Weather in India: उत्तर पश्चिम भारत को प्रचंड ठंड से कब मिलेगी निजात और क्यों हो रहे हैं मौसम में बड़े बदलाव?

Cold Wave in India: दरअसल, जब एक पश्चिमी विक्षोभ - पश्चिम एशिया से गर्म नम हवाओं वाली एक मौसम प्रणाली - क्षेत्र में आती है, तो हवा की दिशा बदल जाती है। पहाड़ों से आने वाली सर्द उत्तर-पश्चिमी हवाएं चलनी बंद हो जाती हैं जिससे तापमान में वृद्धि होती है।

उत्तर पश्चिम भारत में सोमवार (16 जनवरी, 2023) को कड़ाके की ठंड का प्रकोप रहा और कई हिस्सों में न्यूनतम तापमान एक से तीन डिग्री सेल्सियस के बीच दर्ज किया गया। हिमालय से आने वाली सर्द उत्तर-पश्चिमी हवाओं के चलते मैदानी इलाकों में अगले दो दिनों में और ज्यादा ठंड पड़ने की संभावना है। हालांकि, भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने कहा है कि दो पश्चिमी विक्षोभों के प्रभाव में 19 जनवरी से शीत लहर की स्थिति समाप्त हो जाएगी, जो इस क्षेत्र में एक के बाद एक कम अंतराल पर प्रभावी होंगे।

आईएमडी के अनुसार, दिल्ली के कई हिस्सों और पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में शीतलहर से लेकर गंभीर शीत लहर की स्थिति बनी हुई है। आईएमडी ने कहा कि 17 जनवरी तक उत्तर पश्चिम भारत के कई हिस्सों में न्यूनतम तापमान में लगभग दो डिग्री सेल्सियस की और गिरावट आने की संभावना है। इसमें कहा गया है कि दो ताजा पश्चिमी विक्षोभों के प्रभाव में 18 जनवरी से 20 जनवरी तक न्यूनतम तापमान में धीरे-धीरे तीन से पांच डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी।

दरअसल, पिछले कुछ सालों में भारत समेत दुनियाभर में मौसम के अलग रूप देखे जा रहे हैं। कभी भयंकर गर्मी, तो कभी मूसलाधार बारिश और अब एक बार फिर कड़ाके की ठंड मौसम के बदलते स्वरूप को दिखा रही है। बीते साल 2022 के मौसम को देखें तो पता चलेगा कि इस एक साल में भी कई बदलाव हुए हैं। साल के पहले महीने से लेकर दिसंबर तक मौसम का रूख पूरी तरह अलग रहा। मानसून और गर्मी के आगमन में भी बदलाव देखा गया। वहीं, बीते साल मौसम में ठंड के दिनों में भी बदलाव देखा गया। मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है। इसी के चलते मौसम हर वक्त करवट बदल रहा है।

जलवायु एक लंबे समय में या कुछ सालों में किसी स्थान का औसत मौसम है और जलवायु परिवर्तन उन्हीं परिस्थितियों में हुए बदलाव के कारण होता है। वर्तमान जलवायु परिवर्तन का असर ग्लोबल वामिर्ंग और मौसम के पैटर्न दोनों पर पड़ रहा है। दरअसल जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग और मानसून में अस्थिरता को बढ़ा रही है, जिसके चलते गर्मी के मौसम की अवधि बढ़ रही है और बारिश की अवधि कम हो रही है।

मौसम विशेषज्ञ नवदीप दहिया ने आईएएनएस को बताया कि मौसम में बदलाव को अगर बड़े पैमाने पर देखें तो इसके पीछे 'ला नीना' एक कारण है। जिसकी वजह से प्रशांत महासागर की सतह का तापमान काफी ठंडा हो जाता है। नवदीप ने कहा कि ला नीना ने 2019 से अपना प्रभाव दिखाना शुरू किया है। इसकी वजह से ही हमारे यहां ठंड ज्यादा हो रही है। साल 2023 में भी इसका यही पैटर्न काम कर रहा है। उन्होंने बताया कि पहले मौसम स्थिर होता था। एक तय समय और मात्रा तक ठंड, गर्मी और बरसात होती थी। मगर पिछले 50 सालों से जलवायु परिवर्तन के कारण ट्रेंड बदल रहा है। पिछले एक दशक में अल नीनो और ला नीना दोनों में ही गर्मी भी काफी हुई है।

पिछले कुछ सालों में घरेलू कामों, कारखानों और परिचालन के लिए मानव तेल, गैस और कोयले का इस्तेमाल बढ़ा है। जिसका जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। पर्यावरण वैज्ञानिक चंदर वीर सिंह ने आईएएनएस को बताया कि जब हम जीवाश्म ईंधन जलाते हैं, तो उनसे निकलने वाले ग्रीन हाउस गैस में सबसे ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड होता है। वातावरण में इन गैसों की बढ़ती मौजूदगी के कारण धरती का तापमान बढ़ने लगता है। जानकारी के मुताबिक 19वीं सदी की तुलना में धरती का तापमान लगभग 1.2 सेल्सियस अधिक बढ़ चुका है और वातावरण में सीओ-2 की मात्रा में भी 40-50 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है।

मौसम विज्ञानियों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन की वजह से तकरीबन हर मौसम में असामान्य व्यवहार नजर आता है। मानव जनित गतिविधियों की वजह से होने वाले जलवायु परिवर्तन का असर गर्मियों में भीषण गर्मी और सर्दियों में कड़ाके की ठंड के तौर पर सामने आ रहा है। पिछले कुछ सालों में मानसून प्रणालियों में भी बदलाव देखा गया है। गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के कई हिस्सों में पिछले साल यानी 2022 में ज्यादा बारिश दर्ज की गई थी। इसके बिल्कुल उलट पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार में बारिश ही नहीं हुई। पिछले साल के अगस्त महीने में बंगाल की खाड़ी में एक के बाद एक दो मानसून चक्र बने जिससे पूरा मध्य भारत प्रभावित हुआ।

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