अटल के कारण राजनीति में एंट्री, लालू के सबसे बड़े विरोधी...जानिए बिहार में BJP की सियासत का सबसे बड़ा चेहरा कैसे बने सुशील मोदी
Sushil Kumar Modi Death: सुशील कुमार मोदी 1990 में सक्रिय राजनीति में आए और पटना सेंट्रल विधानसभा सीट से विधायक चुने गए। इसके बाद 1995 और 2000 में भी वे विधानसभा पहुंचे और बिहार की राजनीति में उनका कद धीरे-धीरे बढ़ता गया। 1996 से 2004 के बीच वे बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे और 2004 में सुशील मोदी ने लोकसभा चुनाव लड़ा और भागलपुर से संसद पहुंचे।
सुशील कुमार मोदी का निधन
Sushil Kumar Modi Death: बिहार की राजनीति के प्रमुख ध्रुव व बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी का सोमवार रात निधन हो गया। वह कैंसर से पीड़ित थे। देर रात करीब 9: 45 बजे दिल्ली एक्म में उन्होंने आखिरी सांस ली। सुशील कुमार मोदी ने इसी साल अप्रैल में खुलासा किया था कि वह कैंसर से पीड़ित हैं और खराब स्वास्थ्य के कारण 2024 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। सुशील कुमार मोदी के निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, पीएम मोदी, अमित शाह समेत देश के कई नेताओं ने दुख जताया है।
पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर उनके साथ एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा, "पार्टी में अपने मूल्यवान सहयोगी और दशकों से मेरे मित्र रहे सुशील मोदी जी के असामयिक निधन से अत्यंत दुख हुआ है। बिहार में भाजपा के उत्थान और उसकी सफलताओं के पीछे उनका अमूल्य योगदान रहा है। आपातकाल का पुरजोर विरोध करते हुए, उन्होंने छात्र राजनीति से अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। वे बेहद मेहनती और मिलनसार विधायक के रूप में जाने जाते थे। राजनीति से जुड़े विषयों को लेकर उनकी समझ बहुत गहरी थी। उन्होंने एक प्रशासक के तौर पर भी काफी सराहनीय कार्य किए। जीएसटी पारित होने में उनकी सक्रिय भूमिका सदैव स्मरणीय रहेगी। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और समर्थकों के साथ हैं। ओम शांति!"
छात्र राजनीति से शुरू हुआ सियासी सफर
बिहार के एक वैश्य परिवार में जन्मे सुशील मोदी पटना विश्वविद्यालय में बीएससी की पढ़ाई के दौरान छात्र राजनीति में शामिल हो गए और उन्होंने प्रसिद्ध समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 के बिहार आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दौरान वह भावी सहयोगी नीतीश कुमार और अपने विरोधी लालू प्रसाद के संपर्क में भी आए। वह बिहार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक बन गए और अक्सर राजनीति में अपने प्रवेश का श्रेय दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी को देते थे। सुशील मोदी द्वारा अक्सर साझा किए जाने वाले एक किस्से के अनुसार, 1986 में उनके विवाह समारोह में भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष वाजपेयी ने उनसे कहा था कि अब छात्र राजनीति छोड़ने और पूर्णकालिक राजनीतिक कार्यकर्ता बनने का समय आ गया है।
1990 में पहली बार पहुंचे विधानसभा
सुशील कुमार मोदी 1990 में सक्रिय राजनीति में आए और पटना सेंट्रल विधानसभा सीट से विधायक चुने गए। इसके बाद 1995 और 2000 में भी वे विधानसभा पहुंचे और बिहार की राजनीति में उनका कद धीरे-धीरे बढ़ता गया। 1996 से 2004 के बीच वे बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे और 2004 में सुशील मोदी ने लोकसभा चुनाव लड़ा और भागलपुर से संसद पहुंचे।
नीतीश के साथ लंबे समय तक रहे डिप्टी सीएम
सुशील मोदी को जनता दल (यूनाइटेड) के नेता एवं नीतीश कुमार का भी करीबी माना जाता था। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में लंबे समय तक राज्य के उपमुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। इस महत्वपूर्ण अवधि के दौरान पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का पद भी सौंपा और मोदी ने दोनों जिम्मेदारियों को कुशलता से निभाया जिससे उनके कई प्रशंसक बन गए। 2013 में नीतीश कुमार के भाजपा से पहली बार अलग होने तक सुशील मोदी उपमुख्यमंत्री के पद पर थे और चार साल बाद जब जद (यू) सुप्रीमो एक बार फिर से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल हुए तो वह वापस इस पद आसीन किए गए। नीतीश कुमार और सुशील मोदी के बीच तालमेल बिहार की राजनीति में किंवदंतियों का विषय रहा है।
लालू को इस्तीफा देने पर किया मजबूर
सुशील मोदी को उनके दृढ़ संकल्प के लिए भी जाना जाता था, जिसका पता बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की सरकार के कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी अथक सक्रियता से पता चलता था। सुशील मोदी उन याचिकाकर्ताओं में से एक होने पर गर्व करते थे जिस पर पटना उच्च न्यायालय ने बहुचर्चित चारा घोटाले की जांच सीबीआई द्वारा किए जाने के आदेश दिए थे। जिसके कारण बाद में 1997 में लालू को मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था।
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