाद कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सूचना भेजी जाएगी।

7. कलेक्टर और डीएम नगरपालिका भवनों के ध्वस्तीकरण आदि के प्रभारी नोडल अधिकारी नियुक्त करेंगे।

8. नोटिस में उल्लंघन की प्रकृति, व्यक्तिगत सुनवाई की तिथि और किसके समक्ष सुनवाई तय की गई है, निर्दिष्ट डिजिटल पोर्टल उपलब्ध कराया जाएगा, जहां नोटिस और उसमें पारित आदेश का विवरण उपलब्ध होगा।

9. प्राधिकरण व्यक्तिगत सुनवाई सुनेगा और मिनटों को रिकॉर्ड किया जाएगा और उसके बाद अंतिम आदेश पारित किया जाएगा/ इसमें यह उत्तर दिया जाना चाहिए कि क्या अनधिकृत संरचना समझौता योग्य है, और यदि केवल एक भाग समझौता योग्य नहीं पाया जाता है और यह पता लगाना है कि विध्वंस का चरम कदम ही एकमात्र उत्तर क्यों है।

10. आदेश डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाएगा।

11. आदेश के 15 दिनों के भीतर मालिक को अनधिकृत संरचना को ध्वस्त करने या हटाने का अवसर दिया जाएगा और केवल तभी जब अपीलीय निकाय ने आदेश पर रोक नहीं लगाई है, तो विध्वंस के चरण होंगे।

12. विध्वंस की कार्यवाही की वीडियोग्राफी की जाएगी। वीडियो को संरक्षित किया जाना चाहिए। उक्त विध्वंस रिपोर्ट नगर आयुक्त को भेजी जानी चाहिए।

13. सभी निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए और इन निर्देशों का पालन न करने पर अवमानना और अभियोजन की कार्रवाई की जाएगी और अधिकारियों को मुआवजे के साथ ध्वस्त संपत्ति को अपनी लागत पर वापस करने के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा।

14. सभी मुख्य सचिवों को निर्देश दिए जाने चाहिए।

इनपुट- गौरव श्रीवास्तव

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प्रांजुल श्रीवास्तव author

मैं इस वक्त टाइम्स नाउ नवभारत से जुड़ा हुआ हूं। पत्रकारिता के 8 वर्षों के तजुर्बे में मुझे और मेरी भाषाई समझ को गढ़ने और तराशने में कई वरिष्ठ पत्रक...और देखें

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