नागपुर ही क्यों...कांग्रेस ने इसी शहर से क्यों बजाया लोकसभा चुनाव 2024 का बिगुल? समझें, अंदर की बात
दरअसल, महाराष्ट्र के नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का मुख्यालय है। साथ ही वहां पर ऐतिहासिक स्थल ‘दीक्षाभूमि’ भी है, जहां भारतीय संविधान के निर्माता डॉ.भीमराव अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया था।
तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। (फाइल)
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस ने गुरुवार (28 नवंबर, 2023) को चुनावी शंखनाद कर दिया। पार्टी के 139वें स्थापना दिवस पर महाराष्ट्र के नागपुर से ‘हैं तैयार हम’ विशाल रैली के जरिए इसकी शुरुआत हुई। लेकिन इस कार्यक्रम के लिए नागपुर को ही क्यों चुना गया? आइए, समझते हैं:
कांग्रेस की ओर से नागपुर रैली को "हैं तैयार हम" नाम दिया गया। पार्टी का कहना है कि इसकी थीम का मकसद देश में लोकतंत्र की रक्षा के लिए लड़ने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करना है। रैली की जगह दिघोरी नाका क्षेत्र में थी, जिसे कांग्रेस ने राहुल की भारत जोड़ो यात्रा के संदर्भ में "भारत जोड़ो ग्राउंड" करार दिया। नागपुर को चुना जाना इसलिए भी अहम है, क्योंकि इसे महाराष्ट्र की दूसरी राजधानी माना जाता है, जिसे देश का भौगोलिक केंद्र भी समझा जाता है और यह विदर्भ क्षेत्र के केंद्र में है।
कांग्रेस पार्टी का नागपुर से बड़ा पुराना कनेक्शन रहा है, जो कि देश की आज़ादी से भी पहले का है। दरअसल, दिसंबर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में महात्मा गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू करने का स्पष्ट आह्वान किया था। सम्मेलन में कांग्रेस ने अहम संगठनात्मक सुधार भी किए थे, जिसमें 350 सदस्यों के साथ ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) को मजबूत करने और 15 सदस्यीय कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) को सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था के रूप में गठित करने का निर्णय लिया गया था।
आजादी के बाद 1959 में कांग्रेस के नागपुर सत्र में इंदिरा गांधी को एआईसीसी अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। सीडब्ल्यूसी सदस्य इंदिरा तब 41 साल की थीं, उनके नाम की सिफारिश निवर्तमान एआईसीसी प्रमुख यूएन ढेबर ने की थी। वैसे, नागपुर हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रहा है। आपातकाल के दौरान समाजवादी आइकन जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में "इंदिरा हटाओ, देश बचाओ" आंदोलन के दौरान भी कांग्रेस ने नागपुर में अपना मैदान बरकरार रखा था। 1980 से 2019 तक बीजेपी सिर्फ तीन बार (1996, 2014 और 2019 में) नागपुर लोकसभा सीट से जीत हासिल कर पाई है।
आरएसएस यानी संघ का मुख्यालय भी नागपुर में है, जहां इसकी स्थापना 1925 में शहर के डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। आरएसएस भाजपा और कई अन्य सहयोगियों का वैचारिक स्रोत माना जाता है। महाराष्ट्र भाजपा के वरिष्ठ नेता और उप-मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस (जो नागपुर से आते हैं) आरएसएस को "भाजपा का पावर हाउस" बता चुके हैं, जबकि कांग्रेस का कहना है कि वह बापू के नेतृत्व वाले स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी नेताओं की ओर से बनाए गए संविधान द्वारा परिकल्पित "भारत के विचार" पर दावा करने के लिए भाजपा-आरएसएस के साथ एक वैचारिक लड़ाई में लगी है।
यही नहीं, नागपुर में ही भीमराव अंबेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 को दशहरा के दिन अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। इस ऐतिहासिक स्थल पर दीक्षाभूमि नामक एक स्मारक है। राजनीतिक एक्सपर्ट्स की मानें तो आगे की राजनीतिक चुनौतियों को देखते हुए कांग्रेस नागपुर से बदलाव की प्रक्रिया शुरू करने को लेकर आशान्वित है।
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अभिषेक गुप्ता author
छोटे शहर से, पर सपने बड़े-बड़े. किस्सागो ऐसे जो कहने-बताने और सुनाने को बेताब. कंटेंट क्रिएशन के साथ...और देखें
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