UN रिपोर्ट में चेतावनी: 2025 तक भारत में भूजल की हो सकती है भारी कमी, भरपाई होगी मुश्किल
सऊदी अरब जैसे कुछ देश पहले ही भूजल जोखिम स्तर को पार कर चुके हैं, जबकि भारत समेत अन्य देश इससे ज्यादा दूर नहीं हैं।
यूएन रिपोर्ट में चेतावनी
UN Report on Groundwater Level: संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट ने साल 2025 तक भारत में भूजल की भारी कमी को लेकर आगाह किया है। यूएन रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सिंधु-गंगा बेसिन के कुछ क्षेत्र पहले ही भूजल की कमी के चरम बिंदु को पार कर चुके हैं और पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 2025 तक भूजल की भारी कमी होने का अनुमान है। "इंटरकनेक्टेड डिजास्टर रिस्क रिपोर्ट 2023" शीर्षक और संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय - पर्यावरण और मानव सुरक्षा संस्थान (UNU-EHS) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि दुनिया छह पर्यावरणीय महत्वपूर्ण बिंदुओं के करीब पहुंच रही है: तेजी से विलुप्त होने, भूजल की कमी, पहाड़ी ग्लेशियर का पिघलना, अंतरिक्ष मलबा, असहनीय गर्मी और असुरक्षित भविष्य।
70 प्रतिशत भूजल का इस्तेमाल कृषि में
लगभग 70 प्रतिशत भूजल निकासी का उपयोग कृषि के लिए किया जाता है, ये अक्सर तब होता है जब भूमिगत जल स्रोत अपर्याप्त होते हैं। जलभृत (Aquifers) सूखे के कारण होने वाले कृषि घाटे को कम करने में अहम भूमिका निभाते हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण यह चुनौती और भी बदतर होने की आशंका है।
हालांकि, रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि जलभृत अपने चरम बिंदु पर पहुंच रहे हैं। दुनिया के आधे से अधिक प्रमुख जलभृत प्राकृतिक रूप से फिर से भरने की तुलना में तेजी से कम हो रहे हैं। जब जल स्तर मौजूदा कुंओं द्वारा पहुंच योग्य स्तर से नीचे चला जाएगा, तो किसानों की पानी तक पहुंच खो सकती है। इससे पूरे खाद्य उत्पादन प्रणालियों के लिए खतरा पैदा हो सकता है। सऊदी अरब जैसे कुछ देश पहले ही भूजल जोखिम स्तर को पार कर चुके हैं, जबकि भारत समेत अन्य देश इससे ज्यादा दूर नहीं हैं।
भारत दुनिया में सबसे अधिक भूजल का करता है इस्तेमाल
भारत दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है, जो अमेरिका और चीन के संयुक्त इस्तेमाल से अधिक है। भारत का उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र देश की बढ़ती 1.4 अरब आबादी के लिए रोटी की टोकरी के रूप में कार्य करता है, जिसमें पंजाब और हरियाणा देश में कुल 50 फीसदी चावल और 85 प्रतिशत गेहूं का उत्पादन करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि पंजाब में 78 प्रतिशत कुओं का बहुत अधिक दोहन किया गया है और पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 2025 तक गंभीर रूप से भूजल स्तर बेहद कम होने का अनुमान है।
यूएनयू-ईएचएस के प्रमुख लेखक और वरिष्ठ विशेषज्ञ जैक ओ'कॉनर ने कहा, जैसे-जैसे हम इन महत्वपूर्ण बिंदुओं के करीब पहुंचेंगे, हम पहले से ही प्रभावों का अनुभव करना शुरू कर देंगे। एक बार इसे पार करने के बाद वापस जाना मुश्किल हो जाएगा। हमारी रिपोर्ट हमें आगे आने वाले जोखिमों, उनके पीछे के कारणों और उनसे बचने के लिए जरूरी बदलावों को देखने में मदद कर सकती है।
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करीब 18 वर्षों से पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हुआ हूं। इस दौरान प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल का अनुभव हासिल किया। कई मीडिया संस्थानों में मिले अनुभव ने ...और देखें
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