सीएम कुर्सी की लड़ाई : 50- 50 वाला फॉर्मूला इसलिए नहीं आता रास,इतिहास भी गवाह

सियासत की तासीर को जो समझ लिया वो कुर्सी तक पहुंच गया। देश की राज्यस्तरीय सियासत में सत्ता बंटवारे के लिए फॉर्मूले का इजाद 1997 में यूपी से हुआ। लेकिन वो फॉर्मूला कामयाब नहीं हुआ। करीब 21 साल के बाद छत्तीसगढ़ में उस फॉर्मूले को अमल में लाया गया। लेकिन उसके नतीजे को देख अब नेता डरने लगे हैं।

Siddaramaiah,DK Shivkumar

सिद्धारमैया को मिल सकती है कमान

Chief Minister Race: कर्नाटक में सीएम(Karnataka CM Face) का चेहरा कौन होगा इसे लेकर औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है। लेकिन सिद्धारमैया कुर्सी के काफी करीब हैं, वहीं डीके शिवकुमार जो खुद को जीत का एक हीरो बताते हैं वो पीछे चल रहे हैं। बताया जा रहा है कि कांग्रेस आलाकमान ने 30 30 महीने यानी ढाई ढाई साल वाले फॉर्मूले को सुझाया था। लेकिन इस फॉर्मूले को ना को सिद्धारमैया(Siddramaiah) और ना ही डी के शिवकुमार(DK Shivkumar) ने पसंद किया। अब सवाल यह है कि आखिर यह फॉर्मूला क्यों नहीं रास आया। वैसे तो 50, 50 फॉर्मूले की नाकामी का इतिहास दशकों पुराना है। लेकिन 2018 का उदाहरण इन दोनों नेताओं के सामने है। 2018 में छत्तीसगढ़ में इसी फॉर्मूले के तरह भूपेश बघेल सीएम बन गए। लेकिन टी एस सिंहदेव (T S Singhdev)के साथ वादाखिलाफी हो गई। 30 महीने के कार्यकाल के बाद भूपेश बघेल(Bhupesh Baghel) ने कुर्सी से हटने से इनकार कर दिया। यही नहीं राजस्थान में क्या हो रहा है देश और दुनिया गवाह है। यहां हम कुछ और राज्यों की चर्चा करेंगे जहां सत्ता बंटवारे का सूत्र कारगर साबित नहीं हुआ।

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इसलिए 50-50 फॉर्मूला नहीं आता है रास

  • कर्नाटक में 2007 में जेडीएस ने बीजेपी को धोखा दिया। करार के मुताबिक कुमारस्वामी सीएम बनने में कामयाब रहे। लेकिन बीजेपी की बारी आने के बाद दगाबाजी कर बैठे।
  • राजस्थान में अशोक गहलोत(Ashok Gehlot)- सचिन पायलट(Sachin Pilot) के बीच मनुमटाव
  • छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल- टी एस सिंहदेव के साथ विवाद
  • महाराष्ट्र में शिवसेना और बीजेपी के बीच ऐतिहासिक संबंध टूटा
  • यूपी में मायावती(Mayawati) ने बीजेपी को धोखा दिया।997 में देश के सबसे बड़े सूबे में से एक यूपी में भी 6 6 महीने वाले फॉर्मूले पर सहमति बनी। इस सूत्र के तहत बीएसपी सुप्रीमो मायावती सीएम बनीं। लेकिन जब बीजेपी के कल्याण सिंह(Kalyan Singh) की बारी आई तो वो पीछे छूट गए। मायावती ने बीजेपी से रिश्ता ही तोड़ लिया।

क्या कहते हैं जानकार

जानकार कहते हैं कि सियासत का मूल मंत्र ही यही है कि कहां तक, कब तक और किससे फायदा मिल रहा है। सत्ता को शेयर कर पाना इतना आसान नहीं होता। आप यूपी का उदाहरण देख सकते हैं 1997 में जब मायावती और बीजेपी में 6- 6महीने के लिए सीएम की कुर्सी के लिए समझौता हुआ तो उसमें मौका मायावती को मिला। लेकिन जब उस समझौते के तहत उन्हें कुर्सी छोड़नी थी तो उन्होंने इनकार कर दिया। उसके आगे क्या हुआ सभी लोग जानते हैं, इसी तरह 2108 में छत्तीसगढ़ का उदाहरण सबके सामने है, समझौते के तहत भूपेश बघेल को टीएस सिंहदेव के लिए गद्दी छोड़नी चाहिए थी। लेकिन भूपेश बघेल ने तमाम तर्कों के जरिए पार्टी आलाकमान को समझाने में कामयाब हुए और टीएस सिंहदेव सीएम इन वेटिंग बन कर रह गए।

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ललित राय author

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