Rat Mining: आखिरी वक्त पर क्यों पड़ी रैट माइनिंग की जरूरत, कभी मजदूरों के लिए मानी जाती थी अभिशाप

रैट माइनिंग मुख्य रूप से कोयला खदानों में प्रयोग होता है। सालों पहले, जब मशीनें नहीं थीं तब कोयला हाथों से निकाला जाता था। बाद में मशीनें आईं तो इसमें कमी आई, लेकिन छोटे और संकरे कोल ब्लॉकों में यह आज भी कई जगहों पर प्रयोग होता है।

मेघालय में रैट माइनिंग के कारण कई बार फंस चुके हैं मजदूर

उत्तराखंड सुरंग हादसे में रेस्क्यू के दौरान कुछ शब्दों की काफी चर्चा रही है। ऑगर मशीन, मैन्युअल ड्रिलिंग, वर्टिकल ड्रिलिंग और रैट माइनिंग। इन शब्दों में से रैट माइनिंग एक ऐसा कार्य है, जिसपर भारत में प्रतिबंध लगा हुआ है, लेकिन जब मशीनें, मजदूरों को निकालने में नाकामयाब हो गईं, टूट गईं, तब इसी रैट माइनिंग ने मजदूरों को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

क्या है रैट माइनिंग

रैट माइनिंग मुख्य रूप से कोयला खदानों में प्रयोग होता है। सालों पहले, जब मशीनें नहीं थीं तब कोयला हाथों से निकाला जाता था। बाद में मशीनें आईं तो इसमें कमी आई, लेकिन छोटे और संकरे कोल ब्लॉकों में यह आज भी कई जगहों पर प्रयोग होता है। भारत में मेघायल एक ऐसा राज्य है, जहां इसका प्रयोग होते आया है। कोयला निकालने की इस पद्धति में छोटे-छोटे सुरंगों के सहारे कोयला निकाला जाता है, यह पद्धति चूहों के बिलों से काफी मिलती-जुलती है, उनके खोदने के तरीके से मिलता है, यही कारण है कि इसे रैट माइनिंग कहा जाता है।
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