सुप्रीम कोर्ट से मायूसी, तो क्या आंदोलन के सहारे बहाल होंगे उत्तराखंड विधानसभा से बर्खास्त कर्मचारी?

Uttarakhand News: उत्तराखंड विधानसभा से बर्खास्त कर्मचारियों ने राष्ट्रपति से करीब 2000 परिजनों के साथ इच्छा मृत्यु की मांग की है। कर्मचारी विधानसभा अध्यक्ष के फैसले से खफा हैं और भेदभाव करने का आरोप लगा रहे हैं। कर्मचारियों का दावा है कि अलग राज्य बनने के बाद विधानसभा में एक ही प्रक्रिया के तहत भर्तियां की गईं हैं। लिहाजा सिर्फ 2016 और 2021 में भर्ती हुए लोगों को बर्खास्त करना अधूरा इंसाफ है, इसीलिए पूरा इंसाफ मिलने तक वो आंदोलन जारी रखेंगे।

Uttarakhand Assembly

प्रतीकात्मक तस्वीर

Uttarakhand News: नये साल का आगाज़ हो चुका है, नई उम्मीदें, नई चुनौतियां और नये लक्ष्य हासिल करने का संकल्प के साथ कई लोग आगे बढ़ने का सपना देख रहे हैं लेकिन उत्तराखंड में विधानसभा से बर्खास्त कर्मचारी अपने भविष्य को लेकर परेशान हैं, उलझन में हैं और गुस्से में भी हैं। नौकरी से निकाले गए कर्मचारी बीते 14 दिनों से देहरादून (Dehradun) में धरने पर बैठे हैं। विधानसभा अध्यक्ष (Speaker) के फैसले खिलाफ कर्मचारियों ने मोर्चा खोला है तब तक आंदोलन जारी रखने का ऐलान किया है जब तक इनकी मांग पूरी नहीं हो जाती। अब सवाल इसी बात को लेकर है कि क्या आंदोलन के सहारे इन कर्मचारियों की बहाली हो पाएगी? आगे क्या होगा, कैसे होगा इसे लेकर कई सवाल हैं, ऐसे में नया साल इन कर्मचारियों के लिए क्या कोई राहत लेकर आएगा अब इंतजार इसी बात का है।

विधानसभा नौकरी विवाद क्या है?

सिंतबर 2022 में स्पीकर ऋतु खंडूरी ने विधानसभा से 228 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था। आरोप है कि इनकी भर्ती बैकडोर से हुई थी, यानि बिना किसी एग्जाम और इंटरव्यू के ही इन कर्मचारियों को नौकरी दे दी गई। ये भर्तियां 2016 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल और और 2021 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद अग्रवाल के कार्यकाल के दौरान हुईं। आरोप ये लगाए गए कि दोनों ही नेताओं ने अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल करते हुए परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों को रेवड़ियों की तरह नौकरियां बांट दीं। इसे लेकर जमकर सियासत भी हुई। मुख्यमंत्री धामी समेत कैबिनेट के कई मंत्रियों पर भी अपने करीबियों को विधानसभा में बैकडोर से नौकरी दिलाने के आरोप लगे। इस मामले ने तूल पकड़ा तो सियासत गर्माई सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही आमने-सामने आ गए। जिसके बाद खुद सीएम धामी ने स्पीकर को चिट्ठी लिखी और जांच की गुजारिश की। सीएम की चिट्ठी के बाद ही विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने सितंबर की शुरुआत में डीएस कोटिया की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की जांच कमेटी बनाई। इसी कमेटी की सिफारिश पर 24 सितंबर को स्पीकर ने भर्ती को अवैध बताते हुए 228 कर्मचारियों को बर्खास्त करने का आदेश दे दिया। तब से ही इस फैसले को लेकर सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है।

भर्ती विवाद पर अदालती लड़ाई

विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी के फैसले को कर्मचारियों ने नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती दी। जिस पर सिंगल बेंच ने कर्माचारियों के हक में फैसला सुनाया और फौरन उन्हें बहाल करने के आदेश दिए। मगर स्पीकर ने सिंगल बेंच के आदेश को डबल बेंच में चुनौती दी और इस बार फैसला स्पीकर के पक्ष में आया। यानि डबल बेंच ने कर्मचारियों को बर्खास्त किए जाने के फैसले को सही ठहराया। डबल बेंच के ऑर्डर के खिलाफ कर्मचारियों ने देश की सबसे बड़ी अदालत में SLP दाखिल की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे महज 2 मिनट में ही खारिज कर दिया। जिससे कर्मचारियों को करारा झटका लगा।

