कुछ अलग हैं डी वाई चंद्रचूड़, पिता के फैसलों को पलटने से भी नहीं किया परहेज

डी वाई चंद्रचूड़ अपने कई बड़े फैसलों की वजह से सुर्खियों में रहे हैं। चीफ जस्टिस के लिए उनका चयन इसलिए भी खास है क्योंकि भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में यह पहला मौका होगा जब वो उस गद्दी पर आसीन होंगे जिस पर 37 साल पहले उनके पिता वाई वी चंद्रचूड़ आसीन थे।

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डी वाई चंद्रचूड़ होंगे अगले सीजेआई

मुख्य बातें
  • वाई वी चंद्रचूड़, डी वाई चंद्रचूड़ के पिता थे
  • 1978 से 1985 के दौरान चीफ जस्टिस
  • डी वाई चंद्रचूड़ ने अपने पिता के फैसलों को पलटा

डी वाई चंद्रचूड़ भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश होंगे। यह नाम सिर्फ इसलिए चर्चा में नहीं है कि इन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले दिए। बल्कि इसलिए भी चर्चा में है कि सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में अब तक का यह पहला मौका होगा जब एक बेटा उस गद्दी को सुशोभित करेगा जिस गद्दी पर उनके पिता सबसे अधिक समय तक आसीन रहे। बात हम यहां वाई वी चंद्रचूड़ की कर रहे हैं। 37 साल पहले देश के चीफ जस्टिस की गद्दी पर वो आसीन रहे और अब तक सबसे लंबे समय तक चीफ जस्टिस के तौर पर उन्होंने देश को सेवा दी। वाई वी चंद्रचूड़ 22 फरवरी 1978 से लेकर 11 जुलाई 1985 तक यानी सात साल तक जिम्मेदारी संभाली। अगर बात भावी चीफ जस्जिस की करें तो उनका कार्यकाल 9 नवंबर 2022 से लेकर 10 नवंबर 2024 तक होगा। जब बात हम डी वाई वी चंद्रचूड़ की करते हैं तो उनके कुछ फैसले बरबस याद आ जाते हैं।

पिता वाई वी चंद्रचूड़ के इन दो फैसलों को बदला

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ उस समय चर्चा में आए जब 2017-18 में अपने पिता वाई वी चंद्रचूड़ के दो बड़े फैसलों को पलट दिया था। पहला मामला एडल्टरी लॉ और शिवकांत शुक्ला वर्सेज एडीएम जबलपुर के फैसले से जुड़ा था और दूसरा फैसला साल 2018 में पलटा। डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने ऐतिहासिक फैसले में जिक्र किया कि एडल्टरी लॉ पितृसत्ता का संहिताबद्ध नियम है और सेक्सुअल ऑटोनोमी को महत्वहीन नहीं माना जा सकता है।

डी वाई चंद्रचूड़ के कुछ खास फैसले

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत 22 से 24 हफ्ते तक गर्भपात मामले की सुनवाई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच कर रही थी।

इसमें सभी महिलाओं को गर्भपात का कानूनी अधिकार देने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था। अयोध्या विवाद का फैसला करने वाली 5 जजों की बेंच में डी वाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे। उनका फैसला अलग था। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में सभी महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी थी। बता दें कि पहले मंदिर में खास उम्र समूह की महिलाएं दाखिल हो सकती थीं। उम्र की यह सीमा 10 साल से कम और 50 साल से अधिक थी। यानी कि जो महिलाएं 10 से 50 वर्ष के बीच की थीं उन्हें मंदिर में जाने की मनाही थी। महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाने वाले जजों की बेंच में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ भी थे। बेंच ने कहा था कि महिलाओं को पूजा से रोकने का मतलब है कि उनकी गरिमा का हम सम्मान नहीं कर रहे हैं।

जस्टिस चंद्रचूड़ खासतौर पर मुकदमों में अपनी खास टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं। 2018 में भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में कार्यकर्ताओं को हाउस अरेस्ट में रखा गया था। कोर्ट की बेंच ने 2-1 से हाउस अरेस्ट को सही ठहराया था। लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सरकार भले ही विरोध को स्वीकार ना कर सके। लेकिन सत्ता विपक्ष की आवाज या विरोध के सुर पर पाबंदी नहीं लगा सकती है।

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ललित राय author

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