उत्तराखंड UCC बिल: क्या देश में लागू होंगे लिव इन रिलेशनशिप पर उत्तराखंड UCC वाले कायदे कानून? रिश्ते में जाने की सोच रहे तो पढ़ लें यह खबर
UCC on Live In relationship : यूसीसी को लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य है। आने वाले समय में कई राज्य यूसीसी को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। ये राज्य भी लिव इन पर उत्तराखंड जैसे प्रावधान अपने यूसीसी में अपना सकते हैं।
उत्तराखंड विधानसभा में पेश हुआ यूसीसी विधेयक।
Uttarakhand UCC live-in rules : देश में यदि कोई लिव इन रिलेशनशिप में रहने की सोच रहा है या इस रिश्ते में जाने की तैयारी में है तो उसे उत्तराखंड समान नागरिक संहिता (UCC) में लिव-इन रिलेशनशिप पर बनाए गए कानूनी प्रावधानों के बारे में जान लेना चाहिए। उत्तराखंड के यूसीसी में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य कर दिया गया है। रजिस्ट्रेशन नहीं करने पर छह माह तक की सजा हो सकती है और कपल को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
यूसीसी लागू करने वाला उत्तराखंड पहला राज्य
यूसीसी को लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य है। आने वाले समय में कई राज्य यूसीसी को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। ये राज्य भी लिव इन पर उत्तराखंड जैसे प्रावधान अपने यूसीसी में अपना सकते हैं। ऐसे में ऐसे जोड़ों को उत्तराखंड यूसीसी में लिव-इन के बारे में दिए गए कानूनी प्रावधानों को जानना चाहिए।
जिले पर होगा रजिस्ट्रेशन, रजिस्ट्रार करेंगे जांच
उत्तराखंड यूसीसी एक्ट में प्रावधान किया गया है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लड़की की उम्र 18 वर्ष या इससे अधिक होनी चाहिए। लड़की को लिव इन में रहने से पहले अपनी पहचान बताने के लिए एक रजिस्ट्रेशन कराना होगा। साथ ही 21 वर्ष से कम के लड़का और लड़की दोनों को इस रजिस्ट्रेशन की जानकारी दोनों के माता-पिता को देनी अनिवार्य होगी। यूसीसी बिल के कानून के बन जाने के बाद कपल को अपना रजिस्ट्रेशन जिले पर कराना होगा। लिव-इन रिलेशनशिप के लिए आने वाले आवेदनों के लिए एक वेबसाइट तैयार की जा रही है। वेबसाइट पर मिलने वाले आवेदनों को सत्यापन डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रार करेंगे। रजिस्ट्रार इन आवेदनों की जांच करेगा। इस दौरान वह कपल या किसी को पूछताछ के लिए बुला सकता है।
रजिस्ट्रेशन न होने पर होंगी मुश्किलें
रजिस्ट्रेशन के पीछे सरकार का उद्देश्य है कि रिलेशनशिप में रहने वाला लड़का या लड़की अपनी धार्मिक पहचान छिपाकर किसी को धोखा न देने पाएं। रजिस्ट्रेशन होने से लड़का या लड़की को किराए के मकान लेने या अन्य पहचान की आवश्यकता पड़ने पर उन्हें किसी कानूनी अड़चन का सामना नहीं करना पड़ेगा।
...तो नहीं होगा रजिस्ट्रेशन
लिव-इन के मामले यदि 'सरकारी नीति एवं नैतिकता' के खिलाफ मिले तो इनका रजिस्ट्रेशन नहीं होगा। यदि जोड़ा पहले से शादीशुदा है अथवा किसी अन्य के साथ रिश्ते में है या यदि लड़का या लड़की नाबालिग है या कपल में से किसी एक ने लिव-इन में रहने की अपनी सहमति किसी दबाव, धोखे, जबर्दस्ती से ली गई है, तो भी रजिस्ट्रेशन नहीं होगा। लिव-इन रिलेशनशिप की घोषणा करने से चूकने अथवा गलत जानकारी देने पर तीन महीने की जेल, 25 हजार रुपए का जुर्माना अथवा दोनों हो सकता है। यही नहीं लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन नहीं कराने पर अधिकतम छह महीने की जेल, 25 हजार रुपए का जुर्माना अथवा दोनों हो सकता है। यहां तक कि रजिस्ट्रेशन कराने में एक महीने तक की देरी होने पर तीन महीने की जेल, 10 हजार रुपए का जुर्माना अथवा दोनों हो सकता है।
बच्चों को मिलेगी कानूनी मान्यता
लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को कानूनी मान्यता मिलेगी। इस रिश्ते से पैदा हुए बच्चों को वैध संतान माना जाएगा। यही नहीं लिव-इन रिलेशन से जन्मे सभी बच्चों का माता-पिता की संपत्ति सहित पारिवारिक जायदाद पर अधिकार होगा लिव-इन रिलेशन में यदि महिला को छोड़ दिया जाता है तो वह गुजारा-भत्ता का दावा कर सकेगी।
यूसीसी की जरूरत नहीं थी-AIMPLB
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के कार्यकारी सदस्य मौलाना खालिद राशिद फिरंगी महली ने कहा कि 'जहां तक यूसीसी की बात है, हमारा मानना है कि प्रत्येक कानून में एकरूपता नहीं लाई जा सकती। यदि आप किसी समुदाय को इससे छूट प्रदान करते हैं तो फिर इसे समान संहिता कैसे कहा जा सकता है? इस तरह की समान नागरिक संहिता की कोई जरूरत नहीं थी। हमारी टीम इस मसौदे विधेयक का अध्ययन करेगी और इसके बाद हम अपने कदम के बारे में निर्ण करेंगे।'
हम इससे सहमत नहीं होंगे-एसटी हसन
समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन ने कहा, 'यदि कुरान की मान्यताओं के खिलाफ कोई कानून बनाया जाता है तो हम इससे सहमत नहीं होंगे। अब ये लोग ध्रुवीकरण करेंगे, इन सब चीजों से लोग आजिज आ चुके हैं।'
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