भारत के इस ड्रोन से क्यों उड़ी दुश्मन देशों की नींद, देखिए PM मोदी के सीक्रेट हथियारों का चैप्टर !

कुल मिलाकर ड्रोन के मामले में भारत ने दो रणनीति अपनाई है। एक है स्वदेशी ड्रोन का निर्माण करना और दूसरी रणनीति है जरूरत के मुताबिक दूसरे देशों से ड्रोन को खरीदना। वैसे ड्रोन का इस्तेमाल भारत कारगिल युद्ध के बाद से ही कर रहा है । कारिगल युद्ध के दौरान ही ड्रोन की जरूरत महसूस हुई । इसके बाद इजरायल से Searcher ड्रोन खरीदा गया।

New Delhi: 1962 के युद्ध में तो भारत (India) के सैनिक बिना संसाधन के लड़ रहे थे। लेकिन 2022 की स्थिति बिल्कुल बदल चुकी है। अब भारत के सैनिकों (Soldiers) के पास वो सब कुछ है, जो भारतीय सेना (Indian Army) और उसके सैनिकों को दुनिया की सबसे मजबूत सेना में से एक बनाता है। भारतीय सेना को किसी भी आधुनिक हथियार (Weapons) और संसाधन की कमी ना रहे इसके लिए पीएम मोदी (Narendra Modi) लगातार काम कर रहे हैं। पाठशाला में उन सीक्रेट हथियारों का चैप्टर, जिन्हें यूक्रेन युद्ध (Ukraine War) के बीच भारत खरीदने में जुटा है। यानी लड़ाई रूस (Russia) औऱ यूक्रेन के बीच हो रही है लेकिन हथियार भारत खरीद रहा है। क्यों। इसका जवाब इस चैप्टर में।

खूब हो रहा है ड्रोन्स का इस्तेमालरूस यूक्रेन युद्ध में जिस एक हथियार से रूस ने यूक्रेन में सबसे ज्यादा तबाही मचाई है वो है ड्रोन। ईरान में बने ड्रोन से रूस ने यूक्रेन में बड़ी बर्बादी की है। इससे पहले अजरबैजान-आर्मेनिया युद्ध में भी ड्रोन का खूब इस्तेमाल हुआ था। यानी अब युद्ध ड्रोन से लड़े जा रहे हैं। इसी को देखकर अब भारत भी खुद को इस फ्यूचर वॉरफेयर से लैस कर रहा है। पिछले कुछ सालों में भारतीय सेना ने कई तरह के ड्रोन खरीदे हैं। सेना में मुख्य तौर पर दो तरह के ड्रोन का इस्तेमाल होता है, जो हैं- सर्विलांस ड्रोन और अटैक ड्रोन। सर्विलांस ड्रोन से निगरानी का काम होता है, बॉर्डर पर जिन इलाकों में जवानों की पेट्रोलिंग मुश्किल होती है वहां सर्विलांस ड्रोन का इस्तेमाल किया जाता है।अटैक ड्रोन मिसाइल से लैस होता है जो दुश्मनों पर टारगेटेड अटैक करते हैं। अटैक ड्रोन में कुछ ऐसे भी होते हैं जो टारगेट पर टकरा का ब्लास्ट हो जाते हैं। रूस यूक्रेन के खिलाफ इसी सुसाइड ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है।

भारत का फोकस ड्रोन्स पर

भारतीय सेना अटैक और सर्विलांस दोनों तरह के ड्रोन से खुद को लैस कर रही है। लेकिन अभी ज्यादा फोकस सर्विलांस ड्रोन पर है। पिछले कुछ समय से सेना ने सर्विलांस ड्रोन की खरीदने में तेजी दिखाई है। हाल ही में सेना ने 750 ड्रोन खरीदने के लिए रिक्वेस्ट फॉर इंटरेस्ट जारी किया है। रिक्वेस्ट फॉर इंटरेस्ट का मतलब होता है कि ड्रोन विक्रेता आधिकारिक रूप से सेना को ड्रोन बेचने का आवेदन दे सकते हैं।

