Transgender Blood Donation: ताकि भरोसा बरकरार रहे, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र का हलफनामा
ट्रांसजेंडर समाज और समान लिंग के प्रति झुकाव रखने वाले लोगों के रक्तदान के संबंध में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। सरकार ने वैज्ञानिक आधार पर इस तरह के समाज से जुड़े लोगों के ब्लड डोनेशन पर चिंता जाहिर की है।
ब्लड डोनेशन के संबंध में केंद्र सरकार का हलफनामा
Transgender Blood Donation: हम सभी का कभी ना कभी अस्पतालों से वास्ता पड़ता है। हम अक्सर कहते और सुनते दोनों हैं कि ब्लड की जरूरत है। अस्पतालों में ब्लड बैंक के जरिए खून मिलता है हालांकि इसके लिए हमें बदले में ब्लड देना भी पड़ता है। इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट में दिलचस्प जिरह होने जा रही है कि क्या ट्रांसजेंडर या खास लिंग से झुकाव रखने वालों को खून डोनेट करने की इजाजत मिलनी चाहिए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने हलफनामा पेश किया है कि जो कोई ब्लड बैंक से खून लेता है उसे यह भरोसा होना चाहिए कि खून 100 फीसद मेडिकली शुद्ध है, लिहाजा इस आधार पर ट्रांसजेंडर और सेम लिंग से झुकाव रखने वाले या सेक्स वर्कर को खून डोनेट करने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए।
क्या है मामला
फरवरी के महीने में ट्रांसजेंडर समाज से संबंध रखने वाले थंगदाम संता सिंह ने पीआईएल दाखिल कर कहा कि केंद्र सरकार और नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल द्वारा जारी गाइडलाइन असंवैधानिक है। इसके जरिए जेंडर आइडेंटिटी और खास लिंग के प्रति झुकाव रखने वालों से विभेद होता है। इस संबंध में अदालत ने केंद्र, नेशनल एड्स कंट्रोल संगठन और एनबीटीसी से मार्च में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। बताया जा रहा है कि मार्च के आखिरी हफ्ते में इस विषय पर सुनवाई होगी।
कौन लोग कर सकते हैं रक्तदान
कोई भी स्वस्थ वयस्क, पुरुष और महिला दोनों, रक्तदान कर सकते हैं। पुरुष हर तीन महीने में एक बार सुरक्षित रूप से दान कर सकते हैं जबकि महिलाएं हर चार महीने में दान कर सकती हैं।
- डोनर की उम्र 18 से 65 के बीच में होनी चाहिए।
- डोनर का वजह 45 किलोग्राम से कम नहीं हो।
- ब्लड देते समय शरीर का तापमान और पल्स सामान्य हो।
- ब्लड प्रेसर सामान्य होना चाहिए।
- अगर महिला हो तो डिलिवरी के एक साल बाद हालांकि बच्चे को वो खुद का दूध ना पिलाती हो।
- पिछले तीन महीनों में मलेरिया ना हुआ, या ऐसा इलाका जहां मलेरिया की संभावना अधिक हो पिछले तीन साल में इसकी चपेट में ना आया हो।
- 15 दिन में वैक्सीनेशन ना हुआ हो, और पिछले एक साल में रैबीज का टीका ना लगा हो।
- किसी तरह का कैंसर ना हो।
- दिल की बीमारी ना हो।
- हेपेटाइटिस बी, सी या एड्स ना हो।
अदालत पर टिकी नजर
अधिवक्ता अनिंदिता पुजारी के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि "ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, एमएसएम और महिला यौनकर्मियों पर प्रतिबंध नकारात्मक रूढ़िवादिता पर आधारित धारणाओं की वजह से है। यह अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव के खिलाफ अधिकार) के तहत भेदभाव के बराबर है। संविधान के रूप में उन्हें सामाजिक भागीदारी और स्वास्थ्य सेवा में कम योग्य और अधीनस्थ माना जाता है।
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ललित राय author
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