इस्लामी ताकतों को खुश करने के लिए 1999 में हसीना ने मुझे देश से बाहर निकाल दिया था, तस्लीमा ने याद दिलाया पुराना दौर

बांग्लादेश में सांप्रदायिकता और महिला समानता पर अपने लेखन के कारण इस्लामी कट्टरपंथियों की आलोचना का शिकार होने के बाद तसलीमा 1994 से बांग्लादेश से निर्वासित हैं।

शेख हसीना और तसलीमा नसरीन

Taslima Nasreen on Sheikh Hasina: लेखिका तसलीमा नसरीन ने कहा है कि जिन इस्लामी ताकतों ने उन्हें बांग्लादेश से बाहर निकाला था, उन्होंने ही शेख हसीना को देश छोड़ने पर मजबूर किया। तसलीमा को उनकी पुस्तक ‘लज्जा’ को लेकर हुए विरोध-प्रदर्शनों के बाद 1990 के दशक में बांग्लादेश से निर्वासित कर दिया गया था। हसीना ने अपनी सरकार की विवादास्पद आरक्षण प्रणाली के विरुद्ध जनता में भारी आक्रोश के बीच सोमवार को बांग्लादेश के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और देश छोड़कर चली गईं। इस प्रणाली के तहत 1971 के मुक्ति संग्राम में लड़ने वालों के परिवारों के लिए 30 प्रतिशत नौकरियां आरक्षित की गई थीं। इस आरक्षण प्रणाली के खिलाफ प्रदर्शनों में 400 से अधिक लोगों की मौत हो गई है।

तस्लीमा का हसीना पर निशाना

तसलीमा ने हसीना की स्थिति को विडंबनापूर्ण बताते हुए एक्स पर लिखा, हसीना ने इस्लामी ताकतों को खुश करने के लिए मुझे 1999 में उस समय मेरे देश से बाहर निकाल दिया था, जब मेरी मां मृत्युशय्या पर थीं और मैं उनसे मिलने के लिए बांग्लादेश आई थी। उन्होंने मुझे देश में दोबारा घुसने नहीं दिया। छात्र आंदोलन में शामिल उन्हीं इस्लामी ताकतों ने आज हसीना को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया।

‘लज्जा’ और ‘आमार मेयेबेला’पर बैन

बांग्लादेश में सांप्रदायिकता और महिला समानता पर अपने लेखन के कारण इस्लामी कट्टरपंथियों की आलोचना का शिकार होने के बाद तसलीमा 1994 से बांग्लादेश से निर्वासित हैं। उपन्यास ‘लज्जा’ (1993) और तसलीमा की आत्मकथा ‘आमार मेयेबेला’ (1998) समेत उनकी कुछ पुस्तकों को बांग्लादेश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। ‘लज्जा’ में भारत में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद बंगाली हिंदुओं के साथ हुई हिंसा, बलात्कार, लूटपाट और हत्या की घटनाओं का विस्तृत विवरण दिया गया है, जिसके कारण इस पुस्तक की कड़ी निंदा हुई थी।

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