शाहबानो प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने बनाया UCC पर बहस का रास्ता, जानें- पूरा मामला
Uniform Civil Code: समान नागरिक संहिता पर एआईएमपीएलबी के नेताओं से पूछा गया कि उनका नजरिया क्या है तो जवाब में मौलाना मदनी ने कहा कि मस्जिद तो हमले छीन ही ली अब एक और आघात देने की तैयारी है। यहां हम उस प्रकरण यानी शाहबानो प्रकरण का जिक्र करेंगे जिसने यूसीसी पर बहस के लिए रास्ता तैयार किया।
1985 में शाहबानो प्रकरण और सुप्रीम कोर्ट का फैसला
Uniform Civil Code: समान नागरिक संहिता पर चर्चा दो वजहों से हो रही है। पहली वजह तो यह है कि इस मामले में लॉ कमीशन ने नागरिकों और संगठनों से सुझाव मांगा है। दूसरी वजह यह कि मध्य प्रदेश की एक रैली में पीएम मोदी (Narendra Modi)ने कहा कि दो सेट ऑफ रूल्स नहीं हो सकते और इस तरह से यूसीसी पर बहस को छेड़ दिया। उनके बयान के बाज सियासत भी गरम है. कांग्रेस ने कहा कि परिवार और देश दोनों अलग अलग विषय हैं, यूसीसी को अमल में लाए जाने का अर्थ है कि संविधान की तौहीन करना। डीएमके(DMK) ने कहा कि पहले हिंदू परिवारों पर लागू होना चाहिए। एआईएमपीएलबी ने तो आपात बैठक की। असदुद्दीन ओवैसी ने भी निशाना साधा। लेकिन यूसीसी बहस का सिलसिला नया नहीं है। इसकी बुनियाद 1985 में पड़ चुकी थी जब देश की सर्वोच्च अदालत ने शाहबानो तलाक प्रकरण में 20 रुपए प्रति महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश सुनाया था हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संवैधानिक संशोधन के जरिए कांग्रेस ने बदल दिया था। यूसीसी पर बहस को समझने पहले शाहबानो प्रकरण(Shah Bano alimony) को समझने की कोशिश करेंगे।
क्या था शाहबानो प्रकरण
मोहम्मद अहमद खान के एक वकील थे जिनकी सालान आय 60 हजार रुपए महीने थी। शादी के 43 साल के बाद जब उन्होंने अपनी पत्नी को तलाक दिया तो उन्हें 179 रुपए गुजारा भत्ता देने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया। यही से संविधान के अनुच्छेद 44 में दर्ज यूसीसी पर बहस की बुनियाद पड़ी। 1932 में अहमद खान और शाहबानो की शादी हुई थी। लेकिन 43 साल बाद यानी 1975 में अहमद खान ने अलग होने का फैसला किया और 1978 में शाहबानो को तलाक दिया। शाहबानो ने इंदौर की अदालत में अर्जी लगा गुजारा भत्ता 500 रुपए देने की अपील की थी। लेकिन अदालत ने गुजारा भत्ता 20 रुपए देने का फैसला सुनाया।निचली अदालत के फैसले को शाहबानो ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी। अदालत ने गुजारा भत्ता 179.20 रुपए देने का फैसला सुनाया। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अहमद खान ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था
1985 में तत्कालीन चीफ जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को कायम रखा इसके साथ ही पति अहमद खान को निर्देश दिया कि गुजारा भत्ता के अतिरित्त वो शाहबानो को 10 हजार रुपए और दें। जानकार कहते हैं कि एक तरह से हाईकोर्ट के फैसले ने यूसीसी पर चर्चा का आधार दे दिया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने और पुख्ता कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि यह बड़े दुख की बात है कि हमारे संविधान का अनुच्छेद 44 इस विषय पर मृत खत की तरह पड़ा है। ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि इस विषय पर आधिकारिक तौर पर कुछ किया जा रहा है।अदालत ने कहा कि ऐसा लग रहा है कि पर्सनल लॉ में मुस्लिम समाज ही फैसला लेगा। देश में एक दूसरे के खिलाफ विचारों को जोड़ने में समान नागरिक संहिता अहम भूमिका निभाएगा। इस विषय पर कोई भी समाज बिल्ली के गले में घंटी बांधने का काम नहीं करेगा।यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वो देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता बनाए और वो वैधानिक तौर पर अमल में लाने में सक्षम भी है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के दौरान काउंसिल पक्ष की तरफ से कहा गया कि इस मसले में वैधानिक पक्ष और उसे लागू करने के लिए राजनीतिक साहस दो अलग अलग विषय हैं। अदालत ने यह भी कहा कि हम अलग अलग विश्वासों और मजहबी विषयों के संबंध में कानून बनाए की समस्या समझते हैं। लेकिन यदि संविधान में किसी चीज का जिक्र है तो उसकी शुरुआत होनी चाहिए।
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