बापू को जहर देने से मना करने वाले रसोइए के परिजन मायूस, पोते-पोतियों अब भी राष्ट्रपति का वादा पूरा होने का इंतजार

चंपारण सत्याग्रह 1917 में हुआ था। तब महात्मा गांधी ने नील किसानों की भयावह स्थिति के बारे में जानने के लिए अविभाजित चंपारण जिले के तत्कालीन मुख्यालय मोतिहारी का दौरा किया था।

Gandhi
Champaran Satyagrah: वर्ष 1917 में चंपारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी को जहर देने के एक ब्रिटिश अधिकारी के आदेश का उल्लंघन करने वाले रसोइए बतख मियां के पोते-पोतियों को अभी भी उस पूरी जमीन का इंतजार है, जिसका वादा स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने 1952 में किया था। बतख मियां को उनके देशभक्तिपूर्ण कार्य के लिए अंग्रेजों ने यातनाएं दीं और उन्हें उनकी भूमि से बेदखल कर दिया था। 1957 में उनकी मृत्यु हो गई।

1917 में हुआ था चंपारण सत्याग्रह

चंपारण सत्याग्रह 1917 में हुआ था। तब महात्मा गांधी ने नील किसानों की भयावह स्थिति के बारे में जानने के लिए अविभाजित चंपारण जिले के तत्कालीन मुख्यालय मोतिहारी का दौरा किया था। नील बागान के ब्रिटिश प्रबंधक इरविन ने गांधी को रात के खाने के लिए आमंत्रित किया था और अपने रसोइये बतख मियां से उन्हें जहर मिला हुआ दूध परोसने के लिए कहा था। बतख मियां ने आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया और साजिश का पर्दाफाश कर दिया, जिससे गांधी की जान बच गई। इरविन को केवल उनके पहले नाम से जाना जाता है।
नील किसानों का आंदोलन चंपारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक ऐतिहासिक घटना बन गया और अंततः अंग्रेजों को आंदोलनकारी किसानों की मांगें माननी पड़ी थीं। बतख मियां के पोते कलाम अंसारी (60) ने बताया कि हमारे दादा ने गांधीजी को साजिश के बारे में सूचित किया था। लेकिन उन्हें अपनी इस देशभक्ति की भारी कीमत चुकानी पड़ी। उन्हें जेल में डाल कर यातनाएं दी गईं। उन्हें उनके घर से और फिर परिवार सहित गांव से बाहर निकाल दिया गया।
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