पूजा स्थल अधिनियम 1991 : सुप्रीम कोर्ट ने कहा-सरकार से जवाब मिलने के बाद ही करेंगे सुनवाई, नई याचिकाएं मंजूर नहीं
Hearing of Places of Worship Act 1991 : साल 1991 के पूजा स्थल अधिनियम की कुछ धाराओं को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की। अर्जियों पर सुनिवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि अभी वह इस मामले की सुनवाई नहीं करेगा। उसने पहले केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।
सुप्रीम कोर्ट में पूजा स्थल अधिनियम की सुनवाई।
Hearing of Places of Worship Act 1991 : साल 1991 के पूजा स्थल अधिनियम की कुछ धाराओं को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू नहीं की। कोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई होने तक इस मामले में देश भर में अब कोई भी नई याचिकाएं स्वीकार नहीं की जाएंगी। साथ ही उसने इस मामले में सरकार से हलफनामा दायर करते हुए उससे जवाब मांगा है। कोर्ट ने सभी याचिकाकर्ताओं को इसकी कॉपी देने का आदेश भी दिया है। कोर्ट ने कहा कि बिना केंद्र के जवाब के सुनवाई नहीं हो सकती। CJI ने कहा कि केंद्र के जवाब दाखिल करने के बाद जिन्हें जवाब दाखिल करना हो वो चार हफ्ते में जवाब दाखिल कर सकते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि पहले वह अपने समक्ष दाखिल अर्जियों का निस्तारण करेगा।
सर्वे का आदेश भी नहीं देगी कोई अदालत
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया कि जब तक प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित तब तक धार्मिक स्थल पर दावे को लेकर कोई नया मुकदमा देश की कोई कोई अदालत नहीं सुनेगी। ऐसे लंबित मामलों में कोई भी अदालत कोई प्रभावी और अंतरिम आदेश पास नहीं करेगी। सर्वे का भी आदेश नहीं देगी
बता दें कि यह कानून 15 अगस्त, 1947 को पूजा स्थलों के स्वरूप को बदलने या उन्हें वापस पाने के लिए मुकदमा दायर करने पर रोक लगाता है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना,न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की तीन-न्यायाधीशों की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है।
यह कानून कहता है कि 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान उपासना स्थलों का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा, जैसा वह उस दिन था। यह किसी धार्मिक स्थल पर फिर से दावा करने या उसके स्वरूप में बदलाव के लिए वाद दायर करने पर रोक लगाता है। इस संबंध में शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें से एक याचिका अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है। उपाध्याय ने उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धाराओं दो, तीन और चार को रद्द किए जाने का अनुरोध किया है।
'न्यायिक समाधान के अधिकार को छीन लेते हैं ये प्रावधान'
याचिका में दिए गए तर्कों में से एक तर्क यह है कि ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल पर पुन: दावा करने के न्यायिक समाधान के अधिकार को छीन लेते हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और महाराष्ट्र के विधायक जितेंद्र सतीश अव्हाड ने भी उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई लंबित याचिकाओं के खिलाफ याचिका दायर करके कहा है कि यह कानून देश की सार्वजनिक व्यवस्था, बंधुत्व, एकता और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करता है।
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कई मुकदमों की पृष्ठभूमि में होगी सुनवाई
इस मामले की सुनवाई विभिन्न अदालतों में दायर कई मुकदमों की पृष्ठभूमि में होगी, जिनमें वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद से संबंधित मुकदमे शामिल हैं। इन मामलों में दावा किया गया है कि इन स्थलों का निर्माण प्राचीन मंदिरों को नष्ट करने के बाद किया गया था और हिंदुओं को वहां पूजा करने की अनुमति दिए जाने का अनुरोध किया गया है। इनमें से अधिकतर मामलों में मुस्लिम पक्ष ने 1991 के कानून का हवाला देते हुए तर्क दिया है कि ऐसे मुकदमे स्वीकार्य नहीं हैं।
स्वामी ने भी दायर की हैं अर्जियां
इस कानून के प्रावधानों के खिलाफ पूर्व राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर याचिका सहित छह याचिकाएं दायर की गई हैं। स्वामी यह चाहते हैं कि शीर्ष अदालत कुछ प्रावधानों की फिर से व्याख्या करे ताकि हिंदू वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद पर दावा करने के लिए सक्षम हो सकें, वहीं उपाध्याय ने दावा किया कि पूरा कानून असंवैधानिक है और इस पर फिर से व्याख्या करने का कोई सवाल ही नहीं उठता।
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