Electoral Bonds News: चुनावी बॉन्ड पर क्यों चला SC का डंडा? लौटाना होगा इनकैश नहीं हुए इलेक्टोरल बॉन्ड

Electoral Bonds : शीर्ष अदालत ने भारतीय स्टेट बैंक को इलेक्टोरल बॉन्ड आगे जारी करने से रोक दिया है। बैंक को चुनावी बॉन्ड के जरिए मिले अनुदान के ब्योरे पेश करने और ऐसे राजनीतिक दलों जिन्हें अनुदान मिला है, उनके विवरण चुनाव आयोग के पास छह मार्च तक जमा कराने के लिए कहा है।

chunavi bond

चुनावी बॉन्ड पर रोक से राजनीतिक दलों को लगा झटका।

Electoral Bonds : सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया। कोर्ट के इस फैसले के बाद भारतीय स्टेट बैंक (SBI) इसे न तो बेच पाएगा और न ही राजनीतिक दल इसे भुना पाएंगे। लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव एवं राजनीति में पारदर्शिता लाने के लिए शीर्ष अदालत का यह फैसला अहम है। इलेक्टोरल बॉन्ड के समर्थन में सरकार ने कोर्ट में दलील दी कि इससे चुनावी खर्चे में पारदर्शिता और काले धन के प्रवाह पर रोक लगेगी लेकिन प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ को उसकी दलील में दम नहीं लगा और उसने याचिकाकर्ताओं के तर्कों को स्वीकार करते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड को 'असंवैधानिक' करार दे दिया।

'सबसे ज्यादा चंदा सत्तासीन दल को'

साथ ही उसने एसबीआई को आदेश दिया कि उसने अब तक जो भी बॉन्ड बेचे हैं उसका सारा विवरण वह चुनाव आयोग के पास भेजे। कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग को भी चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारियों को अपनी वेबसाइट पर डालना होगा। याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि चंदा सत्ता में रहने वाली पार्टी को सबसे ज्यादा मिलता है। व्यक्ति या कंपनियां बॉन्ड के जरिए उस दल को सबसे ज्यादा अनुदान देती हैं जो या तो सत्ता में होती है या जिनके सत्ता में आने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। विरोधी एवं छोटे दलों को ज्यादा अनुदान नहीं मिल पाता। इसलिए इसमें समान अवसर मिलना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि इस योजना ने नागरिकों के सूचना का अधिकार का उल्लंघन और संविधान में अनुच्छेद 19 (1) में प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी को प्रभावित किया है। शीर्ष अदालत ने भारतीय स्टेट बैंक को इलेक्टोरल बॉन्ड आगे जारी करने से रोक दिया है। बैंक को चुनावी बॉन्ड के जरिए मिले अनुदान के ब्योरे पेश करने और ऐसे राजनीतिक दलों जिन्हें अनुदान मिला है, उनके विवरण चुनाव आयोग के पास छह मार्च तक जमा कराने के लिए कहा है। इलेक्टोरल बॉन्ड के लिए सरकार ने इनकम टैक्स और जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 में जो संशोधन किए हैं, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें खारिज कर दिया है।

सत्ता में रहने वाले दल को ज्यादा फायदा

इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड का सबसे ज्यादा फायदा सत्ता में रहने वाले दल को मिलेगा। कोर्ट ने कहा कि इस योजना को केवल इसलिए जायज नहीं बताया जा सकता कि इससे राजनीति में काले धन के प्रवाह पर रोक लगेगी। कोर्ट ने कहा कि 'आर्थिक असमानता अलग-अलग स्तर की राजनीति शुरू करती है। अधिक डोनेशन लेने पर पार्टियों के ऊपर अनुदान देने वाले का अहसान रहेगा। ऐसे लोग नीतियों को अपने हित में बनाने में कोशिश कर सकते हैं। यह बहुत हद तक एक द्वारा दूसरे को लाभ पहुंचाने की स्थिति में भी पहुंच सकता है।'

'कंपनियों को अनुदान देने की इजाजत नहीं थी'

पीठ ने अपने फैसले में यह भी कहा कंपनीज एक्ट में संशोधन कर कॉरपोरेट को कई बार बॉन्ड खरीदने की अनुमति देना 'असंवैधानिक' है। सीजेआई ने कहा कि एक-दूसरे को लाभ पहुंचाने पर यह लोगों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है। साल 2017 में कंपनीज एक्ट में संशोधन से पहले देश में नुकसान झेल रही कंपनियों को अनुदान देने की इजाजत नहीं थी।

15 दिनों के भीतर बॉन्ड कैश कराने होते हैं

देश भर में एसबीआई के कुल 29 ब्रांच हैं जहां से चुनावी बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं। यहां से खाताधारक पार्टियों को बॉन्ड के रूप में अनुदान दे सकता है। अभी राजनीतिक दलों को 15 दिनों के भीतर चुनावी बॉन्ड इनकैश कराने होते हैं। अब राजनीतिक दलों को इनकैश कराए गए चुनावी बॉन्ड का विवरण देना होगा और जो बॉन्ड इनकैश नहीं हुए हैं उन्हें वापस खरीदार के खाते में वापस करना होगा।
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | देश (india News) और चुनाव के समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से |

लेटेस्ट न्यूज

आलोक कुमार राव author

करीब 20 सालों से पत्रकारिता के पेशे में काम करते हुए प्रिंट, एजेंसी, टेलीविजन, डिजिटल के अनुभव ने समाचारों की एक अंतर्दृष्टि और समझ विकसित की है। इ...और देखें

End of Article

© 2024 Bennett, Coleman & Company Limited