अखिलेश यादव को स्वामी प्रसाद मौर्य आ रहे पसंद, क्या ये है खास वजह
रामचरित मानस की चौपइयों को जिस अंदाज में स्वामी प्रसाद मौर्य पेश कर रहे हैं उसे लेकर समाजवादी पार्टी में दो फाड़ है। पार्टी के अगड़े नेताओं को विरोध है कि समाज में गलत संदेश देने की कोशिश हो रही है। लेकिन जिस तरह से ऋचा सिंह और रोली तिवारी पर कार्रवाई हुई है उसके बाद सवाल ये है कि क्या समाजवादी पार्टी पिछड़ों की राजनीति के जरिए सत्ता हासिल करने की तैयारी में है।
अखिलेश यादव-स्वामी प्रसाद मौर्य
रामचरित मानस की कुछ चौपाइयां इस समय चर्चा के केंद्र में हैं। समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य खुलकर कहते हैं कि उन्होंने गलत क्या कहा, जो लिखा है उसके जरिए वो अपनी भावना को व्यक्त कर रहे हैं। उनके इस बयान की आलोचना बीजेपी के नेता को कर ही रहे हैं साथ में समाजवादी पार्टी के नेता भी विरोध हैं। खासतौर से अगड़े समाज से आने वाले नेता विरोध दर्ज करा रहे हैं। उसी कड़ी में जब इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की पूर्व अध्यक्ष डॉ ऋचा सिंह के साथ साथ रोली तिवारी ने ऐतराज जताया तो उनके खिलाफ समाजवादी पार्टी ने कार्रवाई की। कोई भी पार्टी अपने नेता के खिलाफ एक्शन के लिए स्वतंत्र है। सवाल यह है कि क्या सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव अब स्वामी प्रसाद मौर्य को ग्रीन सिग्नल दे रहे हैं। क्या समाजवादी पार्टी को लगने लगा है कि 2024 और उसके आगे की लड़ाई में मानस की चौपाइयां ट्रंप कार्ड की तरह काम करेंगी।
ऋचा सिंह-रोली तिवारी मिश्रा समाजवादी पार्टी से बाहर
इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ की पूर्व अध्यक्ष ऋचा सिंह का कहना है कि पार्टी का यह फैसला होता है कि कौन पार्टी का हिस्सा बने रहे या बाहर जाए। लेकिन जिस अंदाज में उन्हें और दूसरी महिला नेता को बाहर निकाला गया है उससे पता चलता है कि समाजवादी पार्टी में लोकतंत्र का अभाव है। अगर हम अपनी बात न कह पाएं तो लोगों की आवाज को कैसे उठाएंगे। इन दोनों महिला नेताओं के खिलाफ कार्रवाई पर सोशल मीडिया पर यूजर्स का गुस्सा फूटा और अखिलेश यादव का अगड़ा विरोधी करार दिया। एक यूजर ने लिखा कि समाजवादी पार्टी ने रोली बहन एवं ऋचा बहन को बिना कारण बताओ नोटिस के निष्काषित कर उनका अपमान नहीं अपितु सनातन के सम्मान की लड़ाई का अपमान किया हैं । अब हम सभी सनातनियो की जिम्मेवारी यही हैं कि 2024 और 2027 में इस मूर्खता पर दंड देने का काम करे।
क्या कहते हैं जानकार
जानकार कहते हैं कि 2014 लोकसभा, 2017 विधानसभा, 2019 लोकसभा और 2022 विधानसभा में पराजय के बाद समाजवादी पार्टी के सामने अस्तित्व बचाने की लड़ाई है। 2027 यूपी विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव को 2024 में सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी का सामना करना है। 2019 और 2022 में नरेंद्र मोदी बीजेपी का चेहरा रहे और उसका असर नतीजों पर दिखाई भी दिया। समाजवादी पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि अब उनके पास सामाजिक आधार पर सीधे विभाजन से ही फायदा मिल सकता है। लिहाजा स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान से पार्टी सीधे सीधे किनारा नहीं कस रही है। अगड़ों और पिछड़ों की राजनीति में पिछड़ों को लामबंद करने के लिए अखिलेश यादव को रामचरित मानस की चौपाइयों में खुद के लिए उम्मीद नजर आ रही है, लिहाजा वो मौर्य के बयान पर गोलमाल जवाब देते हैं और जब उनकी पार्टी के अगड़े नेता एक सुर में विरोध पर उतरते हैं तो उनमें से कुछ को बाहर का रास्ता दिखा संदेश देने की कोशिश करते हैं कि सही मायनों में पिछड़ों के हितैषी
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