बाल ठाकरे का असली वारिस कौन ! दशहरा रैली से मिलेगा राजनीतिक संदेश
शक्ति प्रदर्शन के लिए उद्धव ठाकरे गुट मुंबई के ऐतिहासिक शिवाजी पार्क में अपनी रैली आयोजित करेगा। वहीं शिंदे गुट बांद्रा के एमएमआरडीए मैदान में रैली का आयोजन करेगा। दोनों गुट ने दावा किया है कि वह बाल ठाकरे के आदर्शों को आगे ले जाने के असली हकदार हैं। ऐसे में दशहरा रैली दोनों गुटों के लिए बेहद अहम है।
उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे एक बार फिर होंगे आमने-सामने
- शक्ति प्रदर्शन के लिए उद्धव ठाकरे गुट मुंबई के ऐतिहासिक शिवाजी पार्क में अपनी रैली आयोजित करेगा।
- शिंदे गुट बांद्रा के एमएमआरडीए मैदान में रैली का आयोजन करेगा।
- बाला साहेब ठाकरे का असली उत्तराधिकारी कौन की है लड़ाई।
टीजर के जरिए दोनों गुट दे रहे हैं संदेश
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शक्ति प्रदर्शन के लिए उद्धव ठाकरे गुट मुंबई के ऐतिहासिक शिवाजी पार्क में अपनी रैली आयोजित करेगा। वहीं शिंदे गुट बांद्रा के एमएमआरडीए मैदान में रैली का आयोजन करेगा। दोनों गुट ने दावा किया है कि वह बाल ठाकरे के आदर्शों को आगे ले जाने के असली हकदार है। अपनी ताकत दिखाने और ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाने के लिए दोनों गुटों ने टीजर जारी कर दिया है। जिसमें दोनों गुट एक-दूसरे पर तंज कसते नजर आ रहे हैं।
शिवसेना द्वारा शेयर किए गए वीडियो में उद्धव ठाकरे को बड़ी सभा को संबोधित करते हुए दिखाया गया है। इससे संकेत दिया गया है कि वो एक और विशाल दशहरा रैली के लिए तैयार हैं। टीजर में कहा किया गया है कि हम कभी किसी की पीठ में छुरा घोंपते नहीं हैं, लेकिन अगर कोई हमें पीठ में छुरा घोंपता है, तो हम उन्हें हैक कर लेते हैं।
वहीं शिंदे गुट ने कहा कि कांग्रेस पार्टी के इस रावण को जलाएंगे, हम इसे दफना भी देंगे। शिंदे खेमा ने दावा किया कि वह बाल ठाकरे की हिंदुत्व विचारधारा के सच्चे अनुयायी है। और उसने आरोप लगाया कि उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और राकांपा से हाथ मिलाकर अपने ही पिता की पीठ में छुरा घोंपा, जो बाल ठाकरे के सच्चे दुश्मन थे।
दशहरा रैली क्यों है अहम
शिव सेना का गठन 19 जून 1966 को बाला साहेब ठाकरे ने किया था। उस वक्त ठाकरे ने ऐलान किया था कि शिवसेना की पहली रैली दशहरे के दिन होगी। बाला साहेब ठाकरे के एलान के मुताबिक उस साल दशहरे के दिन 30 अक्तूबर को दादर के शिवाजी पार्क में ये रैली हुई। और उसके बाद हर साल रैली होती रही। और वह शिव सेना की राजनीतिक ताकत दिखाने का जरिया बन गई। अब शिंदे गुट ने उद्धव ठाकरे को झटका देते हुए, न केवल उनकी सरकार गिराई बल्कि वह उनके कई साथियों को अपने गुट में मिला लिए। इसके बाद स्थानीय निकाय चुनाव होने वाले हैं, जहां पर पहली बार दोनों गुट को अपनी राजनीतिक किस्मत आजमाने का मौका मिलेगा। ऐसे में दशहरा रैली बेहद अहम होने वाली है।
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