कौन हैं मराठा समुदाय का चेहरा बने मनोज जरांगे? आंदोलन के लिए बेच दी अपनी 2 एकड़ जमीन
Who is Manoj Jarange Patil : मनोज जरांगे मूल रूप से महाराष्ट्र के बीड जिले के रहने वाले हैं। वह किसान परिवार से आते हैं और 12वीं तक पढ़े-लिखे हैं। जरांगे करीब 15 वर्षों से मराठा आरक्षण आंदोलन से जुड़े हैं। वह बाद में जालना जिले के अंबाद में रहने लगे और वहीं से आंदोलन चलाने लगे।
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग फिर तेज हुई।
Manoj Jarange Patil : महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग एक बार फिर तेज हो गई है। आरक्षण की मांग को लेकर मराठा समुदाय राज्य भर में सड़कों पर है और विरोध-प्रदर्शन कर रहा है। कई जगहों पर ये प्रदर्शन हिंसक हुए हैं। आरक्षण की मांग और आंदोलन जोर पकड़ रहा है। इन सबके बीच मनोज जरांगे पाटील मराठा आंदोलन का चेहरा बनकर उभरे हैं। इस आंदोलन का वह नेतृत्व कर रहे हैं। जरांगे ने सर्वदलीय प्रस्ताव को ठुकरा दिया है और अब पानी भी छोड़ दिया है। जाहिर है कि जरांगे की तबीयत मराठा आंदोलन को नई धार दे सकती है। राज्य में प्रदर्शन हिंसक और उग्र हो सकते हैं। ऐसे में कानून-व्यवस्था को लेकर महाराष्ट्र सरकार सतर्क है। जरांगे की भूख हड़ताल ने महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मचा दी है। महाराष्ट की सियासत में मराठा वोटों की अहमियत देखते हुए कोई भी राजनीतिक दल इस समुदाय की मांगों की अनदेखी नहीं कर सकता और न ही इन्हें हल्के में ले सकता है।
कौन हैं मनोज जरांगे?
मराठा आंदोलन की मांग को लेकर गत एक सितंबर को जालना में प्रदर्शन हुआ था। इस प्रदर्शन के दौरान मराठा आंदोलनकारियों एवं पुलिस के साथ झड़प हुई। इस प्रदर्शन के बाद मनोज जरांगे सुर्खियों में आए। उन्होंने इस प्रदर्शन का नेतृत्व किया था। दरअसल, राज्य सरकार द्वारा मराठा समुदाय को दिया गया आरक्षण सुप्रीम कोर्ट में खारिज हो जाने के बाद जरांगे अपने साथियों के साथ भूख हड़ताल पर बैठे थे। जरांगे मूल रूप से महाराष्ट्र के बीड जिले के रहने वाले हैं। वह किसान परिवार से आते हैं और 12वीं तक पढ़े-लिखे हैं। जरांगे करीब 15 वर्षों से मराठा आरक्षण आंदोलन से जुड़े हैं। वह बाद में जालना जिले के अंबाद में रहने लगे और वहीं से आंदोलन चलाने लगे। मराठा आंदोलन को लंबे समय से एक चेहरे की तलाश थी जिसकी खोज जरांगे के रूप में पूरी हुई।
जरांगे ने अपनी दो एकड़ जमीन बेच दी
जरांगे किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़े हैं। उन्होंने अपने इस आंदोलन को राजनीति से दूर रखा है। हालांकि, 2004 तक वह कांग्रेस से जुड़े रहे। वह कांग्रेस के जिलाध्यक्ष थे। बाद में इन्होंने 'शिवबा संगठन' नाम से खुद की एक संस्था बना ली। साल 2011 के बाद बीते 12 वर्षों में यह संगठन करीब 35 विरोध-प्रदर्शन कर चुका है। रिपोर्टों के मुताबिक मराठा आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए जरांगे ने अपनी दो एकड़ जमीन बेच दी। जरांगे आरक्षण की मांग को लेकर आत्महत्या करने वाले मराठा युवकों के परिजनों लिए 50 लाख रुपए के मुआवजे और सरकारी नौकरी की मांग कर रहे हैं।
मांगें पूरी नहीं हुई तो फिर उपवास पर बैठ गए
अपनी मांगों को लेकर जरांगे जालना के अंतरवाली सराटी गांव में गत 25 अक्टूबर से उपवास कर रहे हैं। इससे पहले उन्होंने गत सितंबर में 16 दिनों का उपवास रखा था। इस उपवास के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे उनसे मिले और भरोसा दिया कि सरकार उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार करेगी, इसके बाद उन्होंने अपना उपवास तोड़ा। जरांगे ने इसके लिए महाराष्ट्र सरकार को 40 दिनों का समय दिया लेकिन जब यह समय सीमा खत्म हो गई तो वह दोबारा अनिश्चितकालीन अनशन पर चले गए।
ओबीसी कोटे से आरक्षण 19 प्रतिशत
जरांगे का दावा है कि मराठा समाज मूल रूप से कुनबी जाति से है।मराठा समुदाय को यदि कुनबी प्रमाणपत्र दिया जाता है तो आरक्षण मिलने पर उसे ओबीसी कोटे से लाभ मिल जाएगा। फिलहाल राज्य में ओबीसी कोटे से आरक्षण 19 प्रतिशत है। ओबीसी समुदाय के संगठनों का मानना है कि अगर इसमें मराठा समुदाय को भी शामिल किया गया तो आरक्षण का फायदा नए प्रतिभागियों को मिलेगा। ओबीसी समुदाय का यह भी कहना है कि हमारा विरोध मराठा आरक्षण से नहीं बल्कि उन्हें ओबीसी से आरक्षण देने को लेकर है।
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