क्या है SC/ST अधिनियम? जिसे लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कर दी बड़ी टिप्पणी, ये तभी लागू होगा जब...
What is SC/ST Act: सार्वजनिक स्थल पर ही किए गए अपराध में एससी, एसटी कानून लागू होगा। ये टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने की है। क्या आप जानते हैं कि आखिर ये अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम क्या है। आपको बताते हैं अदालत ने किस मामले में फैसला सुनाते हुए ये टिप्पणी की है।
क्या हैअत्याचार निरोधक अधिनियम?
Allahabad High Court on SC/ST Act: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि जानबूझकर अपमानित करने के कथित कृत्य के लिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) कानून, 1989 (एससी..एसटी अधिनियम) के तहत अपराध तभी बनेगा जब यह सार्वजनिक जगह पर किया गया हो। आपको सबसे पहले ये जानना चाहिए कि आखिर ये कानून क्या है और इसके तहत सजा का क्या प्रावधान है।
क्या है अत्याचार निवारण अधिनियम?
आम बोलचाल की भाषा में यह अधिनियम अत्याचार निवारण (Prevention of Atrocities) या अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम - SC ST Act कहलाता है। यह अनुसूचित जातियों और जनजातियों में शामिल लोगों के खिलाफ अपराधों को दंडित करता है। इस एक्ट के तहत पीड़ितों को विशेष सुरक्षा और अधिकार दिया जाता है।
इस एक्ट के तहत क्या हैं प्रावधान?
अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्तियों को कई प्रकार के उत्पीड़न की घटनाओं में इस अधिनियम के तहत कई चरणों में आर्थिक सहायता दिये जाने का प्रावधान किया गया है। इस एक्ट के तहत पीड़ित द्वारा FIR दर्ज कराते ही, विभाग की ओर से लाभार्थी को तुरंत आर्थिक मदद देने का प्रावधान है। अपराध सिद्ध होने की स्थिति में 40 हजार से 5 लाख रुपये तक के आर्थिक सहायता का प्रावधान है। इसके साथ ही कठोर दंड का भी प्रावधान किया गया है।
हाईकोर्ट ने किस मामले में की टिप्पणी?
पिंटू सिंह नामक व्यक्ति और दो अन्य लोगों की याचिका आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान ने इन तीन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एससी..एसटी कानून की धारा 3(1) (आर) के तहत अपराध के संबंध में आपराधिक मुकदमा रद्द कर दिया। इन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ नवंबर, 2017 में भादंसं की विभिन्न धाराओं और एससी..एसटी कानून की धारा 3(1)(आर) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि आरोपियों ने शिकायतकर्ता के घर में घुसकर उन्हें जातिसूचक गालियां दीं तथा उसे और उसके परिवार को मारा-पीटा।
घर के भीतर की गई मारपीट सार्वजनिक नहीं
सुनवाई के दौरान, दलील दी गई कि यह अपराध शिकायतकर्ता के घर के भीतर किया गया जो एक सार्वजनिक स्थल नहीं है और आम लोगों ने इस घटना को नहीं देखा, इसलिए एससी/एसटी कानून के तहत कोई अपराध नहीं बनता है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि एससी..एसटी कानून के तहत अपराध तभी बनता है जब अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को सरेआम जानबूझकर अपमानित किया जाता है।
जहां घटना हुई, वहां नहीं था कोई बाहरी
वहीं दूसरी ओर, राज्य सरकार के वकील ने याचिकाकर्ता के वकील की दलील पर आपत्ति की। हालांकि, वह इस घटना से इनकार नहीं कर सके कि यह घटना शिकायतकर्ता के घर के भीतर हुई। अदालत ने पाया कि सीआरपीसी की धारा 161 के तहत शिकायतकर्ता के बयान और प्राथमिकी को देखने पर पता चलता है कि जिस जगह पर घटना हुई, वहां कोई बाहरी व्यक्ति मौजूद नहीं था।
अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि एसएसी..एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(आर) के तहत यह आवश्यक है कि अपराध सार्वजनिक स्थान पर किया होना चाहिए। अदालत ने एससी..एसटी कानून के संबंध में मुकदमा रद्द करते हुए कहा, 'यदि अपराध आम लोगों के सामने हुआ है तो एससी..एसटी कानून के प्रावधान लागू होंगे, लेकिन मौजूदा मामले में ऐसा नहीं हुआ।”
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आयुष सिन्हा author
मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो...और देखें
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