दिल्ली का बॉस कौन, सुप्रीम कोर्ट की पीठ सुना रही है फैसला

Delhi IAS Officers: दिल्ली के बाबुओं यानी आईएएस अधिकारियों पर हक किसका है। दरअसल दिल्ली सरकार को ऐतराज रहा है कि अनावश्यक तौर पर एलजी के जरिए केंद्र सरकार की तरफ से हस्तक्षेप किया जाता है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट अहम फैसला सुना रहा है।

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सुप्रीम कोर्ट का आने वाला है बड़ा फैसला

मुख्य बातें
  • दिल्ली प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण
  • 18 जनवरी को फैसला रखा गया था सुरक्षित
  • पांच जजों की पीठ ने की है सुनवाई

Delhi IAS Officers: केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच इस बात पर तनातनी हमेशा से रही है कि बाबुओं यानी आईएएस अधिकारियों पर किसका अधिकार है, आईएएस अधिकारी वैसे तो राष्ट्रपति के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार होते हैं, लेकिन प्रशासनिक व्यवस्था के लिए उनकी तैनाती राज्यों में होती है और उनके कामकाज पर संबंधित राज्य सरकार का दखल रहता है। इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कहा कि सभी जज एकमत हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस ओर इंगित किया कि जस्टिस भूषण के उस फैसले से वो सहमत नहीं है कि दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग की सारी शक्ति केंद्र सरकार के पास होनी चाहिए।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 239 AA से ये स्पष्ट है कि दिल्ली में चुनी हुई सरकार है ये और ये लोगों के प्रति जवाबदेह है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनी हुई सरकार को लोगों की आशाओं के अनुरूप काम करने का मौका मिलना चाहिए। NCT एक पूर्ण राज्य नही है। NCT दिल्ली के अधिकार दूसरे राज्यों की तुलना में कम है।239 AA केवल कुछ खास विषयों जैसे, पुलिस, भूमि और पब्लिक ऑर्डर को दिल्ली सरकार के अधिकार से बाहर रखता है।

दिल्ली की संवैधानिक स्थिति थोड़ी अलग है, यह ना तो पूर्ण राज्य और ना ही पूर्ण केंद्रशासित प्रदेश है, आमतौर पर जब केंद्र और दिल्ली में एक ही दल की सरकार रही तो तनातनी के मामले सामने नहीं आते थे। लेकिन दिल्ली में आम आदमी पार्टी का आरोप रहा है कि केंद्र सरकार की तरफ से एलजी दफ्तर की तरफ से अनावश्यक हस्तक्षेप किया जाता है। इस मामले की सुनवाई पांच जजों वाली संवैधानिक पीठ ने की है। इस पीठ में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एम आर शाह, कृष्णा मुराई, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।

क्या है मामला
  • दिल्ली प्रशासनिक सेवा पर नियंत्रण का मामला
  • सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने 14 फरवरी 2019 को एक फैसला दिया था
  • दोनों जजों के विचार अलग अलग थे।
  • फैसले के लिए तीन जजों की बेंच गठित करने के लिए मामले को मुख्य न्यायाधीश को भेज दिया गया था।
  • केंद्र ने दलील दी थी कि मामले को और बड़ी बेंच को भेजा जाए।
  • केंद्र सरकार की दलील के बाद 5 जजों की पीठ ने सुनवाई की।

18 जनवरी से फैसला सुरक्षित

अदालत ने इससे पहले 18 जनवरी को फैसला सुरक्षित रखा था । दिल्ली सरकार का शुरू से ही आरोप रहा है कि अनावश्यक तौर पर फाइलों के निपटारे में अड़चनें आती हैं। दिल्ली सरकार का रोजमर्रा के काम प्रभावित होते हैं।

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ललित राय author

खबरों को सटीक, तार्किक और विश्लेषण के अंदाज में पेश करना पेशा है। पिछले 10 वर्षों से डिजिटल मीडिया में कार्य करने का अनुभव है।और देखें

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