क्या है DEG जो 66 बच्चों की दवा में बना जानलेवा,गांबिया जैसी भारत में हो चुकी हैं 70 से ज्यादा मौतें
WHO On Indian Company Cough Syurup:डायइथाइलीन ग्लाईकॉल एक मीठे स्वाद वाला रंगहीन केमिकल है। यह पानी में अघुलनशील दवाओं और रसायनों के लिए एक सॉल्वेंट के रूप में काम करता है। और इसका इस्तेमाल सिगरेट, एंटीफ्रीज, लुब्रीकेंट, ब्रेक फ्लूड, सौंदर्य प्रसाधन और वॉलपेपर स्ट्रिपर्स जैसे उत्पादों को बनाने के लिए किया जाता है।जो मनुष्यों द्वारा अनुचित तरीके इस्तेमाल किए जाने पर जहरीला हो जाता है।
भारतीय कंपनी के कफ सिरप पर सवाल !
- भारत में ग्लाइकाल के इस्तेमाल से बड़ी संख्या में मौत का मामला साल 1973 में पहली बार सुर्खियों में आया था।
- दुनिया में पहली बार साल 1937 में डायइथाइलीन ग्लाईकॉल से मौत का मामला अमेरिका में आया था। जिसमें करीब 100 लोगों की मौत हो गई थी।
- भारत सहित दुनिया के 8 देशों में यह मामले सामने आ चुके हैं।
भारत में साल 1973 में डायइथाइलीन ग्लाईकॉल से मौत का मामला सुर्खियों में आया था। और उससे चेन्नई में 14 बच्चों की मौत हो गई थी। उसके बाद 4 मामले और आ चुके हैं, जिसमें 70 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई थी। वहीं अगर दुनिया में देखा जाय तो 1937 में डायइथाइलीन ग्लाईकॉल से मौत का मामला संयुक्त राज्य अमेरिका में आया था। जिसमें करीब 100 लोगों की मौत हो गई थी। और मरने वालों में दो तिहाई बच्चे थे।
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क्या है डायइथाइलीन ग्लाईकॉल
ड्रग वॉच की रिपोर्ट के अनुसार डायइथाइलीन ग्लाईकॉल एक मीठे स्वाद वाला रंगहीन केमिकल है। जो मनुष्यों द्वारा निगले जाने पर जहरीला होता है। यह पानी में अघुलनशील दवाओं और रसायनों के लिए एक सॉल्वेंट के रूप में काम करता है। और इसका इस्तेमाल सिगरेट, एंटीफ्रीज, लुब्रीकेंट, ब्रेक फ्लूड, सौंदर्य प्रसाधन और वॉलपेपर स्ट्रिपर्स जैसे उत्पादों को बनाने के लिए किया जाता है।
जहरीला होने के कारण, भोजन या दवाओं में इसके इस्तेमाल की अनुमति नहीं है। लेकिन इसकी घुलनशीलता के कारण, कुछ दवा कंपनियों द्वारा इसे कफ सिरप और एसिटामिनोफेन जैसे दवाओं में ग्लिसरीन की जगह अनुचित रूप से इस्तेमाल करने के मामले सामने आए हैं।
क्यों हो जाती है मौत
अगर किसी सिरप या दवा में डायइथाइलीन ग्लाईकॉल को अनुचित तरीके से मिलाया गया है। तो इससे किडनी फेल का सबसे बड़ा खतरा होता है। गांबिया के मामले में भी WHO ने इसी तरह की आशंका जताई है। अगर व्यक्ति को 8-24 घंटे के अंदर सही ईलाज नहीं मिलता है, तो 2-7 दिन में कई सारे जरूरी अंगों के खराब होने का खतरा बढ़ जाता है। जिसके कारण पीड़ित व्यक्ति की मौत हो जाती है। डायइथाइलीन ग्लाईकॉल और एथिलीन ग्लाईकॉल के इस्तेमाल से पेट दर्द, उल्टी, दस्त, पेशाब करने में दिक्कत, सिरदर्द, मानसिक स्थिति में बदलाव और गुर्दे को गंभीर नुकसान हो सकता है, जिससे मरीज की मौत भी हो सकती है।
भारत में 1973 में पहला मामला सामने आया
- रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में ग्लाइकाल के इस्तेमाल से बड़ी संख्या में मौत का मामला साल 1973 में पहली बार सुर्खियों में आया था। उस वक्त चेन्नई के अस्पताल में 14 बच्चों की मौत होई थी।
- इसके बाद साल 1986 में मुंबई में भी ऐसा मामला सामने आया था। और उस दौरान भी 14 बच्चों की मौत हुई थी।
- साल 1998 में अब तक का सबसे बड़ा हादसा नई दिल्ली में सामने आया था। जब 33 बच्चों की मौत हो गई थी।
- इसके अलावा 2020 में जम्मू और कश्मीर के उधमपुर में भी ऐसा ही मामला सामने आया था, उस दौरान 12 बच्चों की मौत हो गई थी।
हरियाणा की है कंपनी
WHO के अनुसार भारत की कंपनी मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड के उत्पाद प्रोमेथाजिन ओरल सॉल्यूशन, कोफेक्समालिन बेबी कफ सिरप, मेकॉफ बेबी कफ सिरप और मैग्रिप एन कोल्ड सिरप हैं। जिनमें जानलेवा डायइथाइलीन ग्लाईकॉल का अनुचित तरीके इस्तेमाल किया गया है। उसके अनुसार WHO द्वारा प्राप्त किए गए 23 नमूनों में , 4 नमूनों में डायथाइलीन ग्लाइकॉल/एथिलीन ग्लाइकॉल पाया गया है। मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड हरियाणा में मैन्युफैक्चरिंग इकाइयां हैं।
इन देशों में भी आ चुके है मामले
देश | साल |
संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) | 1937 |
दक्षिण अफ्रीका | 1969 |
नाइजीरिया | 1990,2008 |
बांग्लादेश | 1990 |
अर्जेंटीना | 1992 |
हैती | 1995 |
पनामा | 2006 |
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