Safe Her: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, सहकर्मी हमदर्द क्यों नहीं बनते?

कार्यस्थल पर ऐसे मामलों की रोकथाम और महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण तैयार करने के लिए नियोक्ताओं या प्रबंधकों की जहां ऐसे मामले की सही जांच करने की जिम्मेदारी है वहीं उसे अपने लोगों को यह सीखने में मदद करनी चाहिए कि कार्यस्थल पर उत्पीड़न के व्यवहार को कैसे रोका जाए।

कार्यस्थल पर महिला उत्पीड़न

Safe Her: हाल ही में मैं एक पूर्व आईपीएस अधिकारी का लेख किसी अखबार में पढ़ रही थी। उन्होंने निर्भया कांड के बाद एक अध्ययन में पाया कि आमतौर पर कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न या यौन शोषण की घटना होने पर सहकर्मियों की प्रतिक्रिया दिल तोड़ने वाली होती है। उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि कार्यस्थल पर अक्सर जब भी ऐसे मामले आते हैं तो सहकर्मी पीड़िता के साथ खड़े होने के बजाए या तो मामले को रफ-दफा करने की कोशिश करते हैं, या तो पीड़िता से कन्नी काट लेते हैं या उसे ही दोषी ठहराते हैं। कोलकाता के आरजीकर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष पर भी तो यही आरोप हैं कि उन्होंने 8-9 अगस्त की रात इस अस्पताल में एक ट्रेनी डॉक्टर से रेप और मर्डर की जघन्य वारदात होने पर मामले को छुपाने की कोशिश की और उनके इशारे पर ही पीड़िता के माता-पिता को यह बताया गया कि उनकी बेटी ने आत्महत्या कर ली है। ऐसे में सवाल है कि कार्यस्थल पर किसी महिला के साथ हुए यौन उत्पीड़न या यौन शोषण होने की घटना की बात सामने आने पर अक्सर उनके सहकर्मी बदला हुआ व्यवहार क्यों करते हैं।

सहकर्मी क्यों नहीं देते साथ?

आवाज उठाने पर नौकरी छोड़ने के लिए बाध्य किया जाता है

कई महिलाओं की आपबीती और उनके साथ गुजरे हुए वाकये को देखने के बाद यही समझ में आता है कि इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह यह है सहकर्मियों की असुरक्षा। अक्सर देखने में आया है कि जब कोई महिला कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत करती है तो या तो मामले को दबाने और अपराध को छुपाने के लिए कहा जाता है। यदि वह शिकायत करने पर तुली है तो उसे छुट्टी पर भेज दिया जाता है या कई बार उस पर इतने तरह के सवाल उठते हैं कि वह नौकरी छोड़ने के लिए बाध्य हो जाती हैं। ऐसे में सहकर्मियों को लगता है कि पीड़िता के साथ खड़े होने का मतलब है अपनी नौकरी को दांव पर लगाना या सिस्टम (कार्यस्थल की व्यवस्था) से टकराना है। एक महिला को अक्सर यौन-उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।

सुप्रीम कोर्ट की विशाखा गाइडलाइंस का क्या हुआ?

खासतौर पर कार्यस्थल पर। ऐसे में महिलाओं को इससे बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा गाइडलाइंस जारी की थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के पर केंद्र सरकार ने अप्रैल 2013 में 'प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हैरेसमेंट ऐक्ट' को मंजूरी दी। विशाखा गाइडलाइन और इस कानून के मुताबिक 10 या उससे ज्यादा कर्मचारियों वाली कंपनी और संस्थानों को आतंरिक शिकायत समिति का गठन करना जरूरी बनाया गया है। लेकिन कई कारणों से बहुत सी महिलाएं टारगेट या दंडित किए जाने या फिर पेशेवर नुकसान होने की वजह से इस समिति के सामने अपनी बात रखने से घबराती हैं। कई मामलों में पीड़िता को ही दोषी ठहराया जाता है। दूसरी तरफ बहुत सी महिलाओं में यह डर बैठ जाता है कि यदि वे अपने खिलाफ हुए यौन उत्पीड़न की शिकायत करेंगी तो पता नहीं सहकर्मी उनके बारे में क्या सोचेंगे? पदोन्नति में दंडित करने का भय भी उन्हें सताता है।

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