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शहीद दिवस: 23 मार्च 1931 की वो काली रात, जब दी गई थी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी, पढ़िए पूरी दास्तान

शहीद दिवस: भगत सिंह को फांसी 23 मार्च 1931 को दी गई थी। उन्हें लाहौर केंद्रीय जेल में फांसी पर चढ़ाया गया था। उनकी शहादत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई और वे आज भी युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं।

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क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव (फोटो-@RahulGandhi)

शहीद दिवस: आज ही के दिन 23 मार्च 1931 को भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह को उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेजों ने एक फर्जी मुकदमे में दोषी ठहराया और 23 मार्च 1931 को उन्हें फांसी दे दी। उनकी शहादत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया जोश और दिशा देने का काम किया। हम इन्हीं की शहादत की याद में आज शहीद दिवस मनाते हैं।

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क्या हुआ था 23 मार्च 1931 की रात

23 मार्च 1931 को शाम के करीब 7 बजकर 33 मिनट पर उन्हें फांसी दी गई। जब उनसे अंतिम समय में उनकी इच्छा पूछी गई, तो भगत सिंह ने रूसी साम्यवादी क्रान्तिकारी लेनिन की जीवनी पढ़ते हुए इसे समाप्त करने का अनुरोध किया। जेल अधिकारियों द्वारा फांसी का समय बताने पर उन्होंने जो प्रतिक्रिया दी, वह उनकी अडिग क्रांतिकारी मानसिकता और आत्मविश्वास को उजागर करती है। उन्होंने कहा- "ठहरिए! पहले एक क्रांतिकारी दूसरे से मिल तो ले" फिर, किताब को छत की ओर उछाल कर बोल — "ठीक है अब चलो" —।

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