'राष्ट्रपति को क्या करना है यह न्यायपालिका नहीं बता सकती', विधेयक पर 3 महीने में फैसला करने के निर्देश पर धनखड़ का तंज

Jagdeep Dhankhar : कुछ दिन पहले ही उच्चतम न्यायालय ने राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ रखे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए समयसीमा तय की थी। उपराष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय को पूर्ण शक्तियां प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 142 को ‘न्यायपालिका को चौबीसों घंटे उपलब्ध लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल’ करार दिया।

Jagdeep Dhankhar

न्यायपालिका की अपनी भूमिका और दायरा है-धनखड़।

Jagdeep Dhankhar : किसी विधेयक पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने प्रतिक्रया दी है। धनखड़ ने कहा कि भारत में ऐसी व्यवस्था नहीं है जहां न्यायपालिका राष्ट्रपति को निर्देश दे। दरअसल, राज्यों के विधेयकों पर सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति से तीन महीने के भीतर फैसला करने के लिए कहा है। राज्यसभा के छठे बैच के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए उप राष्ट्रपति ने तंज कसते हुए कहा, 'तो हमारे पास ऐसे जज होंगे जो कानून बनाएंगे, जो कार्यपालिका के काम करेंगे, जो सुपर पार्लियामेंट की तरह काम करेंगे और चूंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होगा तो इसलिए वे जवाबदेह नहीं होंगे।'

अनुच्छेद 142 परमाणु हथियार बन गया है-धनखड़

बता दें कि कुछ दिन पहले ही उच्चतम न्यायालय ने राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ रखे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए समयसीमा तय की थी। उपराष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय को पूर्ण शक्तियां प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 142 को ‘न्यायपालिका को चौबीसों घंटे उपलब्ध लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल’ करार दिया। उन्होंने कहा, ‘अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है और (जो) न्यायपालिका के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध है।’

'हमें बेहद संवेदनशील होना चाहिए'

संविधान का अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को अपने समक्ष किसी भी मामले में ‘पूर्ण न्याय’ सुनिश्चित करने हेतु आदेश जारी करने की शक्ति देता है। इस शक्ति को उच्चतम न्यायालय की ‘पूर्ण शक्ति’ के रूप में भी जाना जाता है। धनखड़ ने कहा, ‘हाल ही में एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम किस दिशा में जा रहे हैं?’ उन्होंने कहा, ‘देश में क्या हो रहा है? हमें बेहद संवेदनशील होना चाहिए। यह सवाल नहीं है कि कोई पुनर्विचार याचिका दायर करता है या नहीं। हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र की कभी उम्मीद नहीं की थी। राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा जाता है और यदि ऐसा नहीं होता है, तो यह कानून बन जाता है।’

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उनकी चिंताएं ‘बहुत उच्च स्तर’ पर थीं -धनखड़

उपराष्ट्रपति ने कहा कि उनकी चिंताएं ‘बहुत उच्च स्तर’ पर थीं और उन्होंने ‘अपने जीवन में’कभी नहीं सोचा था कि उन्हें ऐसा देखने को मिलेगा।

धनखड़ ने कार्यक्रम में मौजूद लोगों को याद दिलाया कि भारत के राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है। उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति संविधान के संरक्षण, सुरक्षा और बचाव की शपथ लेते हैं। मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसद और न्यायाधीश सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं।’उप राष्ट्रपति ने कहा, ‘हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है। इसके लिए पांच या उससे अधिक न्यायाधीश होने चाहिए...।’

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आलोक कुमार राव author

करीब 20 सालों से पत्रकारिता के पेशे में काम करते हुए प्रिंट, एजेंसी, टेलीविजन, डिजिटल के अनुभव ने समाचारों की एक अंतर्दृष्टि और समझ विकसित की है। इ...और देखें

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