Kuki vs Meitei: मणिपुर हिंसा के बीच समझें क्या है मेती- कूकी विवाद
kuki vs meitei: मणिपुर में मेती और कूकी के बीच विवाद नया नहीं है। लेकिन मणिपुर हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद जमीनी स्तर गरम होने लगा था। इन सबके बीच हम आपको बताएंगे कि मेती-कूकी विवाद क्या है।
जानें क्या है मणिपुर का मेती-कूकी विवाद
- मणिपुर की आबादी में मेती बहुसंख्यक
- कूकी ट्राइब्स का पहाड़ों में रिहाइश
- एसटी का दर्जा चाहता है मेती समाज
kuki vs meitei: 3 मई को हजारों की संख्या में मणिपुर के 10 जिलों में प्रदर्शनकारी इकट्ठा होकर मेती समाज को एसटी का दर्जा दिए जाने का विरोध कर रहे थे। लेकिन माहौल(manipur violence reason in hindi) खराब हुआ और मणिपुर जल उठा। हालात को नियंत्रण में लाने के लिए देखते ही गोली मारने के आदेश हैं, बॉक्सर मैरीकॉम ने पीएम और गृहमंत्री दोनों से अपील करते हुए लिखा कि उनका राज्य जल रहा है, मदद कीजिए। हालात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि गृहमंत्री ने कर्नाटक का चुनावी दौरा रद्द कर दिया है। लेकिन सवाल यह है कि इस विवाद में मेती और कूकी समाज का जिक्र क्यों हो रहा है।
मेती-कूकी विवाद ऐतिहासिक
मणिपुर में मेती(who are Meiteis in Manipur) बहुसंख्यक हैं और इनका विस्तार मुख्य रूप से राज्य के इंफाल घाटी क्षेत्र में स्थित हैं जो कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 10% है। दूसरी ओर, आदिवासी (जिनमें मुख्य रूप से नागा और कुकी शामिल हैं) उनकी आबादी लगभग 40% है। ये लोग मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में निवास करते हैं जो मणिपुर के लगभग 90% क्षेत्र में फैला हुआ है। बहुसंख्यक समुदाय होने के अलावा, मेती (Meitei people) को राज्य विधानसभा में अधिक प्रतिनिधित्व भी मिलता है क्योंकि मणिपुर की कुल 60 विधानसभा सीटों में से 40 इंफाल घाटी (Kuki and Meitei)क्षेत्र से हैं।
1947 में आजादी से पहले मणिपुर के राजा ने इंफाल घाटी और पहाड़ी जिलों को प्रशासित करने में मदद के लिए दो कानूनों की घोषणा की। एक घाटी में लोगों के लिए मणिपुर राज्य संविधान अधिनियम था और दूसरा मुख्य रूप से पहाड़ियों( Manipur caste wise population) में रहने वालों के लिए मणिपुर राज्य पहाड़ी (प्रशासन) विनियमन था। मणिपुर के भारतीय संघ में शामिल होने के बाद भी दोनों क्षेत्रों के प्रशासन में अंतर बना रहा। जब मणिपुर केंद्र शासित प्रदेश था तब पहाड़ी क्षेत्रों की सरकारी संस्था को स्थायी समिति के रूप में जाना जाता था। दोनों कानूनों में प्रावधान था कि मैदानी इलाकों में रहने वाले लोग पहाड़ियों में जमीन नहीं खरीद सकते। मणिपुर को राज्य का दर्जा मिलने के बाद इसका नाम बदलकर पहाड़ी क्षेत्र समिति कर दिया गया और इसे पहाड़ियों में रहने वाले राज्य के कूकी(Kuki tribe religion) आदिवासी लोगों के हितों की रक्षा करने का काम सौंपा गया। वर्तमान प्रशासन प्रणाली निर्वाचित पहाड़ी क्षेत्र समिति को प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान करती है।
इम्फाल घाटी में उपलब्ध भूमि और संसाधनों में कमी, पहाड़ी क्षेत्रों को दी जाने वाली सुरक्षा और पहाड़ी जिलों में गैर-आदिवासियों द्वारा भूमि खरीदने पर प्रतिबंध के कारण 12 साल पहले मेती के लिए एसटी का दर्जा मांगने की मांग उठी थी। मणिपुर उच्च न्यायालय में यह मांग मेती जनजाति संघ सहित आठ याचिकाकर्ताओं समुदाय को संरक्षित करने, पैतृक भूमि, परंपरा, संस्कृति और विरासत को बचाने की मांग की।19 अप्रैल को, मणिपुर उच्च न्यायालय ने बीजेपी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को एसटी सूची में मेती को शामिल करने पर विचार करने के लिए केंद्र को सिफारिशें प्रस्तुत करने और अगले चार सप्ताह के भीतर मामले पर विचार करने का निर्देश जारी किया।
क्यों भड़का था मामला
आल इंडिया ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर की प्रभावी स्टूडेंट यूनियन(ATSUM) है, इस यूनियन का आरोप है कि चुड़ाचांदपुर में कुछ उपद्रवियों ने एंग्लो-कूकी वार मेमोरियल गेट को जला दिया जिसके बाद हिंसा भड़की। ATSUM का कहना है कि विरोध शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ। लेकिन वार मेमोरियल को पूरी तरह से जला देने की जानकारी हुई तो मेती और कूकी आपस में भिड़ गए। कुछ संपत्तियों और गाड़ियों को जला दिया गया और मेती समाज के लोगों को निशाना बनाया गया। इसके बाद .यह खबर सामने आई कूकी समाज के चर्च, घरों को भी निशाना बनाया गया।
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