'कोई अपराध में शामिल है केवल इसलिए उसका घर तोड़ देना असंवैधानिक', बुलडोजर एक्शन के खिलाफ SC की 10 बड़ी टिप्पणी
Supreme Court, Bulldozer Justice : न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि बुलडोजर के जरिए न्याय करना किसी भी सभ्य न्याय व्यवस्था का हिस्सा नहीं हो सकता। पीठ ने कहा कि राज्य को अवैध अतिक्रमणों या गैरकानूनी रूप से निर्मित संरचनाओं को हटाने के लिए कार्रवाई करने से पहले कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।
बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला।
Supreme Court, Bulldozer Justice : आरोपियों के खिलाफ राज्य सरकारों के बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बड़ा फैसला दिया। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए बगैर आरोपियों के घरों एवं निजी संपत्तियों पर बुलडोजर चलाना 'असंवैधानिक' है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी कथित रूप से किसी अपराध में शामिल हैं, केवल इसलिए उनके आवास एवं संपत्तियों को गिराना उचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर राज्य सरकारों को दिशा-निर्देश जारी किए और इनका पालन करने के लिए कहा। शीर्ष अदालत ने कहा कि कार्यपालक अधिकारी न्यायाधीश नहीं बन सकते, आरोपी को दोषी करार नहीं दे सकते और उसका घर नहीं गिरा सकते। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले कई अहम बातें कहीं-
बुलडोजर एक्शन के खिलाफ SC की 10 बड़ी बातें
- न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि लोगों के घर सिर्फ इसलिए ध्वस्त कर दिए जाएं कि वे आरोपी या दोषी हैं, तो यह पूरी तरह असंवैधानिक होगा। न्यायमूर्ति गवई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि महिलाएं और बच्चे रातभर सकड़ों पर रहें, यह अच्छी बात नहीं है।
- पीठ ने निर्देश दिया कि कारण बताओ नोटिस दिए बिना कोई तोड़फोड़ नहीं की जाए और नोटिस जारी किए जाने के 15 दिनों के भीतर भी कोई तोड़फोड़ नहीं की जाए।
- पीठ ने निर्देश दिया कि ढहाने की कार्यवाही की वीडियोग्राफी कराई जाए। पीठ ने यह स्पष्ट किया कि यदि सार्वजनिक भूमि पर अनधिकृत निर्माण हो या अदालत द्वारा विध्वंस का आदेश दिया गया हो तो वहां उसके निर्देश लागू नहीं होंगे।
- इसने कहा कि संविधान और आपराधिक कानून के आलोक में अभियुक्तों और दोषियों को कुछ अधिकार और सुरक्षा उपाय प्राप्त हैं।
- उच्चतम न्यायालय ने देश में संपत्तियों को ढहाने के लिए दिशा-निर्देश तय करने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर यह व्यवस्था दी।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि नागरिकों की आवाज को उनकी संपत्ति नष्ट करने की धमकी देकर नहीं दबाया जा सकता और कानून के शासन में ‘बुलडोजर न्याय’पूरी तरह अस्वीकार्य है।
- न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि बुलडोजर के जरिए न्याय करना किसी भी सभ्य न्याय व्यवस्था का हिस्सा नहीं हो सकता।
- पीठ ने कहा कि राज्य को अवैध अतिक्रमणों या गैरकानूनी रूप से निर्मित संरचनाओं को हटाने के लिए कार्रवाई करने से पहले कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।पीठ ने कहा कि कानून के शासन में बुलडोजर न्याय बिल्कुल अस्वीकार्य है। अगर इसकी अनुमति दी गई तो अनुच्छेद 300ए के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता समाप्त हो जाएगी।
- संविधान के अनुच्छेद 300ए में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को कानून के प्राधिकार के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। शीर्ष अदालत ने 2019 में उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में एक मकान को ध्वस्त करने से संबंधित मामले में छह नवंबर को अपना फैसला सुनाया।
- पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को अंतरिम उपाय के तौर पर याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता का मकान एक सड़क परियोजना के लिए ढहा दिया गया था।
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