Amazing Indians Awards 2023: शुक्ला देबनाथ ने मानव तस्करी के खिलाफ छेड़ी मुहिम, 5 हजार महिलाओं को बनाया काबिल
Times Now Amazing Indians Awards 2023: चाय बागानों से घिरे न्यू हासीमारा में एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी शुक्ला ने पहली बार देखा कि महिलाएं और लड़कियां तस्करी के मद्देनजर कितनी असुरक्षित हैं और वह उनके लिए कुछ करना चाहती थीं। कुछ वर्षों में शुक्ला ने पांच हजार से अधिक लड़कियों को ब्यूटीशियन के रूप में प्रशिक्षित किया है, जो अब अच्छी आय अर्जित कर रही हैं।
पुरस्कार लेती सुक्ला देबनाथ
Times Now Amazing Indians Awards 2023: टाइम्स नाउ अमेजिंग इंडियंस अवॉर्ड 2023 से सम्मानित शुक्ला देबनाथ ने मानव तस्करी के खिलाफ मुहिम चला रही हैं। वह आदिवासी महिलाओं के कल्याण की दिशा में भी काम कर रही हैं। उन्होंने 5,000 से अधिक आदिवासी महिलाओं को ब्यूटीशियन बनने का प्रशिक्षण देकर सशक्त बनाया है, ताकि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो जाएं और मानव तस्करी का शिकार न बनें। अलीपुरद्वार जिले के एक छोटे से शहर हासीमारा और इसके आसपास के सालबारी, डिमा जैसे इलाकों में 5,000 महिलाओं को नई आजीविका मिली है, इसका श्रेय 35 वर्षीय शुक्ला देबनाथ को जाता है। स्नातक और प्रशिक्षित ब्यूटीशियन देबनाथ अकेले ही अपने गांव की लड़कियों और महिलाओं को सशक्त बना रही हैं।
लड़कियों को ब्यूटीशियन प्रशिक्षण
वह कहती हैं, मेरे इलाके में 83 चाय बागान हैं, और वहां काम करने वाले अधिकांश लोग गरीब और अशिक्षित हैं। यहां के परिवारों में लड़कियों सहित अपने बच्चों को इस उम्मीद में दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में काम करने के लिए भेजते हैं कि वे बेहतर कमाई कर सकें। लेकिन उनमें से ज्यादातर यौन तस्करी, मानव तस्करी का शिकार हो जाते हैं। आज शुक्ला देबनाथ अपनी आय का एक हिस्सा अपने क्षेत्र की महिलाओं और लड़कियों को ब्यूटीशियन प्रशिक्षण देने में खर्च कर रही हैं।
5 हजार से अधिक लड़कियों को ब्यूटीशियन की ट्रेनिंग दी
35 वर्षीय शुक्ला पोस्ट ग्रेजुएट हैं और एक प्रशिक्षित ब्यूटीशियन हैं। चाय बागानों से घिरे न्यू हासीमारा में एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी शुक्ला ने पहली बार देखा कि महिलाएं और लड़कियां तस्करी के मद्देनजर कितनी असुरक्षित हैं और वह उनके लिए कुछ करना चाहती थीं। कुछ वर्षों में शुक्ला ने पांच हजार से अधिक लड़कियों को ब्यूटीशियन के रूप में प्रशिक्षित किया है, जो अब अच्छी आय अर्जित कर रही हैं।
उनकी एनजीओ को कोई सरकारी सहायता नहीं मिलती है। उनके पास जो भी बचत है उसका इस्तेमाल महिला सशक्तिकरण के लिए सामाजिक कल्याण के कार्यों में किया जा रहा है। सुक्ला चाहती थीं कि महिलाएं और लड़कियां उनकी तरह स्वतंत्र बनें, वह उन्हें बेहतर शिक्षा देना चाहती हैं। वह सारा खर्चा अपनी जेब से ही देती हैं। बिना किसी सरकारी मदद के वह इस मुहिम को आगे बढ़ा रही हैं।
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