हिंसा स्वीकार्य नहीं- जानिए वक्फ एक्ट के खिलाफ सुनवाई के पहले दिन सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या हुआ, विरोध में कपिल सिब्बल ने रखी दलीलें
वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मे 72 याचिकाएं दाखिल की गई हैं, जिसमें से कुछ राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने दाखिल किए हैं तो कुछ मुस्लिम संगठनों ने। वक्फ संशोधन विधेयक के सपोर्ट में भी कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं। अब इस मामले की सुनवाई कल यानि कि गुरुवार को होगी।

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ विधेयक के खिलाफ हुई सुनवाई (फाइल फोटो)
वक्फ विधेयक के खिलाफ आज यानि कि बुधवार को सुनवाई हुई। आज के दिन सुप्रीम कोर्ट ने कोई आदेश जारी नहीं किया, लेकिन कुछ तीखे सवाल जरूर सरकार से पूछे। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा वक्फ के विरोध में की जा रही हिंसा को स्वीकार नहीं किया जा सकता। वक्फ विधेयक के खिलाफ दाखिल याचिकाओं की ओर से कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा और इसे संविधान का उल्लंघन बताया।
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"वक्फ बाय यूजर" पर सुप्रीम कोर्ट के केंद्र से सवाल
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि "वक्फ बाय यूजर" की अनुमति कैसे नहीं दी जा सकती है, क्योंकि कई लोगों के पास ऐसे वक्फ पंजीकृत कराने के लिए आवश्यक दस्तावेज नहीं होंगे। "वक्फ बाय यूजर" एक ऐसी प्रथा को संदर्भित करता है, जहां किसी संपत्ति को ऐसे उद्देश्यों के लिए उसके दीर्घकालिक, निर्बाध उपयोग के आधार पर धार्मिक या धर्मार्थ बंदोबस्ती (वक्फ) के रूप में मान्यता दी जाती है, भले ही मालिक द्वारा वक्फ की औपचारिक, लिखित घोषणा न की गई हो। पीठ ने कहा, "आप वक्फ बाय यूजर को कैसे पंजीकृत करेंगे? उनके पास कौन से दस्तावेज होंगे? हां, कुछ दुरुपयोग हुआ है। लेकिन कुछ वास्तविक भी हैं। मैंने प्रिवी काउंसिल के फैसलों को भी पढ़ा है। वक्फ बाय यूजर को मान्यता दी गई है। अगर आप इसे पूर्ववत करते हैं तो यह एक समस्या होगी। विधानमंडल किसी फैसले, आदेश या डिक्री को शून्य घोषित नहीं कर सकता। आप केवल आधार ले सकते हैं।"
आज सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या हुआ
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग है जो वक्फ अधिनियम द्वारा शासित नहीं होना चाहता। पीठ ने तब मेहता से पूछा, "क्या आप यह कह रहे हैं कि अब से आप मुसलमानों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्डों का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे। इसे खुलकर कहें।"
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जब 100 या 200 साल पहले किसी सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ घोषित किया जाता है, तो उसे अचानक वक्फ बोर्ड द्वारा अपने अधीन नहीं लिया जा सकता और अन्यथा घोषित नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा- "आप अतीत को फिर से नहीं लिख सकते।"
- मेहता ने कहा कि संसद के दोनों सदनों द्वारा इसे पारित करने से पहले एक संयुक्त संसदीय समिति ने 38 बैठकें कीं और 98.2 लाख ज्ञापनों की जांच की।
- सीजेआई खन्ना ने यह भी कहा कि एक उच्च न्यायालय को याचिकाओं से निपटने के लिए कहा जा सकता है। "दो पहलू हैं जिन्हें हम दोनों पक्षों से संबोधित करने के लिए कहना चाहते हैं। सबसे पहले, क्या हमें इसे उच्च न्यायालय को सौंपना चाहिए या विचार करना चाहिए? दूसरा, संक्षेप में बताएं कि आप वास्तव में क्या आग्रह कर रहे हैं और क्या तर्क देना चाहते हैं?" हम यह नहीं कह रहे हैं कि कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने और फैसला करने में सुप्रीम कोर्ट पर कोई रोक है।"
- याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वक्फ संशोधन अधिनियम का हवाला दिया और कहा कि वह उस प्रावधान को चुनौती दे रहे हैं, जिसमें कहा गया है कि केवल मुसलमान ही वक्फ बना सकते हैं। सिब्बल ने पूछा, "राज्य कैसे तय कर सकता है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं और इसलिए वक्फ बनाने के योग्य हूं या नहीं?" उन्होंने कहा, "सरकार कैसे कह सकती है कि केवल वे लोग ही वक्फ बना सकते हैं जो पिछले पांच सालों से इस्लाम का पालन कर रहे हैं?"
- कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि वक्फ अधिनियम का पूरे भारत में प्रभाव होगा और याचिकाओं को उच्च न्यायालय में नहीं भेजा जाना चाहिए।
- वक्फ अधिनियम का विरोध कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ इस्लाम की एक स्थापित प्रथा है और इसे खत्म नहीं किया जा सकता।
वक्फ संशोधन विधेयक हो चुका है नोटिफाई
केंद्र ने हाल ही में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को अधिसूचित किया, जिसे 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई। दोनों सदनों में गरमागरम बहस के बाद संसद से इसे पारित किया गया। विधेयक को राज्यसभा में 128 सदस्यों ने पक्ष में और 95 ने विरोध में मतदान करके पारित किया। इसे लोकसभा ने मंजूरी दे दी, जिसमें 288 सदस्यों ने इसका समर्थन किया और 232 ने इसका विरोध किया।
विरोध में 72 याचिकाएं
एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), जमीयत उलमा-ए-हिंद, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके), कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद सहित लगभग 72 याचिकाएं अधिनियम की वैधता को चुनौती देते हुए दायर की गई हैं। केंद्र ने 8 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय में एक कैविएट दायर की और मामले में कोई भी आदेश पारित करने से पहले सुनवाई की मांग की। किसी पक्ष द्वारा उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में कैविएट दायर की जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसका पक्ष सुने बिना कोई आदेश पारित न किया जाए।
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