  1. सेना ने इसे अर्जेंट बेसिस पर फास्ट ट्रैक में खरीदने का फैसला किया है।
  2. 12 महीने के अंदर सभी 750 ड्रोन सेना को मिल जाएंगे।
  3. स्पेशल फोर्सेज की पैराशूट बटालियंस को रिमोट एरिया की निगरानी के लिए ये ड्रोन्स दिए जाएंगे
  4. इस ड्रोन में जो एडवांस कैमरे लगे होंगे उसमें 3D इमेज बनेगी
  5. इससे टारगेट को सही पहचान की जा सकेगी और अटैक में मदद मिलेगी
  6. इस ड्रोन से दिन और रात दोनों समय निगरानी की जा सकेगी।
  7. इसमें ऊंचाई वाले इलाकों की निगरानी के लिए एडवांस मल्टी-सेंसर प्रणाली भी है।
  8. देश के उत्तरी सीमा यानी पाकिस्तान और चीन बर्डर पर तैनाती होगी
  9. ये ड्रोन RPAV से लैस होंगे, RPAV का मतलब होता है रिमोटली पाइलेटेड एरियल व्हीकल। ये एक पावरफुल सिचुएशनल अवेयरनेस डिवाइस है।
मंगवाए आवेदन

इससे ठीक पहले भारतीय सेना ने अर्जेंट बेसिस पर ड्रोन खरीदने के लिए आवेदन मंगवाए थे। पिछले महीने सेना ने 400 ड्रोन खरीदने के प्रस्ताव मंगवाए थे। ये ड्रोन्स ऊंचाई और मध्यम ऊंचाई वाले इलाके में निगरानी करेंगे। सेना ने 80 मिनी RPAS यानी रिमोटली पायलटेड एरियल सिस्टम ड्रोन की खरीद के लिए आवेदन मंगवाए थे। नए छोटे RPAS की ऑपरेशन रेंज 20 से 90 किमी तक हो सकती है। सेना की आर्टिलरी यूनिट को ऊंचाई वाले इलाकों के लिए इसकी जरूरत है। अगर इनका प्रदर्शन अच्छा रहा तो सेना बड़ी संख्या में ये ड्रोन खरीद सकती है

जानिए क्या है खासियत

सेना लगातार उन ड्रोन्स को घातक बनाने में जुटी है, जो भविष्य के युद्ध में काम आ सकते हैं। ऐसे कुछ ड्रोन्स इजारयल और अमेरिका से मंगवाए जा रहे हैं तो कुछ को देश में ही तैयार करने की कोशिश हो रही है। अगस्त में स्वदेशी स्वार्म ड्रोन सेना में शामिल किए गए। ये ड्रोन सेना को अटैक और डिफेंस दोनों तरह के ऑपरेशन में मदद करते हैं। स्वॉर्म ड्रोन के जरिए निगरानी तो रखी ही जा सकती है। साथ ही ये दुश्मन के टैंक, डिफेंस सिस्टम और कंट्रोल सिस्टम को भी टारगेट कर सकता है। स्वॉर्म ड्रोन की सबसे बड़ी खासियत, इनका ग्रुप में उड़ना है। कई ड्रोन एक ग्रुप में होते हैं जो आर्टिफिशल इंटेलिंजेंस से कंट्रोल स्टेशन से जुड़े होते हैं। स्वॉर्म ड्रोन सिस्टम में एक मेन ड्रोन होता है जो सारे ड्रोन को उनका काम बांटता है। स्वॉर्म ड्रोन ऑटोमोड में हो सकते हैं या फिर इसे एक जगह पर बैठ कर ऑपरेट किया जा सकता है। स्वार्म ड्रोन पर एंटी एयरक्राफ्ट गन या मिसाइलें बेअसर होती हैं इसके कारण ये आसानी से दुश्मन के इलाके में घुस सकते हैं। इन ड्रोन्स से सटीक निशाना लगाया जा सकता है और ये कम खर्चीले होते हैं।

