मुलायम सिंह यादव के वे 5 दांव, जिसने साबित किया कि वह राजनीति के थे पहलवान

82 साल की उम्र में मुलायम सिंह यादव ने अंतिम सांस ली। लेकिन उन्होंने अपने पीछे जो थाती छोड़ी उसकी चर्चा सदियों तक होती रहेगी। मुलायम सिंह के बारे में कहा जाता है कि राजनीतिक समझ उनकी तीक्ष्ण थी। वो हवा के रुख को भांप लेते थे। अगर उनके राजनीतिक करियर पर ध्यान दें तो तमाम ऐसे मौके जब कहा गया कि राजनीतिक क्षितिज पर उनका तेज ढल चुका है। लेकिन उन्होंने साबित किया कि नाम भले ही मुलायम हो इरादे फौलादी थे।

समाजवादी पार्टी के संस्थापक और संरक्षक रहे हैं मुलायम सिंह यादव

सैफई के सामान्य से परिवार में जन्मे मुलायम सिंह के खाते में बेशुमार कामयाबियां लिखी थीं। यह बात सच है कि उन्हें अपने जीवन में अकथ्य बेइंतेहा दिक्कतों का सामना करना पड़ा। लेकिन जब उनकी कामयाबी को देखते हैं तो लगता है कि उन्होंने चुनौतियों से टकराने का पेशा बना रखा हो। विधायक, सांसद, मंत्री और मुख्यमंत्री की हैसियत से उन्होंने जनसेवा की। उनके बारे में आमतौर पर कहा जाता है कि मुलायम सिंह की राजनीतिक शैली पर आप सवाल बेशक उठा सकते हैं लेकिन जननेता के तौर पर उन्होंने जो छाप छोड़ी उसे आप भुला नहीं सकते। राजनीतिक जीवन में मुलायम सिंह यादव ने कुछ खास फैसले किए जो चर्चा के विषय हैं। आप उनके फैसलों पर सवाल भी उठा सकते हैं लेकिन उन्हीं फैसलों ने भारतीय राजनीति में उन्हें स्थापित किया।

1960 में जब इंसपेक्टर को पटका

साल 1960 का और महीना जून का था। मैनपुरी जिले के करहल में जैन इंटर कॉलेज का प्रांगण दर्शकों से भरा हुआ था। मौका कवि सम्मेलन का था। दामोदकर स्वरूप विद्रोही कविता पाठ कर रहे थे। दिल्ली की गद्दी सावधान कविता पढ़नी शुरू की। प्रशासनिक अधिकारियों को कविता सरकार के खिलाफ लगी। इंस्पेक्टर स्तर का एक अधिकारी मंच पर पहुंचा और उन्हें कविता पाठ ना करने की नसीहत दी। लेकिन जब उन्होंने इनकार कर दिया तो उसने माइक छीन ली। इस बीच एक शख्स मंच पर पहुंचा और इंस्पेक्टर को पटक दिया।

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