बैकडोर भर्ती पर सियासत

विधानसभा में कर्मचारियों की बैकडोर भर्ती के बहाने राजनीति अब भी जारी है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही अपने-अपने तरीके से इस मुद्दे को भुनाने में जुटे हैं। मुख्यमंत्री समेत बीजेपी की पूरी टीम ये संदेश देने की कोशिश कर रही है कि अगर किसी की भर्ती गलत तरीके से हुई है तो उन्हें हटाना बिल्कुल सही कदम है। बीजेपी की ओर से ये भी दोहराया जा रहा है कि गलती किसी भी दौर में हुई हो मगर धामी सरकार पूरा सिस्टम सुधारकर रहेगी। वहीं कांग्रेस ने 228 कर्मचारियों को नौकरी से हटाए जाने का विरोध किया है। कांग्रेस की डिमांड है कि नौकरी पाने वालों की बजाय गलत तरीके से नौकरी देने वालों पर एक्शन लिया जाना चाहिए। इसीलिए कांग्रेस के तमाम नेता पूर्व स्पीकर और मौजूदा कैबिनेट मंत्री प्रेम चंद अग्रवाल का इस्तीफा मांग रहे हैं। इसके लिए कई बार सरकार पर दबाव भी बनाया जा चुका है लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। कुल मिलाकर बीजेपी और कांग्रेस इस पूरे विवाद को लेकर एक दूसरे को गिरेबान में झांकने की नसीहत देकर अपनी-अपनी सियासी मजबूरियों से बाहर निकलने की कोशिश में हैं। क्योंकि बैकडोर भर्तियां दोनों के ही कार्यकाल में हुई हैं।

कर्मचारियों ने मांगी इच्छा मृत्यु

सियासत अपने रास्ते पर है, लेकिन बेरोजगार हो चुके कर्मचारी इतने परेशान हैं कि उन्होंने राष्ट्रपति से मदद की गुहार लगाई है। 228 कर्मचारियोंने अपनी परेशानियों का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति को चिट्ठी भेजी है। इसमें बच्चों की फीस ना भर पाने, घर का चूल्हा ना जल पाने, बुजुर्गों का इलाज ना हो पाने समेत कई और बातें लिखीं हैं। साथ ही ये भी कहा है कि अगर जल्द ही उनकी नौकरी बहाल नहीं की जाती तो करीब 2000 परिजनों के साथ उन्हें इच्छा मुत्यु की इजाजत दे दी जाए। ताकि सभी समस्याओं का समाधान एक झटके में हो सके। कर्मचारियों ने अपनी चिट्ठी में ये भी दावा किया है कि उत्तराखंड अलग राज्य बनने के बाद से ही विधानसभा में एक ही प्रक्रिया के तहत भर्तियां भर्ती की गई हैं। ऐसे में कार्रवाई सिर्फ 2016 और 2021 में भर्ती हुए कर्मचारियों के खिलाफ ही क्यों की गई? इस मुद्दे को उठाकर कर्मचारियों ने विधानसभा अध्यक्ष पर भेदभाव करने का आरोप लगाया है और अपने खिलाफ की गई कार्रवाई को अधूरा इंसाफ करार दिया है। कर्मचारियों ने साफ कहा है कि अगर उनकी भर्ती अवैध है तो पहले की भर्तियां भी अवैध हैं लिहाजा सभी कर्मचारियों को बर्खास्त करना चाहिए।

समाधान निकल पाएगा?

पूरे इंसाफ की मांग को लेकर बर्खास्त कर्माचारियों ने आखिरी हथियार यानि आंदोलन का रास्ता चुना है। कांग्रेस के कई नेता भी इस आंदोलन को समर्थन दे चुके हैं। पूर्व शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी ने तो इंसाफ ना होने पर आमरण अनशन करने की चेतावनी भी दे दी है। मतलब कर्मचारियों को विपक्ष का समर्थन तो मिल गया है, लेकिन सवाल इस बात का है कि क्या सिर्फ इतने से ये समस्या सुलझ जाएगी। क्योंकि स्पीकर और सरकार पहले ही साफ कर चुके हैं कि कानूनी राय लेने के बाद भर्ती को अवैध पाया गया है इसीलिए एक्शन भी लिया गया है। मतलब स्पीकर अपने फैसले से पीछे हटने के मूड में नहीं हैं, ऐसे में बर्खास्त कर्मचारियों के भविष्य का क्या होगा इसे लेकर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।
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गिरीश सिंह खड़ायत author

15 साल से इलेक्ट्रॉनिक हिंदी मीडिया में हूं, राजनीति और खेल की ख़बरों पर बारीक नज़र रखता हूं और नज़रिया भी टाइम्स नाव नवभारत से पहले नेटवर्क 18 और ज़ी...और देखें

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