प्रभात गुप्ता हत्याकांड में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी HC से भी बरी, ट्रायल कोर्ट का फैसला बरकरार
Prabhat Gupta Murder Case: प्रभात गुप्ता हत्याकांड में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी समेत चार आरोपियों को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बरी कर दिया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की याचिका को खारिज करते हुए निचली अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें उन्हें बरी किया गया था।
प्रभात गुप्ता हत्याकांड में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी का बड़ी राहत (फोटो- Ajay Misra Teni)
- सन् 2000 में हुई थी प्रभात गुप्ता की हत्या
- उभरते हुए छात्र नेता थे प्रभात गुप्ता
- प्रभात गुप्ता की हत्या में अजय मिश्रा टेनी थे आरोपी
Prabhat Gupta Murder Case: प्रभात गुप्ता हत्याकांड में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी को बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट ने यूपी सरकार की उस अपील को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने प्रभात गुप्ता हत्याकांड पर निचली अदालत की आदेश को चुनौती दी थी। निचली अदालत ने अजय मिश्रा टेनी को प्रभात गुप्ता हत्याकांड से बरी कर दिया था। यानि प्रभात गुप्ता हत्याकांड में अजय मिश्रा टेनी बरी हो गए हैं।
सभी आरोपी बरी
प्रभात गुप्ता हत्याकांड में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी समेत चार आरोपियों को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बरी कर दिया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की याचिका को खारिज करते हुए निचली अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें उन्हें बरी किया गया था। इस मामले में अजय मिश्रा के साथ ही कोर्ट ने आरोपी सुभाष मामा, शशि भूषण पिंकी और राकेश डालू को भी बरी कर दिया है।
क्या है प्रभात गुप्ता मर्डर केस
प्रभात गुप्ता एक उभरते हुए छात्र नेता थे। तेजी से राजनीति में अपनी पहचान बना रहे थे कि 8 जुलाई 2000 में छात्र नेता प्रभात गुप्ता की तिकोनिया (लखीमपुर खीरी) में उनके घर के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में केंद्रीय मंत्री टेनी समेत 4 लोगों को आरोपी बनाया गया था। प्रभात समाजवादी पार्टी की यूथ विंग के सदस्य थे, जबकि टेनी तब भाजपा से जुड़े थे। अजय मिश्रा टेनी के खिलाफ आरोप लगे थे कि उनका मृतक से पंचायत चुनाव को लेकर विवाद था और इसलिए मृतक की टेनी व सह आरोपी सुभाष उर्फ मामा ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। ट्रायल कोर्ट ने 2004 में सबूतों के अभाव में टेनी को बरी कर दिया था। जिसके बाद राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में इस आदेश के खिलाफ अपील की थी।
तीन बार फैसला रहा था सुरक्षित
इस मामले पर हाईकोर्ट में अब तक तीन बार फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। पहली बार 12 मार्च 2018 को जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और दिनेश कुमार सिंह ने फैसला सुरक्षित रखा था। दूसरी बार 10 नवंबर 2022 को जस्टिस रमेश सिन्हा और रेणु अग्रवाल ने फैसला सुरक्षित रखा था। तीसरी बार 21 फरवरी 2023 को जस्टिस अट्टू रहमान मसूदी और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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