'योगी' के गोरखपुर में इन तीन गांवों की चर्चा क्यों होती है बार बार

गोरखपुर जनपद मुख्यालय से करीब 59 किमी की दूरी पर बड़हलगंज कस्बा है। इस कस्बे से 15 किमी के दायरे में टांड़ा,महुआपार और मामखोर गांव की चर्चा खास वजह से आमतौर पर होती है।

गोरखपुर, सीएम योगी आदित्यनाथ का गृह जनपद

गोरखपुर की पहचान अब सीएम योगी आदित्यनाथ( CM Yogi Adityanath) से होती है। इस जिले की पहचान में बदमाश नेपथ्य में हैं। लेकिन 1980, 1990 के दशक में तस्वीर ऐसी नहीं थी। अपराध के जरिए सियासत में जगह बनाने की तरकीब जब दो खास लोगों के दिमाग कौंधने लगी तो गोरखपुर की गलियां रक्तरंजित हो गईं और दामन दागदार हुआ। यहां पर हम उन तीन लोगों के बारे में बताएंगे जिनके गांव करीब करीब एक ही इलाके में है। बड़हलगंज कस्बे से महज 15 किमी के दायरे में तीन गांव टांड़ा (Tanda), महुआपार (Mahuapar) और मामखोर(Mamkhor) की खास चर्चा होती है। वैसे तो यह सामान्य गांवों की तरह ही हैं। लेकिन तीन खास नामों ने इन गांवों को चर्चा में ला दिया। टांड़ा का संबंध हरिशंकर तिवारी(Hari Shankar Tiwari) से, महुआपार से वीरेंद्र प्रताप शाही (Virendra Pratap Shahi) का रिश्ता और मामखोर से श्रीप्रकाश शुक्ला (Shri Prakash Shukla) का नाता रहा है। इन तीनों में एक बात जो करीब करीब एक जैसी थी वो था अपराध से रिश्ता। वीरेंद्र प्रताप शाही और श्री प्रकाश शुक्ला अब इस दुनिया में नहीं है। सिर्फ हरिशंकर तिवारी का शारीरिक वजूद है और उनके दामन अब बेदाग हो चुका है।

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टांड़ा, हरिशंकर तिवारी

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सबसे पहले टांड़ा से गोरखपुर पहुंचने वाले हरिशंकर तिवारी के बारे में समझने की जरूरत है। हरिशंकर तिवारी को प्यार से लोग पंडित जी बुलाया करते हैं। अपनी जिंदगी के शुरुआती दिनों में वो आम किसान की तरह थे। लेकिन गोरखपुर शहर जब पहुंचे तो महत्वाकांक्षा का दायरा इस कदर बढ़ा कि उसे हासिल करने के लिए उन हर उपायों को आजमाया जो उनके बड़े सपने को साकार कर सकता था। स्थानीय लोग बताते हैं कि गोरखपुर की राजनीति में वीर बहादुर सिंह के अलावा एक बड़ा नाम रविंद्र सिंह का था जो विधायक थे। हरिशंकर तिवारी को लगने लगा था कि वीर बहादुर सिंह या रविंद्र सिंह से बिन मुकाबला उनकी पहचान नहीं बन पाएगी। इस तरह के घटनाक्रम के बीच रविंद्र सिंह की गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर हत्या हो जाती है और हरिशंकर तिवारी के नाम की चर्चा होने लगी। हालांकि उनका नाम कभी इस केस में सीधे तौर पर नहीं आया। लेकिन इस घटना की वजह से उनका सीधा टकराव वीरेंद्र प्रताप शाही से हुआ जो रविंद्र सिंह के समर्थक माने जाते थे।

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