कौन हैं संतोष यादव जिसे RSS ने बनाया अपना मुख्य अतिथि

संतोष यादव भारत की महिला पर्वतारोही है। इनके खाते में दुनिया की सबसे चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करने की कामयाबी दर्ज है। हरियाणा के रेवाड़ी की रहने वाली हैं।

मुख्य बातें
हरियाणा के रेवाड़ी की रहने वाली हैं संतोष यादव दो बार 1992-93 माउंट एवरेस्ट को किया फतह साल 2000 में पद्मश्री से की गईं सम्मानित
लोग मुझसे पूछते थे कि संघी हो, देखिए किस्मत ने संघ के सर्वोच्च मंच पर मुझे ले आई। यह खास बयान उस महिला का है जिसे संघ ने अपने अब तक के इतिहास में मुख्य अतिथि बनाया है। शस्त्र पूजा के बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि विदेशी आक्रांताओं की वजह से महिलाओं पर बंदिशें लगाई गई थीं। लेकिन अब उसका कोई औचित्य नहीं है। इन सबके बीच हम उस मुख्य अतिथि संतोष यादव के बारे में बताएंगे जिन्हें संघ के दशहरा रैली के खास कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनने का मौका मिला।

खास शख्सित, खास कामयाबी

हरियाणा के रेवाड़ी जिले में संतोष यादव का जन्म 1969 में हुआ था, पढ़ाई लिखाई जयपुर के महारानी महाविद्यालय से हुई थी। आईटीबीपी के जरिए वो देश की सेवा करती रहीं। संतोष यादव खुद बताती है कि ऊंची ऊंची चोटियों को फतह करने की लालसा उनके मन में सदैव रहती थी। नौकरी में आने के बाद उनके सपने को साकार करने का मौका मिला। 1992 में दुनिया की सबसे बड़ी चोटी सागरमाथा यानी माउंट एवरेस्ट को फतह किया और ठीक एक साल बाद 1993 में दूसरी बार कामयाबी मिली। माउंट एवरेस्ट को फतह करने की खास बात यह थी कि कांगसुंग की तरफ से चढ़ाई की थी और ऐसा करने वाली वो विश्व की पहली महिला बनीं। उनके बेहतरीन करियर के लिए 2000 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

सफल पर्वतारोही बनना था मकसद

संतोष यादव बताती हैं कि उनके पिता सेना में सूबेदार के पद पर थे। घर का माहौल उन्हें हमेशा कुछ अलग करने के लिए प्रेरित करता था। अपने नाम के बारे में वो कहती हैं कि आम तौर पर रेवाड़ी के इलाके में लड़कियों से अधिक महत्व लड़कों को मिलता था। लेकिन उनका परिवार थोड़ा अलग था। उनकी मां को एक साधू ने बेटे का आशीर्वाद दिया । लेकिन उनकी दादी ने कहा कि बेटे की जगह बेटी चाहिए। जब जन्म हुआ तो घर वाले संतुष्ट और खुश दोनों थे और नाम मिल गया संतोष। पढ़ाई लिखाई को लेकर वो शुरू से ही जिद्दी थीं और उसकी वजह से दिल्ली के स्कूल में उच्च शिक्षा के लिए दाखिला हुआ। वो अपने मां और पिता के साथ दिल्ली रहती थीं। पर्वतारोहण की लालसा तो पहले से थी। लेकिन 1989 से इसकी औपचारिक शुरुआत की।
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ललित राय author

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