UCC का 'जिन्न': एक तरफ दबा विपक्षी एकता का शोर तो दूसरी तरफ एनडीए में विरोध के बोल, अभी और क्या-क्या होगा?

Uniform Civil Code: 1967 के आम चुनाव में सबसे पहले भारतीय जनसंघ ने देश में समान नागरिक संहिता को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था। हालांकि, कांग्रेस सत्ता में आई और यूसीसी का मुद्दा धरा ही रह गया। इसके बाद 1980 में भाजपा की स्थापना के बाद एक बार फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग ने भारतीय राजनीति में अपनी जगह बनानी शुरू की।

UCC in India

Uniform Civil Code: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भोपाल दौरे से पहले देश में विपक्षी एकता का शोर था। पीएम के दौरे से पहले पटना में विपक्षी दलों की एक बड़ी बैठक हुई थी। इस बैठक के बाद अगली बैठक की तैयारी चल रही है। हालांकि, जैसे ही पीएम ने भोपाल में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए समान नागरिक संहिता (UCC) का जिन्न बाहर निकाला, विपक्षी एकता का शोर धीमा पड़ गया।

पूरे देश में चर्चा अब समान नागरिक संहिता की है। उत्तराखंड में तो इसका मसौदा भी तैयार कर लिया गया है और यूसीसी लागू करने की तैयारी है। हालांकि, देश में यूसीसी लागू होने में अभी वक्त है, लेकिन इस मुद्दे ने राजनीति को एक नया मोड़ दे दिया है और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर ध्रुवीकरण की पॉलिटिक्स शुरू हो गई है। ऐसे में आइए जानते हैं कि समान नागरिक संहिता का मुद्दा इतना महत्वपूर्ण क्यों है और यह जिन्न कैसे बाहर आया? विपक्षी दलों का क्या कहना है? क्या विपक्षी दल भी यूसीसी के समर्थन में हैं? NDA के घटक दलों का इसपर क्या रुख है?

कैसे बाहर आया यूसीसी का जिन्न?

इसे जानने के लिए हमें इतिहास में जाना होगा। 1967 के आम चुनाव में सबसे पहले भारतीय जनसंघ ने देश में समान नागरिक संहिता को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था। हालांकि, कांग्रेस सत्ता में आई और यूसीसी का मुद्दा धरा ही रह गया। इसके बाद 1980 में भाजपा की स्थापना के बाद एक बार फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग ने भारतीय राजनीति में अपनी जगह बनानी शुरू की। तब से लेकर अब तक यह मुद्दा सिर्फ बयानों तक ही सीमित रहा, लेकिन बीते दिनों भोपाल के एक कार्यक्रम में पीएम मोदी ने कहा, एक ही परिवार में दो लोगों के लिए अलग-अलग नियम नहीं हो सकते। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि कॉमन सिविल कोड लाओ। इसके बाद फिर से यूसीसी का 'जिन्न' फिर से बाहर आ गया।

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