'टारगेट पूरा न होने पर इलेक्ट्रिक शॉक देते थे', म्यांमार से लौटे भारतीय का छलका दर्द
Myanmar Fake Job Racket: स्टीफन ने बताया, 'दुबई में जिन छह लोगों का इंटरव्यू हुआ उनमें एक महिला भी थी। यह इंटरव्यू आमने-सामने और वीडियोकॉन्फ्रेंस दोनों तरीके से हुआ। एजेंसी ने बताया कि थाईलैंड में काम करने के लिए कंपनी ने हम सभी को सेलेक्ट किया है।'
फर्जी जॉब रैकेट का शिकार हुए हैं भारतीय युवा।
- भारत ने फर्जी जॉब रैकेट में फंसे 45 भारतीय नागरिकों को म्यांमार से निकाला है
- देश पहुंचने के बाद भारतीय युवाओं ने वहां अपने साथ हुई ज्यादती को बताया है
- युवाओं का कहना है कि टारगेट पूरा न करने पर उन्हें कड़ी सजा दी जाती थी
एजेंसी ने दुबई में इंटरव्यू कराया
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टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक कोयम्बटूर के 29 वर्षीय सी स्टीफन का कहना है कि 'सेना हमें अपने मुख्यालय ले गई। उन्होंने हमसे ढेर सारे सवाल किए। इसके बाद हमें फिर ऑफिस में छोड़ दिया गया। अपने साथ हो रहे बर्ताव को लेकर हम लोग काफी डरे हुए थे।' स्टीफन तमिलनाडु के उन 13 भारतीयों में से हैं जो गुरुवार को यहां आए। म्यांमार में स्टीफन की यातना का दौर तीन महीने पहले शुरू हुआ। बेंगलुरु में ग्राफिक डिजाइनर का काम करने वाले स्टीफन ने अपनी नौकरी छोड़ी दी। फिर उन्हें कोयम्बटूर में फ्रिलांस कंसलटेंट का जॉब मिल गया। गत जुलाई में उनके एक दोस्त ने एक भर्ती एजेंसी के बारे में बताया। इस कंपनी ने थाईलैड में जॉब के लिए उनका इंटरव्यू दुबई में कराया।
बैंकाक रवाना होने से पहले दुबई में रहे 15 दिन
स्टीफन ने बताया, 'दुबई में जिन छह लोगों का इंटरव्यू हुआ उनमें एक महिला भी थी। यह इंटरव्यू आमने-सामने और वीडियोकॉन्फ्रेंस दोनों तरीके से हुआ। एजेंसी ने बताया कि थाईलैंड में काम करने के लिए कंपनी ने हम सभी को सेलेक्ट किया है।' उन्होंने बताया कि बैंकाक रवाना होने से पहले सात लोग दुबई में 15 दिन ठहरे। स्टीफन ने याद करते हुए बताया, 'हमें काम करने की अनुमति देने वाला वीजा नहीं दिया गया। बैंकाक एयरपोर्ट पहुंचने पर कुछ स्थानीय लोग हमसे मिले और हमें अराइवल वीजा सौंपा।'
हमें यूनिफॉर्म पहने दो लोगों के हवाले किया
स्टीफन कहते हैं, 'फिर हमें दो टैक्सियों में बिठाकर बैंकाक से 450 किलोमीटर दूर ले जाया गया। रास्ते में हमें डर लगने लगा। रास्ते में टैक्सी अचानक दो ट्रकों के सामने एक जगह रुकी। हमें इन ट्रकों में सवार होने के लिए कहा गया। वे हमें एक जंगल के रास्ते ले गए। हमें जिस जगह पर उतारा गया वहां पर 300 गायों के रहने के लिए एक गोशाला और एक नदी थी। फिर हमें नाव से नदी पार कराया गया। बाद में हम सात लोगों को सेना के यूनिफॉर्म पहने दो लोगों के हवाले कर दिया दया। यूनिफॉर्म वाले लोगों ने हमें 15 मिनट तक घुटने पर बिठाया और हमारे पासपोर्ट की तस्वीरें खींचीं। इसके बाद एक अन्य वाहन आया जो हमें लेकर एक ऑफिस गया।'
मॉडल्स के नाम पर फर्जी अकाउंट्स बनाए जाते थे
उन्होंने कहा, 'यह ऑफिस लोगों से भरा हुआ था। यहां पर हमसे एक साल के कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर कराए गए। हमारे पासपोर्ट ले लिए गए। काम के दौरान हमें एहसास हुआ कि कंपनी क्रिप्टोकरेंसी के धंधे में संलिप्त है। यहां डेटिंग एप पर पहले से रजिस्टर्ड समृद्ध कारोबारियों को फंसाने के लिए मॉडल्स के नाम पर फर्जी अकाउंट्स बनाए जाते थे। कस्टमर्स से फोन पर बात करने के लिए लड़कियां थीं। कस्टमर द्वारा 100 एवं 200 डॉलर का निवेश करने पर कंपनी उन्हें अच्छा रिटर्न देती थी लेकिन जब वे 10,000 डॉलर से अधिक का निवेश करते थे तो कंपनी उनका पैसा उड़ा लेती थी और फिर उन्हें ब्लॉक कर देती थी।'
टारगेट पूरा न करने पर मिलती थी सजा
स्टीफन ने आगे बताया कि कंपनी प्रत्येक कर्मचारी को एक टार्गेट देती थी। लोगों को एक दिन में कम से कम 50 लोगों से निवेश को लेकर बात करनी होती थी। टारगेट पूरा न होने पर सजा दी जाती थी। उन्होंने कहा, 'जो कर्मचारी काम करने से मना करता था या जो अपना टारगेट पूरा नहीं कर पाता था, उन्हें सुरक्षाकर्मी इलेक्ट्रिक शॉक देते थे।'
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