UCC पर स्टैंड लेना कांग्रेस के लिए क्यों है मुश्किल, 1985 का इतिहास तो सामने है आम चुनाव 2024
Congress Stand On UCC: समान नागरिक संहिता पर जब मीडिया के लोग कांग्रेस के कद्दावर नेताओं से पूछते हैं कि पार्टी का रख क्या है तो जवाब गोलमोल सुनने को मिलता है।
सोनिया गांधी
Congress Stand On UCC: समान नागरिक संहिता पर इस समय चर्चा गरम है। मध्य प्रदेश की एक रैली में जब पीएम मोदी ने कहा कि देश में नियमों के दो सेट नहीं चल सकते तो विपक्ष की तरफ से जवाब आया कि बीजेपी सामाजिक ताने बाने को नष्ट करने पर तुली हुई है। कांग्रेस की तरफ से पी चिदंबरम ने कहा कि पीएम मोदी को परिवार और देश में क्या फर्क है उसे समझना चाहिए। कांग्रेस के सहयोगी जैसे आरजेडी और डीएमके खुलकर विरोध में है। लेकिन कांग्रेस इंतजार, देखो और प्रतिक्रिया दो की भूमिका में है। इस तरह के कयास लगाए जा रहे हैं कि संसद के मानसून सत्र में बिल पेश किया जाए। लिहाजा कांग्रेस को बिल के मसौदे का इंतजार है। इन सबके बीच बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस को इंतजार क्यों हैं। क्या कांग्रेस को 1985 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला और उसे बदलने का इतिहास याद आ रहा है या आम चुनाव 2024 में खतरे की आहट यूसीसी के रूप में नजर आ रही है।
1985 का इतिहास
बात करते हैं 1985 की..1985 में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की पीठ ने शाहबानो प्रकरण में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए संविधान के अनुच्छेद 44 का जिक्र किया है। अदालत ने कहा कि अब समय आ चुका है जब इस विषय पर सरकार को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। तत्कालीन चीफ वाई वी चंद्रचूड़ ने कहा कि यह समझ के परे है कि अनुच्छेद 44 को मृत करके क्यों रखा गया। यह तो सरकार की इच्छाशक्ति की बात है कि वो इस विषय पर सार्थक चर्चा और कानून बनाए। हालांकि शाहबानो प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को राजीव गांधी की सरकार ने बदल दिया था। उस समय विपक्षी दल खासतौर पर बीजेपी जो राम मंदिर का मुद्दा बनाकर अपनी राजनीतिक जमीन को बनाने की कोशिश कर रही थी खुलकर कांग्रेस के विरोध में आई और कहा कि कांग्रेस और तुष्टीकरण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सियासत का पहिया जब आगे बढ़ा तो कांग्रेस के सामने किस तरह की मुश्किलें आईं उसका गवाह पूरा देश है। अब एक बार फिर यूसीसी का मुद्दा सामने है तो आगे आम चुनाव 2024 भी है।
सामने आम चुनाव 2024
आम चुनाव 2024 जितना महत्वपूर्ण बीजेपी के लिए उतना ही खास कांग्रेस के लिए है। अगर बीजेपी सरकार में आती है तो लगातार तीन बार सरकार बनाने वाली पहली गैर कांग्रेस पार्टी होगी। यदि कांग्रेस सत्ता में आने में कामयाब होती है तो वो खुलकर कहेगी कि देश ने फांसीवादी ताकतों को नकार दिया। इन सबके बीच बीजेपी ने यूसीसी की पासा चल दिया है। जानकार कहते हैं कि कांग्रेस इस विषय पर ना तो खुलकर विरोध कर सकती है और ना ही समर्थन। खुलकर विरोध करने का अर्थ होगा कि तुष्टीकरण, अल्पसंख्यक समर्थक का टैग लगेगा जो चुनावी तौर पर हिंदी हार्टलैंड में नुकसान पहुंचा सकता है। इसके साथ ही अगर कांग्रेस खुलकर समर्थन करती है तो अल्पसंख्यक समाज को जवाब देना मुश्किल होगा। इस तरह के हालात में कांग्रेस के लिए एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाईं है।
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