जयशंकर ने नेहरू दौर के कई फैसलों पर उठाए सवाल, कहा- देश का भी होना चाहिए ऑडिट

विदेश मंत्री ने तर्क दिया कि आजादी के बाद के शुरुआती वर्षों में यह बिल्कुल नेहरूवादी विचारधारा का बुलबुला था। नेहरू अमेरिका के खिलाफ थे, इसलिए हर कोई अमेरिका के खिलाफ था।

एस जयशंकर (फाइल फोटो)

S Jaishankar: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार के कुछ प्रमुख फैसलों की आलोचना करते हुए कहा कि इस सोच से बाहर निकलने की जरूरत है कि 1946 से शुरू हुआ दौर महान वर्षों का था और देश ने इस दौरान शानदार प्रदर्शन किया। ‘न्यूज18 राइजिंग भारत समिट’ में एक सत्र के दौरान एक सवाल पर जयशंकर ने कहा कि शुरुआती वर्षों में विदेश नीति काफी हद तक नेहरूवादी वैचारिक बुलबुला थी और इसके अवशेष आज भी जारी हैं।

जयशंकर ने कई मुद्दों पर रखी बात

जयशंकर ने जी20 की अध्यक्षता के दौरान भारत की भूमिका, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) को लेकर आलोचना, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और वर्तमान संदर्भ और भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान संबंधों जैसे कई मुद्दों पर बात की। आजादी के बाद शुरुआती वर्षों में सरकार की विदेश नीति के बारे में पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा, आपने पाकिस्तान को गलत पाया, आपने चीन को गलत पाया, आपने अमेरिका को सही पाया और हमारी विदेश नीति बहुत अच्छी थी। इसलिए, इसे एक तरफ रख दें।

नेहरू के निर्णयों पर समकालीन नेता उठा रहे थे सवाल

उन्होंने कहा, मैं 2024 के फायदे के लिए आज यह नहीं कह रहा। 1954 या 1950 पर गौर करें। मैं कहता हूं कि 1948, 1949, 1950, 1951, 1952 में जब निर्णय लिए जा रहे थे, तब कोई खड़ा होकर कह रहा था श्री नेहरू, आप क्या कर रहे हैं, क्या आपने इसके इस पहलू पर ध्यान दिया है? ये नेहरू के समकालीन थे जो नेहरू द्वारा उस समय लिए जा रहे निर्णयों पर सवाल उठा रहे थे। जयशंकर ने अपने दावे के समर्थन में नेहरू-लियाकत समझौते पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के विचारों और नेहरू के फैसलों पर भीम राव आंबेडकर के विचारों का हवाला दिया।
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