बालासाहेब ठाकरे के देवघर में पूजे जाने वाले धनुष-बाण को चुराकर, दिल्ली के तलवे चाटने वालों के हाथ सौंपा गया: सामना

​सामना में लिखा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी को अब लाल किले से घोषणा करनी चाहिए, ‘हमने आजादी के 75 साल बर्बाद कर दिए हैं और देश में ‘हम करें सो’ कानून की तानाशाही प्रस्थापित हो गई है। न्यायालय, संसद, अखबार और चुनाव आयोग जैसी स्वायत्त संस्थाएं इसके आगे हमारे गुलाम के तौर पर काम करेंगी।

शिवसेना के मुखपत्र में बीजेपी पर जमकर निशाना साधा गया है

निर्वाचन आयोग ने शिंदे नीत गुट को वास्तविक शिवसेना के तौर पर मान्यता देते हुए पार्टी का चुनाव निशान ‘धनुष बाण’ को भी उसे आवंटित कर दिया था जिसके बाद से ही उद्धव गुट बीजेपी और चुनाव आयोग पर हमलावर है। यह फैसला ठाकरे के लिए झटका माना जा रहा है क्योंकि उनके पिता बाल ठाकरे ने वर्ष 1966 में इस पार्टी की स्थापना की थी। आयोग के इस फैसले को लेकर उद्धव गुट के मुखपत्र माने जाने वाले 'सामना' में एक संपादकीय लिखा गया है। इस संपादकीय में बीजेपी पर जमकर निशाना साधा गया है।

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क्या है संपादकीय में

संपादकीय में लिखा गया है, 'शिवसेना’ नाम और चुनाव चिह्न खरीदने के बाद भारतीय जनता पार्टी की कमली पैर का घुंघरू टूटने तक नाच रही है। मिंधे गुट से ज्यादा खुश भारतीय जनता पार्टी नजर आ रही है। किसी दुकान से चना-मूंगफली खरीद ली गई हो, उस तरह से शिवसेना नाम और चुनाव चिह्न के मामले का ‘फैसला’ भी खरीद लिया गया है, अब यह बात छिपी नहीं है। किसी प्रॉपर्टी का सौदा किया जाए, उस तरह से चुनाव आयोग ने ठाकरे द्वारा स्थापित, जतन की गई शिवसेना को दिल्ली के तलवे चाटने के लिए मिंधों के हाथ दे दी। गृह मंत्री अमित शाह महाराष्ट्र आए और उन्होंने मिंधों को शिवसेना-धनुष बाण मिलने पर खुशी व्यक्त की। मिंधों को धनुष-बाण का चिह्न मिला, वह इन्हीं अमित शाह की मेहरबानी से, क्या अब यह छिपा है? ये इंसान महाराष्ट्र और मराठी लोगों का नंबर एक शत्रु है। इसलिए जो भी श्रीमान शाह के पीछे पड़कर अपनी राजनीतिक खुजली मिटाना चाहते हैं, उन सभी को क्या महाराष्ट्र का दुश्मन मानना पड़ेगा।'

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शिवराय की विरासत

लेख में आगे कहा गया है, 'छत्रपति शिवाजी महाराज ने महाराष्ट्र के स्वाभिमान के लिए हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की। उस स्वराज्य की जड़ खोदने आए हर ‘शाह’ की अंतड़ी छत्रपति और उनके मावलों ने निकाल ली। छत्रपति का वही विचार लेकर महाराष्ट्र आज भी जिंदा है और धधक रहा है। बेईमान और गद्दारों को शिवाजी महाराज ने कड़ा सबक सिखाया, इस इतिहास को कोई नहीं भूल सकता। उसी शिवराय की विरासत को शिवसेना आगे बढ़ा रही है। हालांकि, चुनाव आयोग ने ‘शिवसेना’ नाम और चुनाव चिह्न पर मिंधों के पक्ष में अपना फैसला सुनाया है, फिर भी शिवसेना ठाकरे की थी, है और रहेगी। 40 बेईमान विधायक, 12 सांसद यानी शिवसेना, ऐसा निर्णय देकर जनभावना और कानून की धज्जियां उड़ाई गईं। लाखों शिवसैनिकों ने दिल्ली के चुनाव आयोग के पास अपना शपथपत्र ‘ट्रक’ भरकर भेजा, क्या उसका कोई मूल्य नहीं?'

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