कौन हैं अमोघ लीला दास, विवेकानंद-रामकृष्ण परमहंस पर टिप्पणी के बाद ISCON ने किया बैन

Amogh Leela Das: इस्कॉन से जुड़े भिक्षु अमोघ लीला दास ने कहा कि कोई भी पवित्र शख्स या दैवीय इंसान किसी बेजुबां के मांस का भक्षण नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि अगर स्वामी विवेकानंद होते तो उनसे इस विषय पर सवाल जरूर करते।

इस्कॉन से अमोघ लीला दास का नाता

Amogh Leela Das: इस्कॉन ने भिक्षु अमोघ लीला दास पर बैन लगा दिया है। वो इस्कॉन के द्वारका चैप्टर वाइस प्रेसिडेंट थे। आखिर ऐसा क्या हुआ कि उनके ऊपर बैन लगाया गया है। उन्होंने आखिर स्वामी विवेकानंद और उनके गुरु स्वामी परमहंस के बारे में क्या कहा था। अमोघ लीला दास ने स्वामी विवेकानंद के मांस खाने के बारे में कहा था कि कोई भी पवित्र शख्स दूसरे को नुकसान नहीं पहुंचा सकता। इसके साथ ही उन्होंने स्वामी परमहंस की शिक्ष जातो मत, तातो पथ यानि हर एक रास्ता आपको मंजिल तक नहीं ले जाता है।

कौन हैं अमोघ लीला दास

43 वर्षीय अमोघ लीला दास एक भिक्षु आध्यात्मिक कार्यकर्ता और प्रेरक वक्ता हैं, जो 12 वर्षों से इस्कॉन से जुड़े हुए हैं। वह वर्तमान में इस्कॉन के द्वारका चैप्टर के उपाध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं। उनका असली नाम आशीष अरोड़ा है और उनका जन्म लखनऊ में एक धार्मिक पंजाबी परिवार में हुआ था। वह वर्तमान में नई दिल्ली में रहते हैं। 2004 में सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल करने के बाद, उन्होंने अमेरिका स्थित एक बहुराष्ट्रीय निगम के लिए काम करना शुरू कर दिया। 2010 में कॉर्पोरेट जगत छोड़ दिया और 29 साल की उम्र में इस्कॉन में शामिल होकर एक समर्पित हरे कृष्ण ब्रह्मचारी बन गए।सोशल मीडिया पर उनके बहुत बड़े प्रशंसक हैं और धर्म और प्रेरणा के बारे में उनके वीडियो अक्सर ऑनलाइन वायरल होते रहते हैं।

अमोघ लीला दास ने क्या कहा था

दास ने वायरल वीडियो में कहा था कि कोई भी दिव्य पुरुष किसी जानवर को मार सकता है? (क्या कोई दिव्य व्यक्ति किसी जानवर को मारकर खाएगा?) क्या वह मछली खाएगा ? मछली को भी दर्द होता हैऔर अगर विवेकानन्द ने मछली खाई तो सवाल यह है कि क्या कोई दिव्य व्यक्ति मछली खा सकता है? एक दिव्य मानव के हृदय में दया होती है। क्या वह कह सकता है कि बैंगन तुलसी से बेहतर है क्योंकि बैंगन हमारी भूख मिटाता है। या, क्या वह कह सकता है कि फुटबॉल खेलना गीता पढ़ने से ज्यादा महत्वपूर्ण है ? इ बात ठीक नै अछि। लेकिन मुझे कहना होगा कि स्वामी विवेकानन्द के प्रति मेरे मन में अत्यंत सम्मान है। अगर वह यहां होते तो मैं उनके सामने साष्टांग प्रणाम करता। लेकिन हमें उनकी हर बात पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए।

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