डीआरडीओ भी कर रहा है प्रोजक्ट

भारतीय सेना की जरूरत के हिसाब से DRDO भी ड्रोन्स बनाने का काम लगा है। DRDO जिस ड्रोन प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है उसका नाम है रुस्तम-टू । अभी ये ट्रायल स्टेज पर है। रूस्तम 2 ड्रोन दुश्मन की निगरानी करने में सक्षम है 250 किलोमीटर का सफर तय कर सकता है। 40 किलोमीटर की ऊंचाई से टारगेट की तस्वीर खींच सकता है। इसमें क्लियर कमांड अप-लिंक सिस्टम है, जिसके कारण इसे ट्रैक नहीं किया जा सकता। इसमें इतना बैकअप है कि ये हवा में 24 घंटे तक छिपा रह सकता है। 2023 तक इसका ट्रायल होगा, इसके बाद इसे सेना में शामिल किया जा सकेगा। सितंबर में DRDO ने स्वदेशी ड्रोन 'अभ्यास' का सफल ट्रायल किया था।

'अभ्यास' एक हाई स्पीड ड्रोन है। जो मिसाइलों की मारक क्षमता को दुरुस्त करता है। ड्रोन को टारगेट कर मिसाइलें छोड़ी जाती हैं। ये एक छोटे से गैस टरबाइन इंजन से चलता है। DRDO ने 2012 में इस पर काम शुरू किया था। ओडिशा का चांदीपुर में इसका ट्रायल हो चुका है। इसे अभी सेना में शामिल नहीं किया गया है। इसके अलावा भारत अमेरिका से एडवांस ड्रोन MQ-9B Predator भी खरीद रहा है। MQ-9B Predator ड्रोन 35 घंटे तक हवा में रह सकता है। 4 हेलफायर मिसाइल और करीब 450 किलो का बम ले जा सकता है। ज्यादा ऊंचाई वाले इलाकों की निगरानी के लिए खास तकनीक से लैस है। खुफिया जानकारी जुटाने और दुश्मन के ठिकानों को बर्बाद करने की ताकत है। पहाड़ी इलाकों के साथ समंदर में निगरानी के लिए भी बेहद उपयोगी है। शुरुआत में अमेरिका से MQ-9B Predator ड्रोन मिलेंगे और तीनों सेनाओं को 10-10 MQ-9B Predator ड्रोन दिए जाएंगे।

होगा कारगर साबित

'प्रीडेटर' ड्रोन को ज्यादा देर तक हवा में रहने और ऊंचाई वाले इलाकों में निगरानी के लिए डिजाइन किया गया है। चीन सीमा पर भारत के लिए ये बहुत कारगर साबित हो सकता है। भारतीय सेना के पास इजरायल का बना हेरॉन ड्रोन भी हैं। हेरॉन ड्रोन को दुनिया का सबसे एडवांस ड्रोन कहा जाता है। इसमें लेजर गाइडेड बम और मिसाइलें लगाई जा सकती हैं। ये 35 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है। लगातार 52 घंटे तक उड़ान भरने की क्षमता है। हेरॉन ड्रोन की अधिकतम गति 259 प्रति घंटा है इसमें इंफ्रारेड कैमरे लगे हैं जिससे अंधेरे में देखा जा सकता है। ये आसमान से ही टारगेट को लॉक करके उसकी सटीक पोजिशन मिसाइल को दे सकता है जिससे टारगेट पर अटैक किया जा सके। सेना ने 4 हेरॉन ड्रोन को लद्दाख में चीन बॉर्डर पर तैनात किया है। 2019 में बालाकोट स्ट्राइक के बाद सेना ने इसे एमरजेंसी फंड से खरीदा था।

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किशोर जोशी author

राजनीति में विशेष दिलचस्पी रखने वाले किशोर जोशी को और खेल के साथ-साथ संगीत से भी विशेष लगाव है। यह टाइम्स नाउ हिंदी डिजिटल में नेशनल डेस्क पर कार्यरत ...और देखें

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