इजरायल में मनाए जाने वाले हाइफा दिवस का क्या है भारतीय कनेक्शन? जानें जाबाज घुड़सवारों की असाधारण कहानी

Battle of Haifa: इजरायल के हाइफा शहर में हर साल 23 सितंबर को भारत के जाबाज सैनिकों की याद में हाइफा दिवस मनाया जाता है। बता दें कि इजरायल में हाइफा दिवस की शुरुआत साल 2003 से शुरू हुई थी। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उत्तरी इजरायल के हाइफा शहर को संयुक्त सेना के कब्जे से छुड़ाने के लिए भारतीय सेना के जवानों ने अपना पराक्रम दिखाया था।

Battle of Haifa

हाफिया का युद्ध

मुख्य बातें
  • भारतीय सैनिकों के शौर्य की गाथा।
  • गोलियों की तड़तड़ाहट के सामने डटी रही घुड़सवार सेना।
  • दुनिया ने देखी थी भारतीय सैनिकों की वीरता।
Battle of Haifa: पूरी दुनिया जब आधुनिक हथियारों के खौफ से जूझ रही थी। हर तरफ मंजर ये था युद्ध तोप और बंदूकों के दम पर लड़ी जा रही था। तब भारत के जांबाज घुड़सवारों ने युद्ध के मैदान में इन तोप और गोलों का डंडों और तलवार के दम पर ऐसा मुकाबला किया कि पूरी दुनिया उनके इस पराक्रम का आज भी यश गान करती है। 23 सितंबर, 1918 यानी 106 साल पहले का यह संघर्ष तब से लेकर आज तक दुनिया को यह बताता रहा है कि भारतीय सेना के पराक्रम के आगे किसी की कुछ भी नहीं चलती चाहे दुश्मन कितना ही ताकतवर और हथियारों से लैस क्यों ना हो।

कहानी 106 साल पुराने युद्ध की

अब आपको जिस युद्ध के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं उसको सुनकर आप भी भरोसा नहीं कर पाएंगे कि उत्तरी इजरायल के एक शहर हाइफा के इस संघर्ष में भारत की सेना के पराक्रम की गाथा आखिर क्यों गाई जाती है। दरअसल प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान इस शहर पर ऑटोमन साम्राज्य यानी जर्मनी, ऑस्ट्रिया और हंगरी का संयुक्त कब्जा था। इसी शहर को संयुक्त सेना के कब्जे से छुड़ाने के लिए भारतीय सेना के जवानों ने अपना पराक्रम दिखाया था।
दरअसल, इस शहर की भूमिका इस दौरान इसलिए मित्र राष्ट्रों के लिए महत्वपूर्ण थी, क्योंकि उनकी सेनाओं के रसद पहुंचाने का समुद्री रास्ता इसी शहर से होकर जाता था। ऐसे में भारतीय सैनिक जो ब्रिटिश हुकूमत की तरफ से इस शहर पर कब्जे के लिए संघर्ष कर रहे थे। उनमें से 44 वीरों ने वीरगति को प्राप्त की, लेकिन इस शहर को जीतकर इसे संयुक्त सेना के कब्जे से आजाद जरूर करा दिया। यह लड़ाई पूरी दुनिया की अंतिम घुड़सवार सेना की सबसे बड़ी लड़ाई के तौर पर आज भी याद किया जाता है।

हर साल मनाया जाता है हाइफा दिवस

इजरायल के हाइफा शहर में हर साल 23 सितंबर को इन भारत के वीर सैनिकों की याद में हाइफा दिवस मनाया जाता है और तीन भारतीय कैवलरी रेजिमेंट मैसूर, हैदराबाद और जोधपुर लांसर, जो तब की 15 इम्पीरियल सर्विस कैवलरी ब्रिगेड का हिस्सा था, उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। इजरायल में इस दिवस की शुरुआत साल 2003 से शुरू हुई थी।
इस युद्ध के बारे में इतिहास के पन्नों में जो दर्ज है वह जानकर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है एक तरफ जहां संयुक्त सेना की तरफ से गोले और बारूद बरस रहे थे, वहीं दूसरी तरफ भारतीय कैवलरी फौज के पास तलवारें, डंडे और भाले थे, लेकिन इन वीर सैनिकों ने माउंट कैरमल की पथरीली पहाड़ों पर अपनी बहादुरी से इसका डटकर मुकाबला किया और संयुक्त सेना को खदेड़कर इस पर अपना अधिकार जमा लिया।

हीरो ऑफ हाइफा

ये एक ऐसी लड़ाई थी जहां युद्ध के मैदान तक चढ़ाई की वजह से ही जाना मुश्किल था। ऊपर से घोड़ों पर सवार भारतीय सेना के जवान ऐसे सैनिकों से लोहा ले रहे थे जो ऊपर बैठे थे और उनके पास गोला, बारूद, तोप और मशीन गन थे। इसके बाद भी भारतीय सूरमाओं का हौसला कहां टूटने वाला था वह आगे बढ़े और घोड़ों को लेकर युद्ध के मैदान तक पहुंच गए। फिर जमकर लड़ाई हुई और अंततः भारतीय जांबाजों ने हाइफा पर कब्जा जमा लिया। मेजर दलपत सिंह जिन्होंने इस सेना का नेतृत्व किया था, आज भी दुनिया उन्हें हीरो ऑफ हाइफा कहकर बुलाती है। आजाद भारत की किताबों में भले हाइफा के संग्राम को बच्चों ने कभी नहीं पढ़ा, लेकिन इजरायल में कक्षा पांच तक की इतिहास की किताबों में हाइफा की आजादी की कहानी और भारतीय सैनिकों की वीर गाथा आज भी पढ़ाई जाती है।
मेजर दलपत सिंह इस जंग में अपनी सेना का विजय तो देख नहीं पाए और कैप्टन अमन सिंह बहादुर ने इस युद्ध में नेतृत्व करते हुए हाइफा पर भारतीय सैनिकों का कब्जा मुकर्रर किया।
(इनपुट: आईएएनएस)
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | नॉलेज (knowledge News) और बजट 2024 (Union Budget 2024) की ताजा समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से |

लेटेस्ट न्यूज

अनुराग गुप्ता author

टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल में बतौर सीनियर कॉपी एडिटर काम कर रहे हैं। खबरों की पड़ताल करना इनकी आदतों में शुमार हैं और यह टाइम्स नाउ नवभारत की वेबसाइट क...और देखें

End of Article

© 2024 Bennett, Coleman & Company Limited