Bharat Jodo Yatra:कांग्रेस के भीतर सुलग रहा ज्वालामुखी विस्फोट के मुहाने पर पहुंचा!
मध्यप्रदेश के बाद भारत जोड़ो यात्रा 3 दिसंबर को राजस्थान पहुंच रही है। लेकिन यात्रा के राजस्थान पहुंचने से पहले ही कांग्रेस के भीतर सुलग रहा ज्वालामुखी विस्फोट के मुहाने पर पहुंच गया है।
प्रतीकात्मक फोटो
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रहा सियासी खींचतान अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। एक तरफ यात्रा की तैयारी और दूसरी ओर सचिन पायलट की ताजपोशी की अटकलों ने गहलोत गुट को बागी होने पर मजबूर कर सकता है।सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस आलाकमान भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान प्रवास के दौरान ही कोई बड़ा फैसला ले सकता है। इस बात की पुख्ता जानकारी मिल रही है की गहलोत और पायलट का मामला अब और ज्यादा नहीं टाला जा सकता है।
हाल ही में जिस तरह से अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के खिलाफ फ्रंट खोला है, इसे इस बात का पूर्वानुमान माना जा रहा है। गहलोत ने न सिर्फ सचिन पायलट को गद्दार कहा बल्कि ये भी साफ कर दिया की वो किसी भी सूरत में सचिन को राजस्थान का सीएम स्वीकार नही करेंगे।
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अब सवाल ये उठता है की कांग्रेस नेतृत्व यानी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के पास इस सूरत में क्या विकल्प बचता है। क्या खरगे गहलोत की उपेक्षा कर कोई बड़ा फैसला लेने का जोखिम उठा सकते हैं? जानकर मानते है की पार्टी पंजाब वाली गलती एक बार फिर दुहराने की स्थिति में नही है। इस सब के बीच भारत जोड़ो यात्रा कर रहे राहुल गांधी ने राजस्थान के आंतरिक संकट से खुद को ये कहते हुए दूर कर लिया की गहलोत और पायलट दोनो ही पार्टी के लिए एसेट हैं। सोनिया गांधी ने खरगे के अध्यक्ष बनते ही खुद को पार्टी गतिविधियों से दूर कर लिया है।
हां प्रियंका गांधी पंजाब की ही तरह राजस्थान में भी सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक हुए हैं। लेकिन गहलोत और कैप्टन अमरिंदर सिंह में फर्क है। कैप्टन को विधायकों का समर्थन नहीं था, जबकि गहलोत के साथ विधायकों का बहुमत है।
राजस्थान की सियासत में गहलोत और पायलट गुट के बीच शह और मात का खेल चल रहा है। इसमें केंद्रीय नेतृत्व के भी कई नेता अपनी आहुति दे रहे हैं। पार्टी के सामने दोहरी चुनौती है। एक तरफ खुद के शासित राज्य में यात्रा को अभूतपूर्व तरीके से सफल बनाना है और दूसरी तरफ राजस्थान को लेकर निर्णायक फैसला लेना है। सचिन पायलट के लिए अब नही तो कभी नही वाली स्थिति है। कांग्रेस आलाकमान से बार बार मुख्यमंत्री बनाने के आश्वासन के बाद भी गहलोत की जादू की वजह से वो गद्दी तक नही पहुंच पा रहे। वही दूसरी तरफ केंद्रीय नेतृत्व की कमजोरी और गहलोत का कद कोई भी बदलाव का फैसला होने नही देता।
कहते हैं की दूध का जला छांछ भी फूक फूक कर पीता है। कांग्रेस नेतृत्व की अदूरदर्शिता और मनमाने फैसले ने पंजाब में कांग्रेस पार्टी की जीती हुई नैया डूबा दी थी। अगर वही गलती राजस्थान में दुहराई गई तो हश्र वही हो सकता है। लेकिन ये भी तय है की राजस्थान के सियासी म्यान में गहलोत या पायलट में किसी एक का ही तलवार रह सकता है। अब फैसला कांग्रेस नेतृत्व की सूझ बूझ पर निर्भर करता है।
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13 साल के राजनीतिक पत्रकारिता के अनुभव में मैंने राज्य की राजधानियों से लेकर देश की राजधानी तक सियासी हलचल को करीब से देखा है। प्लांट की गई बातें ख़बरे...और देखें
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