छात्रा ने खुद मुसीबत को बुलाया, वह स्वयं ही जिम्मेदार, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी कर रेप आरोपी को दे दी जमानत
जस्टिस संजय कुमार सिंह द्वारा पिछले महीने पारित आदेश में कहा गया है कि महिला एमए की छात्रा है और इसलिए वह अपने कृत्य की नैतिकता और महत्व को समझने में सक्षम थी।

इलाहाबाद हाई कोर्ट
Allahabad High Court News: इलाहाबाद हाईकोर्ट अपने एक और फैसले को लेकर चर्चा में है। एक छात्रा से दुष्कर्म के मामले में सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने अपने आदेश में आरोपी को जमानत देते हुए तल्ख टिप्पणी की है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस संजय कुमार सिंह की सिंगल बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि पीड़िता ने खुद ही मुसीबत को आमंत्रित किया और वह इसके लिए खुद जिम्मेदार थी। मामले के अनुसार, आरोपी निश्चल चन्दक की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में बीएनएसएस की धारा 483 के तहत अपने खिलाफ दर्ज रेप के मामले में जमानत आवेदन पत्र दाखिल किया था। आरोपी ने गौतमबुद्ध नगर के थाना सेक्टर-126 में अपने खिलाफ दर्ज दुष्कर्म मामले में जमानत पर रिहा करने की मांग की थी। याचिकाकर्ता पर एमए की छात्रा के साथ दुष्कर्म का आरोप लगा था।
हाई कोर्ट ने क्या-क्या कहा?
जस्टिस संजय कुमार सिंह द्वारा पिछले महीने पारित आदेश में कहा गया है कि महिला एमए की छात्रा है और इसलिए वह अपने कृत्य की नैतिकता और महत्व को समझने में सक्षम थी। आरोपी के अधिवक्ता ने कोर्ट में तर्क दिया कि पीड़िता का यह स्वीकार किया हुआ मामला है कि वह बालिग है और पीजी छात्रावास में रहती है। इस याचिका पर जस्टिस संजय कुमार सिंह की सिंगल बेंच ने सुनवाई करते हुए अपने आदेश में कहा कि तथ्यों के आधार पर यह तर्क दिया गया है कि पीड़िता द्वारा बताए गए मामले के तथ्यों को देखते हुए यह रेप का मामला नहीं है बल्कि आपसी सहमति से संबंध का मामला हो सकता है।
हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने और मामले की जांच करने के बाद पाया कि यह विवाद का विषय नहीं है क्योंकि पीड़िता और आवेदक दोनों ही बालिग है। इसलिए अदालत का मानना है कि अगर पीड़िता के आरोप को सच मान भी लिया जाए तो यह भी निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उसने खुद ही परेशानी को आमंत्रित किया और इसके लिए वह खुद जिम्मेदार भी है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के साथ-साथ अपराध की प्रकृति, साक्ष्य,अभियुक्त की मिलीभगत और पक्षों के अधिवक्ताओं के तर्कों को ध्यान में रखते हुए आवेदक ने जमानत के लिए उपयुक्त मामला बनाया है। इसलिए अदालत जमानत आवेदन को सशर्त स्वीकार करती है और जमानत पर रिहा करने का आदेश देती है।
इस फैसले पर भी उठे सवाल
बता दें कि इससे पहले भी इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक विवादित फैसला देते हुए कहा था कि किसी किशोर लड़की के सीने को दबोचना और पाजामे के नाड़े को खोलने की कोशिश दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास का मामला नहीं है। इस फैसले पर देश भर में विवाद हुआ और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। तब सुप्रीम कोर्ट ने अदालत से इस विवादित टिप्पणी हटाने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी थी। जस्टिस बीआई गवई की अगुवाई वाली पीठ ने कहा था कि यह एक गंभीर मामला है और यह फैसला सुनाने वाले जज की अंसवेदनशीलता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि हमें यह कहते हुए दुख होता है कि जिस जज ने भी यह फैसला सुनाया, यह पूरी तरह से उसकी संवेदनहीनता को प्रदर्शित करता है।
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